नवरात्रि 2025: इस वर्ष 10 दिनों की होगी नवरात्रि! जानिए यूपी के 9 शक्तिपीठों का महत्व, जहां मिलेगा देवी का विशेष आशीर्वाद

इस वर्ष 10 दिनों की होगी नवरात्रि! जानिए यूपी के 9 शक्तिपीठों का महत्व, जहां मिलेगा देवी का विशेष आशीर्वाद
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नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं। यह पर्व सिर्फ उपवास और पूजा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह शक्ति और सम्मान का प्रतीक है।

लखनऊ: कल, यानी 22 सितंबर से, पूरे देश में शक्ति और भक्ति का महापर्व 'शारदीय नवरात्रि' का शुभारंभ हो रहा है। नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। इस बार नवरात्रि की शुरुआत विशेष शुभ योग में हो रही है, क्योंकि इस बार नवरात्रि 10 दिन की है,जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

22 सितंबर 2025 नवरात्र पहला दिन - मां शैलपुत्री

23 सितंबर 2025 नवरात्र दूसरा दिन - मां ब्रह्मचारिणी

24 सितंबर 2025 नवरात्र तीसरे दिन - मां चंद्रघंटा

25 सितंबर 2025 नवरात्रि तीसरे दिन - मां चंद्रघंटा

26 सितंबर 2025 नवरात्रि चौथा दिन - मां कूष्माण्डा

27 सितंबर 2025 नवरात्रि पांचवां दिन - मां स्कंदमाता

28 सितंबर 2025 नवरात्रि छठा दिन - मां कात्यायनी

29 सितंबर 2025 नवरात्रि सातवां दिन - मां कालरात्रि

30 सितंबर 2025 नवरात्रि आठवा दिन - मां महागौरी/ सिद्धिदात्री

01 अक्टूबर 2025 नवरात्रि नौवां दिन - मां सिद्धिदात्री

इस बार नवरात्रि की तृतीय दो दिन रहेगी, यह संयोग 9 साल बाद आता है इसलिए भी यह नवरात्रि के महीना में खास है, और शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर, रविवार को है। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:12 बजे से 07:05 बजे तक का है, जो कि अत्यंत फलदायी माना जा रहा है।

इसके अलावा, एक और शुभ मुहूर्त दोपहर 11:48 बजे से 12:35 बजे तक का है। इस बार नवरात्रि रविवार से शुरू हो रही है, जिससे 'सर्वार्थ सिद्धि योग' का निर्माण हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। नवरात्रि का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म की रक्षा की थी। इन नौ दिनों में मां दुर्गा की पूजा करने से सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो उत्तर प्रदेश मे 9 ऐसे शक्तिपीठों और मंदिरों हैं जहां सच्चे मन से जाने वाले हर भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इन मंदिरों का न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी बहुत अधिक है, जो इन्हें भक्तों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बनाता है।


उत्तर प्रदेश के 9 प्रमुख शक्तिपीठ और मंदिर


विंध्यवासिनी देवी शक्तिपीठ (मिर्जापुर):

विंध्याचल पर्वत पर स्थित यह मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां देवी सती के केश गिरे थे। इस मंदिर की एक और खासियत यह है कि यह एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां देवी के तीनों रूप- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती एक साथ विराजमान हैं। मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत है। नवरात्रि के दौरान यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं, जिनकी वजह से विंध्याचल में एक अद्भुत और आध्यात्मिक माहौल बन जाता है। इस मंदिर के दर्शन के लिए भक्तों को विंध्याचल की पहाड़ियों पर चढ़ाई करनी पड़ती है, जिससे उनकी भक्ति और श्रद्धा की परीक्षा भी होती है। मंदिर में होने वाली शाम की आरती विशेष रूप से आकर्षक होती है।

मां कड़ा देवी मंदिर (कौशांबी)

कौशांबी जिले में गंगा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर अत्यंत प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है। यह मंदिर मां सती के उस अंग से जुड़ा है, जो भगवान शिव के तांडव के दौरान गिरा था। नवरात्रि में इस मंदिर में विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। दूर-दराज से भक्त यहां देवी के दर्शन के लिए आते हैं, खासकर चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान। मंदिर के चारों ओर की शांति और गंगा नदी का प्रवाह एक दिव्य वातावरण बनाते हैं।

ललिता देवी शक्तिपीठ (नैमिषारण्य, सीतापुर):

यह शक्तिपीठ सीतापुर जिले के नैमिषारण्य में स्थित है, जिसे पुराणों में एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का हृदय गिरा था। इस स्थान का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यहीं पर ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो मां ललिता देवी के दर्शन और उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। इस मंदिर की वास्तुकला और शांतिपूर्ण वातावरण भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। नैमिषारण्य स्वयं में एक पवित्र स्थान है, और यहां पर स्थित ललिता देवी मंदिर इस जगह की आध्यात्मिकता को और भी बढ़ा देता है।


चंद्रिका देवी मंदिर (लखनऊ):

लखनऊ में गोमती नदी के तट पर स्थित यह मंदिर शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। माना जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर पूजा-अर्चना की थी। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल तो नहीं है, लेकिन इसकी अपनी एक विशेष मान्यता है। नवरात्रि के दौरान, इस मंदिर में विशेष रूप से भक्तों की भीड़ रहती है, जो माता के दर्शन और उनसे आशीर्वाद लेने आते हैं। चंद्रिका देवी मंदिर अपने शांत और रमणीय वातावरण के लिए भी जाना जाता है, जो भक्तों को आध्यात्मिकता से जोड़ता है।

चौकिया माता मंदिर (जौनपुर):

जौनपुर शहर में स्थित यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसके बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी। नवरात्रि में यहां विशेष मेले का आयोजन होता है, जिसमें हजारों भक्त हिस्सा लेते हैं। मंदिर की सादगी और धार्मिक वातावरण भक्तों को सुकून देता है। इस मंदिर में पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि मिलती है।


मां शीतला शक्तिपीठ ( प्रयागराज):

यह शक्तिपीठ प्रयागराज में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का हाथ गिरा था। नवरात्रि में यहां विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर की वास्तुकला और शांत वातावरण भक्तों को अपनी ओर खींचता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


मां महेश्वरी शक्तिपीठ (वाराणसी):

यह मंदिर काशी (वाराणसी) में स्थित है। यह मंदिर भी 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां देवी सती के शरीर का एक हिस्सा गिरा था। वाराणसी का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है, और इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों की भारी भीड़ रहती है।


मां शाकंभरी देवी शक्तिपीठ (सहारनपुर):

यह शक्तिपीठ सहारनपुर में स्थित है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां देवी सती का सिर गिरा था। मान्यता है कि यहां देवी शाकंभरी के रूप में भक्तों की रक्षा करती हैं। नवरात्रि में यहां विशेष मेलों का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त आते हैं।


मां पाटेश्वरी: (बलरामपुर)

यह शक्तिपीठ तुलसीपुर, जिला बलरामपुर, उत्तर प्रदेश में है। तुलसीपुर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, मां दुर्गा के शक्ति स्वरूपों में से मां पाटेश्वरी को समर्पित। “देवीपाटन मण्डल” नाम इसी देवी के नाम पर रखा गया है। यह मण्डल बलरामपुर, गोण्डा, बहराइच और श्रावस्ती जिलों को मिलाता है।

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