Parenting Tips: करियर को लेकर बच्चे के मन में है उलझन? 5 तरीकों से कर सकते हैं उसकी काउंसलिंग

how to guide children in career
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बच्चे की करियर से जुड़ी उलझन दूर करने के टिप्स।

Parenting Tips: टीनएजर बच्चे अपने करियर को लेकर कई बार उलझन में होते हैं। ऐसे में पैरेंट्स काउंसलर की भूमिका निभाकर उन्हें सही रास्ता दिखा सकते हैं।

Parenting Tips: कॉम्पिटिशन के इस दौर में बच्चों के सामने करियर को लेकर विकल्प तो कई हैं, लेकिन सही दिशा तय करना उतना ही चैलेंजिंग हो गया है। स्कूल के आखिरी सालों से लेकर कॉलेज में दाखिले तक, बच्चे अक्सर मेंटल प्रेशर और उलझन में रहते हैं। वे समझ नहीं पाते कि उनकी पसंद, काबिलियत और बाजार की मांग के बीच सही संतुलन कैसे बनाया जाए। ऐसे समय में पैरेंट्स की भूमिका बहुत अहम हो जाती है।

बच्चे को अगर समय रहते सही मार्गदर्शन न मिले, तो गलत दिशा में कदम उठा सकता है। ऐसे में माता-पिता होने के नाते बच्चों को सही गाइडेंस देना बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है। आइए जानते हैं ऐसे कुछ टिप्स जिनकी मदद से बच्चे की करियर काउंसलिंग कर सकते हैं।

5 टिप्स से करें बच्चे की करियर काउंसलिंग

बच्चे की दिलचस्पी, योग्यता पहचानें: बच्चे को किसी भी करियर की ओर धकेलने से पहले उसकी रुचियों और क्षमताओं को समझना जरूरी है। बातचीत करें, उसके पसंदीदा विषय, हॉबीज़ और स्वभाव पर ध्यान दें। यह समझना कि बच्चा किस क्षेत्र में खुद को सहज महसूस करता है, उसकी करियर प्लानिंग का पहला और सबसे मजबूत आधार हो सकता है।

प्रोफेशनल काउंसलर की मदद लें: अगर बच्चा बेहद कन्फ्यूज़ है और आप भी तय नहीं कर पा रहे हैं, तो करियर काउंसलर से मिलना फायदेमंद रहेगा। आजकल साइकोमेट्रिक टेस्ट जैसे टूल्स से बच्चे की सोच, स्किल्स और इंटरेस्ट को मापा जा सकता है। एक प्रोफेशनल गाइडेंस उसे ऐसे विकल्प सुझा सकता है, जो आपने शायद सोचे भी न हों।

करियर विकल्पों की सही जानकारी दें: कई बार बच्चे करियर विकल्पों को लेकर सिर्फ सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करते हैं। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें विभिन्न क्षेत्रों की सही और पूरी जानकारी दें। साथ ही, उन क्षेत्रों में भविष्य की संभावनाएं भी समझाएं।

प्रैक्टिकल एक्सपोज़र दें: अगर बच्चा किसी फील्ड को लेकर गंभीर है, तो उसे उस फील्ड का रियल एक्सपोज़र देना ज़रूरी है। उदाहरण के तौर पर, किसी डॉक्टर, इंजीनियर या आर्टिस्ट से मिलवाना, या संबंधित फील्ड की वर्कशॉप में भेजना। इससे बच्चे को समझ आएगा कि वह क्षेत्र वास्तव में कैसा है और वह खुद को उसमें कहां पाता है।

खुला संवाद रखें: बच्चे के साथ संवाद का एक ऐसा रिश्ता बनाना चाहिए जिसमें वह खुलकर अपनी बात और डर आपसे साझा कर सके। अक्सर बच्चे माता-पिता की अपेक्षाओं के डर से अपनी उलझनें जाहिर नहीं करते। अगर वे महसूस करें कि उनकी बात सुनी जा रही है और दबाव नहीं है, तो वे ज्यादा सहज होकर सही फैसला ले सकेंगे।

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