Rani Ahilyabai Holkar: घर की चौखट से सत्ता की गद्दी तक, रानी अहिल्याबाई की जयंती पर जानें उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी

Rani Ahilyabai Holkar Birth Anniversary: भारत के इतिहास में रानी अहिल्याबाई होलकर का नाम साहस, न्याय, विकास और भक्ति की मिसाल के रूप में लिया जाता है। 31 मई 1725 को जन्मीं रानी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती के अवसर पर हम आपको उनके जीवन के वो अहम पहलू बताएंगे, जो आज भी महिलाओं को प्रेरित करते हैं।
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव (अहमदनगर) में हुआ। उनका बचपन किसी भी राजघराने से नहीं, बल्कि एक पशुपालक परिवार से जुड़ा था। उस दौर में लड़कियों की शिक्षा पर ज़ोर नहीं दिया जाता था, लेकिन अहिल्या ने घर के दरवाजे पर बैठकर पढ़ना-लिखना सीखा। उनकी यह ललक ही आगे चलकर उन्हें रानी के मुकाम तक ले गई।
नवविवाहिता से शासिका बनने तक का कठिन सफर
14 साल की उम्र में अहिल्या का विवाह इंदौर रियासत के युवराज खंडेराव होलकर से हुआ। लेकिन 1754 में युद्ध के दौरान खंडेराव की मृत्यु हो गई। इसके बाद 1766 में ससुर मालाराव होलकर की भी मृत्यु हो गई। पति और ससुर की मृत्यु के बाद, अहिल्याबाई ने ना केवल महेश्वर की रियासत संभाली, बल्कि पूरे मालवा को एक आदर्श और न्यायप्रिय शासन का अनुभव करवाया। उस समय एक महिला का शासन संभालना बहुत बड़ी बात थी, लेकिन अहिल्याबाई ने अपने फैसलों, न्यायप्रियता और जनहित कार्यों से खुद को साबित कर दिया।
आध्यात्मिक और सामाजिक निर्माण की प्रतीक
रानी अहिल्याबाई सिर्फ एक कुशल शासक ही नहीं, बल्कि एक महान धार्मिक और सामाजिक सुधारक भी थीं। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, गया, ऋषिकेश, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनाथ समेत देशभर में कई तीर्थ स्थलों का पुनर्निर्माण करवाया। उन्होंने नदियों के घाट, धर्मशालाएं, कुएं, बावड़ियां और स्कूल भी बनवाए। उनकी न्यायप्रियता का उदाहरण है कि वे हर रोज़ दरबार में जनता की शिकायतें खुद सुनती थीं।
नारी शक्ति की मिसाल
एक ऐसे दौर में जब महिलाओं का घर से बाहर निकलना तक मुश्किल था, रानी अहिल्याबाई होलकर ने अकेले शासन संभालकर दिखाया कि नेतृत्व, बुद्धिमानी और करुणा किसी लिंग की मोहताज नहीं होती। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि साहस, शिक्षा और सेवा का मार्ग ही सच्चे नेतृत्व की पहचान है।
13 अगस्त साल 1795 को रानी अहिल्याबाई का निधन हुआ, लेकिन उनकी छवि आज भी जनता की रानी, भक्ति और सेवा की प्रतीक, और भारत की सबसे सफल महिला प्रशासकों में से एक के रूप में देखी जाती है।