विचारधारा के बगैर अस्तित्व में नहीं आ सकती रचना

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By - ???????? ????? |18 July 2015 6:30 PM
उत्तराखंड के बनने से लगाकर वामपंथी आंदोलन पर अनेक साक्षात्कारों में आई सामग्री नौटियाल के गहरे अध्ययन और चिंतन का प्रमाण है।
मीनाक्षी बोहरा-
किताबघर प्रकाशन की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेरे साक्षात्कार’ हिंदी लेखकों से साक्षात्कारों की सबसे बड़ी श्रंखला है, जिसमें हर दौर के बड़े और सम्मानित लेखकों की किताबें सम्मिलित हैं।
इस श्रंखला में नई कहानी आंदोलन के चर्चित कथाकार विद्यासागर नौटियाल की किताब हाल में आई है। इस किताब में नौटियाल साहब से अलग-अलग समय पर लिए गए एक दर्जन से अधिक साक्षात्कारों को पढ़ा जा सकता है।
नौटियाल को भारतीय जीवन के ऐसे लेखक के रूप में जाना जाता है, जो व्यक्ति, परिवार, समाज, जाति, धर्म, क्षेत्र जैसी अनेक इकाइयों की बीच यथार्थ की पहचान कर बेहद प्राणवान भाषाओं में कहानियां-उपन्यास लिखते थे।
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यहां एक बातचीत में उन्होंने कहा है, ‘विचारधारा के तहत रचना नहीं लिखी जा सकती। यानी कथा की रचना नहीं हो सकती। लेकिन विचारधारा के बगैर रचना भी अस्तित्व में नहीं आ सकती। किसी विचारधारा से जो दृष्टि प्राप्त होती है, रचना का जीवन और प्रकृति मुख्यतया उसी पर निर्भर करेगा।’
वहीं इधर के कथा परिदृश्य पर उनकी यह टिप्पणी कठोर वाले लगे लेकिन सच से अछूती तो नहीं है। ‘कहानी जीवन कीवास्तविकताओं से कटती जा रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि ठेठ देहातों से लेखन के क्षेत्र में प्रवेश करने वालों की संख्या नगण्य हो गई है।
कहानियों में अब माटी की गंध नहीं आती। बाजारू जीवन की, मध्यम वर्ग की पिटी-पिटाई कहानियां आकर्षित नहीं कर पातीं। कहानी का फोकस औरत का बदन होने लगा है। औरत के बदन के जायके के बगैर अगर कहानी में रस नहीं आता तो मेरे लिए उस कहानी का कोई अर्थ नहीं रह जाता।’
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पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के बनने से लगाकर वामपंथी आंदोलन और समकालीन लेखन पर अनेक साक्षात्कारों में आई सामग्री नौटियाल के गहरे अध्ययन और चिंतन का प्रमाण है। अच्छा होता अगर इस किताब में एक भूमिका भी होती।
पुस्तक- मेरे साक्षात्कार
लेखक- विद्यासागर नौटियाल
मूल्य- 270रुपए
प्रकाशक- किताबघर प्रकाशन, दिल्ली
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