राखियों में दिखा 'सेव एनवायरनमेंट' का संदेश: गोबर, बीज और कतरनों से बनी इको-फ्रेंडली राखियां, मिले हजारों ऑर्डर

Raksha Bandhan 2025 Eco Friendly Rakhis
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इको-फ्रेंडली राखियों की बाजार में धूम, गोबर, बीज और कतरनों से बनी राखियों के लिए देशभर से ऑर्डर

Raksha Bandhan 2025 पर पर्यावरण के प्रति जागरूकता दिखाती इको-फ्रेंडली राखियों का बोलबाला है। बीज, गोबर और कपड़ों की कतरन से बनी राखियों को बहनों ने खूब सराहा। जानें इन अनोखी राखियों की खासियत।

मधुरिमा राजपाल, भोपाल

Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक है और मार्केट में राखियों की ढेरों वैरायटी मौजूद हैं। कहीं रेशमी धागों, मोती और सीप से तैयार राखियां बहनों को भा रही हैं तो कहीं चांदी की सुंदर सी राखी ने बहनों का मन मोह लिया है। लेकिन आज जब हर जगह पर्यावरण संरक्षण की बात की जाती है तो अब बहनों ने भी इको फ्रेंडली राखी बनाने की लाइन पकड़ ली है। जिसमें कोई गोबर से राखियों को नायाब रूप दे रहा है तो किसी ने कपड़े की बची हुई कतरनों और बीज राखी के रूप में राखियों को बनाया है। यह राखियां इको फ्रेंडली होने के साथ साथ पूरी तरह हेंडमेड भी है, जिन्हें ज्यादातर बहनों ने अपने प्यारे भाईयों के लिए बनाया है।

बीज राखी

स्वदेशी जागरण मंच मध्य भारत प्रान्त प्रमुख सीमा भारद्वाज ने कहा कि हम पिछले कई सालों से बीज राखी के रूप में राखी बनाते है और कई कार्यशालाओं के जरिए इस तरह की राखियां बनाना बच्चों को सिखाते भी हैं, ताकि वो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ें। उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में हमनें नवीन शा स्कूल में बीज राखी की कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें कलावे के भीतर बीज रखकर राखी बनाने की कार्यशाला ली, इसके लिए हमनें कागज की लुगदी या गत्ते के सुंदर टुकड़ों को शेप में काटकर, उन्हें मोती, सीप, रेशमी धागों से सजाकर, उनके ऊपर बीज चिपकाते हैं और जब भाईयों की कलाई पर यह राखी पुरानी हो जाती है तो वो राखी का बीज गमले में रौंप देते है, जिससे सुंदर पौधा बनकर तैयार हो जाता है।

सीमा ने कहा कि हम इन राखियों में तुलसी, अपराजिता, बेल या अन्य कोई बीज डालते हैं। जिससे एक पौधा बनता है और यह पौधा भाई बहन के इस प्यार को और भी अटूट बना देता है। उन्होंने कहा कि स्कूल की सैकड़ों लड़कियों ने हमारी इस कार्यशाला में भाग लिया और इको फ्रेंडली बीज राखी बनाना सीखा। हन इन राखियों का ऑनलाइन प्रचार प्रसार करते है, और लोग हमारी कार्यशाला में या तो यह राखियां बनाना सीखते हैं या फिर इन्हें खरीद लेते हैं।


निशक्तजन भी बना रहे इको फ्रेंडली राखी

उमंग वेलफेयर सोसायटी में निशक्त बच्चों के लिए काम करने वाली कविता जैन ने कहा कि अभी हाल ही में मैंने स्वदेशी जागरण मंच के जरिए बीज राखी बनानी सीखी और अब मैंने राखियां बनाने का प्रशिक्षण संस्था के निशक्त बच्चों को दे रहे हैं। जिससे वो बच्चे स्वावलंबी बने साथ ही उनके दिगाम में भी पर्यावरण संरक्षण का विचार आए।

कपड़ों की कतरनों से तैयार की गई इको फ्रेंडली राखियां

राजधानी की पूजा आयंगर ने बची हुई चिंदियों और कपड़ों की कतरनों से राखियों को डिजाइन किया है। पूजा कहती हैं कि इन राखियों को बनाने के लिए हमारे पास हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली से बहुत बड़े-बड़े ऑर्डर आए हैं। जहां इस तरह की राखियों की बहुत डिमांड है। पूजा ने कहा कि हमारे साथ 150 के करीब महिलाएं काम करती हैं लेकिन अभी 35 महिलाएं इको फ्रेंडली राखी बनाने का काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि कपड़ों की चंदिया पर हम कढ़ाई करके, बटन या मोती चिपकाकर इन राखियों को सजाते हैं, ताकि ये देखने में सुंदर भी लगे।


पूजा आगे कहती हैं कि ऐसी राखियों को बनाने के पीछे हमारा उद्देश्य सेव एनवायरनमेंट का संदेश देना है क्योंकि पर्यावरण भी एक प्रकार से हमारा रक्षक है। एक भाई की भूमिका निभाता है और इसकी रक्षा के लिए हमें ऐसे रक्षा सूत्र बनाने चाहिए जो पर्यावरण को हानि न पहुंचाएं। उन्होंने यह भी कहा कि इन राखियों की कीमत करीब सौ रुपए प्रति राखी है। जिसमें हमने अलग-अलग डिजाइन की राखियां बनाई है, कहीं फूल पत्तियों से सजी हुई राखियां है तो कहीं हार्ट शेप और डिजाइनर फ्लावर वाली राखियां हैं। इसके साथ ही हमने इन कतरनों के ऊपर प्यारे भाई जैसे संदेश भी लिखे हैं, ताकि ये भाईयों की कलाई पर और भी सुंदर लगे। उन्होंने कहा कि अभी तक हमने 500 राखियां बना ली है और आने वाले समय में हजारों की संख्या में इस तरह की राखी बनाने के आर्डर हमारे पास आए है।

गोबर से बनी राखियों को देशभर से ऑर्डर

इको फ्रेंडली राखी के इसी क्रम में नीता दीप बाजपेई ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की 150 महिलाओं के साथ मिलकर गोबर की राखियां तैयार की हैं। नीता दीप कहती हैं कि 2021 से रक्षाबंधन पर्व के आसपास हम इस तरह से इको फ्रेंडली गोबर की राखियां बनाने का कार्य कर रहे हैं और इस दरमियान हमारी हजारों की संख्या में राखियां बिक जाती हैं।

उन्होंने आगे कहा, ''इस बार हमने करीब 15000 राखियां बना ली है और हमारे पास 8000 राखियों का ऑर्डर भी आ चुके हैं। हम इन राखियों में एक बीज भी डाल देते ह कि जब भाई की कलाई पर यह राखी पुरानी होने लगे तो वो इसे गमले में लगा सकता है।''

नीता ने यह भी कहा कि जिस प्रकार से एक भाई बहन की रक्षा का संकल्प लेता है, वहीं इस तरह की इको फ्रेंडली गोबर की राखियों से भाई-बहन दोनों मिलकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हैं और पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लेते हैं।

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