ट्रैवल डायरी-2 | Tanzania: उमस भरे दार अस सलाम से सेरेंगेटी तक, तंजानिया की जीवंत कहानी

Travel Diary-2 Tanzania
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ट्रैवल डायरी-2 | अफ्रीका के तंजानिया में डॉ. हिमांशु द्विवेदी का आंखों देखा अनुभव।

डॉ. हिमांशु द्विवेदी की ट्रैवल डायरी-2 में पढ़िए तंजानिया का इतिहास, मवांजा शहर, सेरेंगेटी नेशनल पार्क और अफ्रीका के सवाना मैदानों का रोमांचक सफर।

तंजानिया यात्रा वृत्तांत-2 | डॉ. हिमांशु द्विवेदी (प्रधान संपादक, हरिभूमि ग्रुप)

जिसकी दिलचस्पी वन्य जीवन है उसे दार अस सलाम में एक दिन बिताना भी भारी ही लगेगा, खासकर तब जब चमकते सूरज के चलते उमस भरी गर्मी ना चाहते हुए भी आपके बदन से बेहिसाब पसीना निकाल दे रही हो। तंजानिया प्रवास पर आने वाले तमाम पर्यटकों की तरह अपनी भी मंजिल सेरंगेटी नेशनल पार्क ही है और वहां पहुंचने का सबसे बेहतर तरीका स्थानीय विमान सेवा ही है। आपको बता ही चुका हूं कि यहां सड़को की हालत हद से ज्यादा खराब है और रेल नेटवर्क भी अभी ठीक से विकसित हुआ नहीं है। लिहाज आप कितने ही जमीन से जुड़े व्यक्ति हों लेकिन यहां आपको हवा में ही रहना चाहिए।

विकल्प तो दार अस सलाम से सीधे सेरंगेटी स्थित हवाई पट्टी पर चार्टर फ्लाइट से उतरने का भी रहता है लेकिन जेब के लिहाज से बेहतर है कि रेगुलर फ्लाइट से मवांजा या अरुषा उतरा जाए। यह दोनो ही बेहद सुंदर शहर बताए जाते हैं।

हमारी मंजिल मवांजा है जो ताजे पानी की झील लेक विक्टोरिया के किनारे बसा है। दार अस सलाम से हमारे विमान ने दोपहर तीन बजे उड़ान भरी। अब इसे मवांजा के विमान तल पर उतरने में साढ़े तीन घंटे लगेंगे तब तक कुछ बातें तंजानिया को लेकर कर लेते हैं।

गुलामी से आजादी तक

पूर्वी अफ्रीका के इस देश में मानव जाति का इतिहास हजारों नहीं लाखों वर्ष पुराना है। स्थानीय संस्कृति और रहन-सहन को हजारों वर्ष से चुनौती मिलती रही। पहले अरब और फिर यूरोपियन व्यापारियों ने इसे अपने कब्जे में लेकर पर्याप्त दोहन निरंतर किया। यही कारण है कि सोने की खदानें जिस देश में हैं वह आज भी गरीबी के खिलाफ संघर्ष कर रहा है।

मुस्लिम और ईसाई मतावलंबी की बहुलता वाले इस देश में यूरोपियन लोगों का आगमन वास्को डि गामा के साथ हुआ था। पहले पुर्तगाल, फिर जर्मनी और आखिर में ब्रिटिश सत्ता ने इस देश को अपना उपनिवेश बनाए रखा।

लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 1961 में इसने स्वतंत्रता हासिल की और अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर अपने आपको तंगानिका के नाम से अस्तित्व में लाया। वर्ष 1964 में पड़ोस में स्थित सल्तनत जांजीबार ने भी स्वतंत्रता हासिल कर ली और दोनों इलाकों के एकीकरण के साथ अस्तित्व में आया आज का तंजानिया।


डॉ. हिमांशु द्विवेदी ....

मवांजा एयरपोर्ट और शहर

तीन घंटे से भी ज्यादा लंबे इस सफर के बाद बेहिसाब शोर करता हमारा विमान मवांजा के विमान तल की उस हवाई पट्टी पर उतर गया, जिसे शायद ही याद हो कि उस पर आखिरी बार डामर की परत कब चढ़ी थी। विमानतल कुल जमा दो कमरों का ही था लेकिन व्यवस्थित था।

