इसरो की लंबी छलांग, दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में एक बार फिर भारत का दबदबा

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By - ??????? ???? |21 Dec 2014 10:07 PM
इसरो की लंबी छलांग
भारत बहुउद्देशीय उपग्रहों के व्यावसायिक उपयोग की दृष्टि से उन्नत देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। इसरो बने बनाए उपग्रहों को बेचने, तकनीक, स्पेयर पाटर्स, कंसलटेंसी एवं अन्य सूचनाओं को तीसरी दुनिया के देशों के साथ बांटने की क्षमता में और वृद्घि कर रहा है।
दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में एक बार फिर भारत का दबदबा बढ़ गया है। 18 दिसंबर को श्रीहरिकोटा में जीएसएलवी मार्क-3 के सफल प्रक्षेपण से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब सबसे भारी उपग्रहों को भी पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में दक्ष हो गया है। इससे अरबों डॉलर के अंतरिक्ष बाजार में भारत और भी मजबूत प्रतिस्पर्धी बनकर उभरा है। इसके साथ ही पृथ्वी के वातावरण में वापसी करने में सक्षम क्रू मॉड्यूल का परीक्षण किया गया। यह अंतरिक्ष यात्रियों को भी अंतरिक्ष में भेज कर वापस ला सकता है। इसके जरिए तापीय दाब को सहते हुए पृथ्वी पर वापसी की संभावना सुनिश्चित की गई है। मॉड्यूल की पृथ्वी पर सफल वापसी से इसरो की ओर से भविष्य में अंतरिक्ष में मानव अभियान को भेजने की संभावना को बल मिला है। इसरो ने भू-स्थैतिक कक्षाओं में इनसैट उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए जियो सिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) को विकसित किया है। यह इसरो का सबसे भारी लांच व्हीकल है। इसमें रूस द्वारा निर्मित क्रायोजेनिक इंजनों का प्रयोग किया जाता है। भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के मामले में विदेशी निर्भरता को समाप्त करने के मकसद से 1990 में जीएसएलवी प्रोजेक्ट शुरू किया गया था।
इसरो ने जिस क्रू मॉड्यूल को भेजा था वह पृथ्वी पर वापसी के दौरान गुरुत्वाकर्षण के तहत 1600 डिग्री सेल्सियस के तापमान को आसानी से सहन कर लिया। इसरो ने पहली बार अपने रॉकेट के साथ इतना वजन स्पेस में भेजा। साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग ने इस रॉकेट के विकास के लिए इसरो को कई तरह के सेंसर मुहैया कराए तो मौसम विभाग ने मौसम के हर पहलू से रूबरू कराया। डीआरडीओ की आगरा लैब ने क्रू मॉड्यूल को समुद्र में उतारने के लिए खास पैराशूट बनाए। इसकी मदद से मॉड्यूल को बंगाल की खाड़ी में उतार लिया गया। अमेरिका, रूस और चीन के बाद अब भारत ने भी मानव को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता हासिल कर ली है। प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एसएलवी-3 से लेकर आईआरएस एवं इनसैट श्रेणी के उपग्रह की जरूरतों के मुताबिक बड़े तथा कम लागत के प्रक्षेपण यान तैयार करने का कार्य पूरा किया जा चुका है। स्वदेशी प्रक्षेपण यान को विकसित करना इस दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत जितना खर्च एक उपग्रह बनाने में करता था उससे कहीं अधिक उसे इसके प्रक्षेपण के लिए किसी विदेशी संस्था को देना पड़ता था। अब वह अपने बलबूते उपग्रहों का प्रक्षेपण कर रहा है। 1992 में अंतरिक्ष कार्यक्रम के व्यावसायिक उपयोग की दृष्टि से एटीआरआईसी की स्थापना की गई। इस कंपनी द्वारा अंतरिक्ष सुविधाओं के विपणन का कार्य किया जा रहा है। आज अंतरिक्ष कार्यक्रम के तीनों क्षेत्रों का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है। भारत द्वारा प्रथम शृंखला के उपग्रहों को अमेरिका की कोई कंपनी से खरीदा गया था। दूसरी, तीसरी, चौथी शृंंखला एवं विशिष्टीकृत उपग्रहों को भारत अब स्वयं बना रहा है और इसको दूसरे देशों को बेचा जा सकता है। इसके कलपुर्जे भी बेचे जाते हैं। देशी विदेशी एवं निजी, सरकारी संस्थाओं को ट्रांसपोंडर बेचा जा सकता है। उदाहरण के लिए 32 निजी इनसैट चैनल ट्रांसपोंडरों पर आधारित है।
