AIIMS रिसर्च: मासूमों के खिलौनों में छुपा जहर, बढ़ रहा ऑटिज्म का खतरा

एम्स की नई रिसर्च: प्लास्टिक खिलौने बच्चों के लिए खतरा।
बाजार में मिलने वाले प्लास्टिक या धातु के खिलौने बच्चों की सेहत के लिए घातक साबित हो रहे हैं। एम्स (AIIMS) 2025 द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में इसका खुलासा किया गया है। प्लास्टिक और धातु से बने खिलौनों में पाए जाने वाले लेड, क्रोमियम, मर्करी, मैंगनीज, कॉपर, आर्सेनिक और कैडमियम जैसे हानिकारक धातु बच्चों में ऑटिज्म के बढ़ते मामलों से जुड़े पाए गए हैं।
इस अध्ययन में 250 बच्चों (3 से 12 वर्ष आयु वर्ग) को शामिल किया गया, जिनमें 125 बच्चे ऑटिज्म से प्रभावित थे और 125 पूरी तरह स्वस्थ थे। रिपोर्ट के अनुसार, करीब 34% ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के शरीर में 6 से 7 तरह के हेवी मेटल्स का स्तर ज्यादा पाया गया। वहीं स्वस्थ बच्चों में यह समस्या बहुत कम देखी गई।
हेवी मेटल्स कहां से पहुंचते हैं बच्चों के शरीर में?
जयपुर के चाइल्ड स्पेस्लिस्ट डॉक्टर अशोक काबरा का कहना है कि ये जहरीली धातुएं केवल हवा या प्रदूषित फूड से ही नहीं, बल्कि बच्चों के खिलौनों के जरिए भी शरीर में प्रवेश कर रही हैं।
- प्रदूषित भोजन और पैकेज्ड स्नैक्स
- सिगरेट का धुआं और औद्योगिक कचरा
- चीन से आयातित सस्ते खिलौने, जिनमें सुरक्षा मानक नहीं अपनाए जाते
- प्लास्टिक और धातु के रंगीन टॉयज
यही वजह है कि आज बाजार में बिकने वाले सस्ते प्लास्टिक खिलौनों को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
भोपाल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. हरि शंकर का कहना है –
"पेरेंट्स को बच्चों के खिलौनों की सामग्री और सर्टिफिकेशन जरूर देखना चाहिए। बहुत से आयातित खिलौनों पर ISI या BIS मार्क नहीं होते, जिससे उनमें जहरीले तत्वों की संभावना ज्यादा होती है।"
क्यों जरूरी हैं परंपरागत देसी खिलौने?
बच्चों को खिलौनों से पूरी तरह दूर करना संभव नहीं है, लेकिन सुरक्षित विकल्प चुनना माता-पिता के हाथ में है।
- लकड़ी का घोड़ा
- मिट्टी की पुतली
- कपड़े की गुड़िया
- धागे से बने झुनझुने
ये सभी पारंपरिक खिलौने न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि बच्चों को भारतीय संस्कृति और प्रकृति से जोड़ने का एक माध्यम भी हैं। सेहत सहेजने और बच्चों को सहज और संवेदनशील जीवनशैली का पाठ पढ़ाने के लिए परंपरागत खिलौनों की बहुत अहमियत है। हमारे अधिकतर देसी खिलौने ग्रामीण जन-जीवन की झलक और प्रकृति से जुड़ाव की सीख देते हैं। ट्रेडिशनल खिलौने बच्चों के लिए मनोरंजन के साथ ही जमीनी जुड़ाव और समझ को पोषित करने वाले प्यारे साथी बन सकते हैं।
छत्तीसगढ़ के बस्तर और हरियाणा के करनाल जैसे इलाकों में आज भी हस्तनिर्मित खिलौने बनाए जाते हैं, जो न केवल देसी कला को बढ़ावा देते हैं बल्कि बच्चों के लिए स्वास्थ्यवर्धक विकल्प भी हैं।
इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों का छुपा खतरा
अब बाजार में बैटरी और मोबाइल से चलने वाले इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की भरमार है। गुरुग्राम की डॉक्टर मोनिका शर्मा का कहना है कि ये बच्चों की नींद, एकाग्रता और मानसिक विकास पर नकारात्मक असर डालते हैं। 2025 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि लगातार 4-5 घंटे इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों या स्क्रीन वाले गैजेट्स से खेलने वाले बच्चों में चिड़चिड़ापन और ध्यान केंद्रित करने की समस्या ज्यादा देखी गई।
कैसे पहचानें खतरनाक खिलौने?
पेरेंट्स कुछ सरल तरीकों से हानिकारक खिलौनों की पहचान कर सकते हैं –
- मार्किंग देखें- ISI, BIS या CE मार्क न होने पर खिलौना न खरीदें।
- तेज गंध वाले खिलौनों से बचें- ये जहरीले रसायनों से बने होते हैं।
- बहुत चमकीले रंग वाले खिलौनों में लेड और क्रोमियम की मात्रा ज्यादा हो सकती है।
- सस्ते चीनी खिलौनों से परहेज करें।
सरकार की नई गाइडलाइंस
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने हाल ही 2025 में एक नई एडवाइजरी जारी की है, जिसमें कहा गया है कि भारत में बिकने वाले सभी खिलौनों पर अब क्वालिटी सर्टिफिकेशन अनिवार्य होगा। इसके बिना कोई भी विदेशी खिलौना बाजार में बेचा नहीं जा सकेगा। ऐसे में पैरेंट्स को अलर्ट होना होगा और अपने मासूम को खिलौना खरीदने से पहले गाइडलाइंस को चेक करना होगा, क्योंकि ये उनके बच्चे के सेहत से जुड़ा मामला है। जरा सी लापरवाही बच्चे को बड़े खतरे में डाल सकती है।
बच्चों के खिलौनों की सफाई क्यों जरूरी?
- खिलौनों की सफाई पर ध्यान देना भी उतना ही आवश्यक है।
- समय-समय पर खिलौनों को धोएं या साफ करें।
- मुलायम खिलौनों को धूप में रखें।
- दांत निकलने के समय बच्चे खिलौनों को चबाते हैं, जिससे बैक्टीरिया और वायरस शरीर में जा सकते हैं।