भारत से गहरा जुड़ाव

झील किनारे स्थित यह शहर आपको भारत के किसी भी मंझोले किस्म के नगर की याद सहजता से दिला देगा। सेरेंगिट्टी नेशनल पार्क जाने का उपयुक्त समय सुबह है इसलिए रात यहां ही गुजारना है। तंजानिया से भारत के व्यापारिक संबंध सैकड़ों साल पुराने होने के कारण आपको अपनी मौजूदगी हर जगह महसूस होगी। लेक किनारे जिस होटल में हम रुके वहां रेस्टोरेंट नें खाना खाते समय उसके शेफ से मुलाकात हुई। उसका नाम मनोज है और वह उत्तराखंड से आकर पिछले चार साल से यहां काम कर रहा है। भारतीय बहुत अधिक संख्या में आते हैं इसलिए तमाम होटल भारतीय भोजन उपलब्ध कराने की समुचित व्यवस्था रखते हैं।

सेरेंगेटी की ओर सड़क यात्रा

अगली सुबह हम सुबह सात बजे सेरेंगेटी के लिए रवाना हुए। हमारे चालक हमीद के मुताबिक सफर करीब चार घंटे का था। यहां सड़कों की हालत इतनी खराब है कि यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क। औसतन 50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलते हुए हम सुबह करीब 11 बजे सेरेंगेटी नेशनल पार्क के प्रवेश द्वार पर पहुंचे।

सेरेंगेटी नेशनल पार्क

50 किलोमीटर प्रति घंटे की नियंत्रित रफ्तार के साथ हम 11 बजे विश्व प्रसिद्ध सेरंगेट्टी नेशनल पार्क के प्रवेश द्वार पर थे। 15 हजार किलोमीटर से भी अधिक विस्तारित यह स्थान जैव विविधता और जैव संरक्षण की दृष्टिकोण से दुनियाभर में मिसाल बना हुआ है। वर्ष 1951 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित यह क्षेत्र 1981 में यूनेस्को की विश्व धरोहर में भी शामिल किया गया।


अवैध शिकार के खिलाफ कदम

इस क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की सबसे बड़ी वजह अवैध शिकार से वन्यजीवों को बचाना था। यह कितनी हैरानी की बात है कि तंजानिया ने गुलामी के दौर में ही वन्य जीवों को अवैध शिकार से बचाने कदम वर्ष 1951 में ही उठा लिए वहीं हमने यह कदम आजादी के ढाई दशक बीत जाने के बाद 1972 में उठाए। अभी भी अवैध शिकार हमारे तंत्र क लिए बहुत बड़ी चुनौती है।


ड्राइवर ही गाइड

यहां वाहन चालक ही गाइड और असिस्टेंट की भूमिका में रहता है। हमारे साथ इस भूमिका में हमीद हैं। खराब सड़क पर वाहन पर जितना बेहतर उनका नियंत्रण है, उतनी ही बेहतर उनको इलाके और वन्य जीवों की जानकारी भी है।

सेरेंगेटी का अर्थ

सेरेंगिट्टी का अनुभव आपसे कल साझा करेंगे लेकिन आपकी जानकारी के लिए सेरेंगेट्टी नाम मसाई भाषा के शब्द सेरेगेट से निकला है, जिसका अर्थ है घास का अंतहीन मैदान। यह उद्यान नाम के अनुरूप ही है। मीलों दूर तक वृक्ष रहित घास के मैदान चहुंओर आपको दिखाई देंगे।

बचपन में भूगोल की किताबों में आपने सवाना के जिन घास के मैदानों के बारे में पढ़ा था, वह यहीं हैं। प्रवेश संबंधित कागजी औपचारिकताएं हमीद ने ही बिना हमें वाहन से उतारे पूरी करा लीं, और हम विश्व प्रसिद्ध इस अभ्यारण्य में दाखिल हो गए।

मासाई मारा- आकर्षण का केंद्र

दुनिया भर के प्रेमियों के बीच बेहद आकर्षण का केंद्र है 'मसाई-मारा'। केन्या स्थित यह उद्यान सेरेंगेट्टी के साथ मिलकर ही विश्व प्रसिद्ध वार्षिक पशु प्रवासन को सदियों से अंजाम देते आ रहे हैं। इसके तहत बीस लाख से अधिक विल्डर बीस्ट, आठ लाख से अधिक जेब्रा हजारों किलोमीटर की यात्रा स्व अनुशासन में भोजन की तलाश में तय करते हैं। वर्ष भर चलने वाले इस प्रवासन में यह पशु महज तीन माह मसाई मारा में और नौ माह सेरेंगेट्टी में बिताते हैं। लाखों की संख्या में गजेल (हिरन की प्रजाति) भी इसका हिस्सा होते हैं लेकिन वह सरेंगेट्टी का इलाका पार नहीं करते।

मसाई मारा के मायने क्या हैं, यह आपको कल (31 दिसंबर, 2025) बताते हैं।

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