जानिए, श्राद्ध में क्यों कराया जाता है कौओं को भोजन

श्राद्ध पक्ष में पितरों की पसंद का भोजन बनाकर उसका भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति मर कर सबसे पहले कौए का जन्म लेता है और ऐसी मान्यता है कि कौओं का खाना खिलाने से पितरों को खाना खिलाने से पितरों को खाना मिलता है। जैसा की सभी जानते हैं कि श्राद्ध पक्ष पितरों का उत्सव है इसलिए कई प्रकार के मिष्ठान बनाकर पितरों को उसका भोग लगाया जाता है।
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इसी कारण श्राद्ध पक्ष में कौओं का विशेष महत्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर सबसे पहले कोऔॆ को खाना खिलाया जाता है। जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म कर रहा है वह एक थाली में सारा खाना परोसकर अपने घर की छत पर जाता है और जोर जोर से कोबस कोबस कहते हुए कौओं को आवाज देता है। थोड़ी देर बाद जब कोई कौआ जाता है तो उसको वह खाना परोसा जाता है। पास में पानी से भरा पात्र भी रखा जाता है। जब कौआ घर की छत पर खाना खाने के लिए आता है तो यह माना जा है कि जिस पूर्वज का श्राद्ध है वह प्रसन्न है और खाना खाने आ गया है।
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हिन्दू पुराणों ने कौऐ को देवपुत्र माना है। यह मान्यता है कि इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौऐ का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेता युग की है जब राम ने अवतार लिया और जयंत ने कौऐ का रूप धर कर सीता को घायल कर दिया था। तब राम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी। जब उसने अपने किए की माफी मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है।
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