रिजल्ट के बाद कोई फेल होने से डिप्रेशन में तो कोई कम नंबर से परेशान

भोपाल : 10वीं और 12वीं के नतीजे जारी हो चुके हैं। परीक्षा में बेहतरीन स्कोर करने वाले मेधावियों की लंबी लिस्ट है। लेकिन कई बच्चे ऐसे भी हैं जिनके नंबर या तो कम है या वे फेल हो गए हैं। रिजल्ट बिगड़ने से कई बच्चे मानसिक तनाव में भी आ रहे हैं। वे आक्रामक हो रहें और आत्महत्या जैसे प्रयास तक कर रहे हैं। इन सब से परेशान माता पिता मनोचिकित्सक और काउंसलर की मदद ले रहे हैं। स्थिति यह है कि इन दिनों शहर में हर दिन करीब 100 से ज्यादा माता-पिता बच्चों के लिए मनोचिकित्सक के पास पहुंच रहे हैं। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनीष बोरासी बताते हैं कि परीक्षा और रिजल्ट के तनाव दो तरह से दिमाग पर असर करते हैं। परीक्षा के डर से कई बच्चे एंजायटी से ग्रसित हो जाते हैं। वे तैयारी नहीं कर पाते, कई बार इतने घबरा जाते हैं कि खुद को चोट तक पहुंचाने से भी नहीं डरते। वहीं रिजल्ट के बाद बच्चों में डिप्रेशन के मामले आते हैं। फेल हो जाने के बाद उन्हें लगता है कि दुनिया खत्म हो गई। ऐसे में हम उन्हें समझाते हैं कि सिर्फ इन नंबरों से आपका सही मूल्यांकन नहीं हो सकता।
बच्चों के व्यवहार में हो रहा बदलाव, हर रोज 100 से ज्यादा माता-पिता पहुंच रहे मनोचिकित्सकों के पास
केस -1 , खुद को कमरे में किया बंद
कोलार में रहने वाले सारांश जैन (परिवर्तित नाम) सीबीएससी 12वीं की परीक्षा में फेल हो गए। रिजल्ट आने के बाद से ही सारांश ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। यही नहीं वह अकेले में बढ़बढ़ाने लगा। माता पिता सारांश को मनोचिकित्सक के पास ले गए तो उन्होंने बताया कि फेल होने से सारांश डिप्रेशन में है। उन्होंने सलाह दी कि माता पिता उससे रिजल्ट की बात ना कर आगे बेहतर करने के लिए प्रेरित करें।
केस -2 ,आक्रामक हो गया
एमपी बोर्ड 12 का रिजल्ट आने के बाद रुचिर सक्सेना (परिवर्तित नाम) अचानक आक्रामक हो गया और घर की चीजें फेंकने लगा। दरअसल परीक्षा में उसके नंबर कम आए थे, जिससे उसे डर था कि उसे अच्छा कॉलेज नहीं मिल सकेगा। रुचिर खुद को खत्म करने जैसी बाते करने लगा तो माता पिता उसे मनोचिकित्सक के पास ले गए। उसके आक्रामक व्यवहार को देखकर उसे अस्पताल में भर्ती किया गया।
रिजल्ट के बाद बढ़ जाते हैं केस
मनोवैज्ञानिक डॉ. मोनिका वर्मा बताती हैं कि परीक्षा के कुछ सप्ताह पहले से लेकर रिजल्ट के बाद ओपीडी में बच्चों और माता-पिता की संख्या बढ़ जाती है। खासकर रिजल्ट के बाद यह संख्या तीन से चार गुना बढ़ जाती है। आम दिनों में बच्चों की पढ़ाई के महीने में एक या दो मामले ही आते हैं, लेकिन इन दिनों हर दिन इतने मामले आते हैं।
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी,वरिष्ठ मनोचिकित्सक ने बताया कि ,जिदंगी में उतार-चढ़ाव लगा रहता है, जो स्टूडेंट परीक्षा में फेल हो गए हैं उन्हें निराश होने की बजाए आत्म मूल्यांकन करना होगा, आगे का सोचना होगा। कमजोरियों पर काम करना होगा। अपनी गलती से सीखने की जरूरत है। टाइम टेबल बनाकर तैयारी करनी होगी। जीवन में लक्ष्य बनाना होगा। जितने अंक चाहिए उसको अपने कमरे में लगा लें। कुल मिलाकर स्टूडेंट को चिंता नहीं चिंतन करने की जरूरत है।
पेरेंट्स करें ये काम
बच्चों के नंबरों से उसका आंकलन न करें।
कम अंक आने पर किसी भी दूसरे बच्चे से तुलना न करें। तुलना करने से बच्चों के अंदर खुद से प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाती है।
रिजल्ट आने के बाद बच्चों पर नजर रखें।
ज्यादा से ज्यादा समय बच्चों को दें, साथ रहें।
बच्चों से हमेशा बातचीत करें।
समझाएं ताकि वह हिम्मत न हारें।
दोस्ताना व्यवहार बनाएं रखें। खुल कर बात करें।
आगे और मेहनत करने की बात कहें। बच्चों के साथ समय बिताएं।
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