अंतरिक्ष में बढ़ती व्यावसायिक संभावनाओं के मद्देनजर इसरो ने सितंबर 1992 में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के व्यावसायिक उद्देश्य के लिए अंतरिक्ष कॉरपोरेशन लिमिटेड नामक कंपनी का गठन किया। भारत अब विभिन्न देशों को पीएसएलवी द्वारा 400-450 किलोग्राम के उपग्रहों को प्रेषित करने की पेशकश कर रहा है। इस दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम पीएसएलवी-सी 3 द्वारा कोरियाई किटसैट और जर्मन ट्यूबसैट को अंतरिक्ष में स्थापित किया जाना था। इसके बाद पीएसएलवी-सी 3 में आईआरएस पी 5 के साथ बेल्जियम के ‘प्रोच’ और जर्मनी के ‘बर्ड’ को कक्षा में स्थापित किया गया। इसरो ने विश्व प्रसिद्घ अंतरिक्ष पत्रिका स्पेस न्यूज में पीएसएलवी यान पर ‘आपका स्वागत है’ का विज्ञापन दिया था। साथ ही अपने अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में 30 प्रतिशत कम प्रक्षेपण शुल्क की घोषणा की थी। इसके अलावा जीएसएलवी के सफल परीक्षण के बाद उसके व्यावहारिक उपयोग की कोशिश की जा रही है। इस दिशा में सफलता के साथ ही भारत विभिन्न देशों के समक्ष भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किए जाने वाले उपग्रहों को भी कम समय एवं कम शुल्क पर प्रक्षेपित करने का प्रस्ताव कर चुका है।जीएसएलवी डी-4 से जीएसएटी-4 के साथ भारत एवं इजरायल के बीच का टोवैक्स उपग्रह को भेजने संबंधी समझौता हुआ है। आईआरएस पी-3 से प्राप्त आंकड़ों के अंतरिक्ष बाजार में विपणन के लिए अमेरिकी कंपनी जीईओ-एसएटी से 10 वर्ष तक अनुबंध किया गया है। साथ ही अन्य सुदूर संवेदी उपग्रहों (आईआरएस) के आंकड़ों को भारत अपने पड़ोसियों के साथ बांटने की क्षमता रखता है।
इसरो ने इनसैट-2ई के 11 ट्रांसपोंडरों को इनटेलसैट को बेचकर 10 करोड़ डालर की कमाई की है। इसी के साथ भारत बहुउद्देशीय उपग्रहों के व्यावसायिक उपयोग की दृष्टि से उन्नत देशों की र्शेणी में शामिल हो गया है। इसके साथ ही इसरो इनसैट और आईआरएस र्शेणी के उपग्रहों को बने बनाए बेचने, तकनीकी, स्पेयर पार्ट्स, कंसलटेंसी एवं अन्य सूचनाओं को तीसरी दुनिया के देशों के साथ बांटने की क्षमता में और वृद्घि कर रहा है। अब इनका व्यावसायिक उपयोग संभावित है।
जहां तक अंतरिक्ष विकास कार्यक्रम की सामाजिक उपादेयता का प्रश्न है, इसकी उपस्थिति चारों ओर देखी जा सकती है। दूरसंचार क्षेत्र की क्रांति को अंतरिक्ष कार्यक्रम से जोड़कर देखा जा सकता है। इनसैट एवं आईआरएस र्शेणी के उपग्रहों द्वारा दूरदर्शन से लेकर शैक्षणिक विकास कार्यक्रमों तक का नियंत्रण एवं संचरण भारतीय समाज के लिए वरदान साबित हुआ है। काटरेसैट एवं हेमसैट तथा मेटसैट जैसे उपग्रह दैनंदिन आवश्यकताओं को नियंत्रित कर रहे हैं। इसी र्शेणी में एडुसैट का नाम भी लिया जा सकता है जाै शैक्षणिक कार्यक्रमों को सुदूर गांवों तक पहुंचाने में सक्षम हुआ है तथा इससे वयस्क शिक्षा को बढ़ावा मिला है। नया उपग्रह ‘सरल’ से सागर के मौसम, विज्ञान और ऋतुओं की सही भविष्यवाणी संभव हो सकी है। इसके अब इसरो जीएसएलवी मार्क-3 से पृथ्वी की कक्षा में भारी उपग्रहों को भी स्थापित कर सकेगा। दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में हम आगे हैं, लेकिन विश्व बाजार में हम बहुत पीछे हैं। यह हमारे राजनेताओं और नागारिक प्रशासन के अधिकारियों के सोच का विषय भी होना चाहिए।
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