Parenting Tips: टीनएजर बच्चा नए लोगों से मिलने से कतराता है? 5 तरीकों से दूर करें शर्मीलापन, बनेगा सोशल

Parenting Tips: आज के डिजिटल दौर में जहां बच्चे स्क्रीन के ज्यादा करीब हैं, वहीं असल दुनिया में सोशल होना उनके लिए चुनौती बनता जा रहा है। टीनएज बच्चों में आत्मविश्वास की कमी, शर्मीलापन या खुद को दूसरों से तुलना करना आम बात है। ऐसे में उनका सामाजिक विकास प्रभावित हो सकता है। अगर वक्त रहते इन बातों पर ध्यान न दिया जाए, तो बच्चे अंदरूनी तौर पर अकेलेपन का शिकार हो सकते हैं।
पैरेंट्स और शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सामाजिक माहौल में घुलने-मिलने के लिए प्रेरित करें। सोशल होना सिर्फ दोस्तों से बात करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कम्युनिकेशन स्किल्स, सहानुभूति और आत्मविश्वास का भी हिस्सा है।
5 टिप्स सोशल बनाने में करेंगे मदद
खुद पर भरोसा करना सिखाएं
टीनएज में आत्मविश्वास की कमी बच्चे को सामाजिक रूप से पीछे कर सकती है। उन्हें यह महसूस कराएं कि वे जैसे हैं, वैसे ही खास हैं। उनकी छोटी-छोटी उपलब्धियों की सराहना करें और उनकी बातों को ध्यान से सुनें। जब बच्चों को लगेगा कि उन्हें स्वीकार किया जा रहा है, तो वे खुद ही आगे बढ़कर लोगों से बात करने लगेंगे।
ग्रुप एक्टिविटीज में भाग लेने के लिए प्रेरित करें
बच्चों को स्कूल के प्रोजेक्ट्स, क्लब्स या स्पोर्ट्स जैसी ग्रुप एक्टिविटीज में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करें। ऐसे माहौल में वे नई चीजें सीखते हैं और अलग-अलग तरह के लोगों से मिलते हैं। इससे बातचीत करने, टीम वर्क और लीडरशिप जैसी सोशल स्किल्स विकसित होती हैं।
सुनना और समझना सिखाएं
सिर्फ बोलना ही नहीं, अच्छे से सुनना भी एक जरूरी सोशल स्किल है। बच्चों को सिखाएं कि सामने वाले की बात को ध्यान से सुनें और उस पर प्रतिक्रिया दें। इससे उनमें सहानुभूति और समझदारी आती है, जो उन्हें बेहतर दोस्त और अच्छा इंसान बनाती है।
मोबाइल और स्क्रीन टाइम को सीमित करें
फोन और टैबलेट की लत बच्चों को वास्तविक दुनिया से काट देती है। पैरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नज़र रखें और उन्हें बाहर खेलने या लोगों से मिलने के लिए प्रोत्साहित करें। ऑफलाइन इंटरैक्शन से ही सोशल स्किल्स का असली विकास होता है।
एक्सप्रेशन के मौके दें
बच्चों को अपनी भावनाएं खुलकर व्यक्त करने का मौका दें, चाहे वह परिवार के सामने हो या दोस्तों के साथ। उन्हें डायरी लिखने, पेंटिंग या ड्रामा जैसी क्रिएटिव एक्टिविटीज से जोड़ें। इससे वे अपने विचारों को व्यक्त करना सीखते हैं, जो सामाजिक रिश्तों को मजबूत बनाता है।