सही नंबर डायल कैसे करें,विश्व के चार प्रमुख धर्मों का उदय इस धरती से हुआ है

सही नंबर डायल कैसे करें,विश्व के चार प्रमुख धर्मों का उदय इस धरती से हुआ है
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विज्ञान ने चाहे कितनी भी प्रगति कर ली हो, लेकिन योगानंद की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
ब्रिटिश लेखक रूडयार्ड किपलिंग ने लगभग 125 साल पहले ‘द बैलेड ओफ ईस्ट एंड वेस्ट’ नामक गाथागीत लिखा था। इसकी प्रथम दो पंक्तियां ‘पूर्व पूर्व है, व पश्चिम पश्चिम/ इन दोनों का मिलन कभी संभव नहीं है’, को आज तक सन्दर्भ में लिया जाता है। पश्चिमी देशों के मशीनों व तकनीक से भरे अत्याधुनिक जीवन स्तर को देखते हुए यह प्रश्न आपके मन में आ सकता है कि आखिर पूर्व पश्चिमी को दे भी क्या सकता था? लेकिन जिस प्रकार से योग धीरे धीरे अमेरिकी जीवन का अभिन्न अंग बनता जा रहा है उससे यह पता चलता है कि यह पूर्व द्वारा पश्चिमी को दिया गया एक महत्वपूर्ण उपहार है। फिलिप गोल्डबर्ग अपनी पुस्तक ‘अमेरिकन वेद’ में कहते हैं कि पूर्व से पश्चिमी की ओर विचारों के प्रवाह में ‘वेदांत-योग’ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनका अभिप्राय यह नहीं है कि वेद व वेदांत यहां धर्मग्रंथों के रूप में लोकप्रिय हो चुके हैं, परन्तु ¬गवेद से उपजा यह सार ‘एकम सत विप्रहा बहुधा वेदांती (सत्य एक ही है, विद्वान लोग इसे अलग-अलग नामों से जानतें हैं)’ आज पश्चिमी जनजीवन में भी स्वीकार्य हो चुका है।
मार्क ट्वेन ने भारत को ‘मानव जाति के पालने (क्रेडल)’ की संज्ञा दी थी। आध्यात्मिकता, दैवीयता, व रहस्यवाद (मिस्टीसिज्म) के क्षेत्र में इस देश का लंबा व गौरवशाली इतिहास रहा है। भारत के जीवंत आध्यात्मिक वातावरण का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के चार प्रमुख धर्मों हिन्दू, बौद्ध, जैन व सिख, का उदय इस धरती से हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि पारसी धर्म की जड़ें भी कहीं ना कहीं भारत से जुड़ी हुई हैं। विद्वान यह मानते हैं कि सनातन धर्म के सिद्धान्त विविध विचारों, विश्वासों और संप्रदायों के उद्भव के लिए अनुकूल हैं। इस पृष्ठभूमि के बाद, आइये वर्तमान में लोटें! यह मात्र एक संयोग ही है कि पिछले दिनों दुनिया के दो देशों में रिलीज हुई दो फिल्मों को अलग-अलग प्रतिसाद मिल रहा है। हिन्दी फिल्म ‘पीके’ ने भारत में काफी हलचल मचा रखी है। शुरू से ही हिन्दू दक्षिणपंथी संगठनों के निशाने पर रही इस फिल्म को काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। धार्मिक अल्पसंख्यक कार्ड खेलने के लिए जाने जाने वाली समाजवादी पार्टी के नेता तथा उतरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आनन फानन में इस फिल्म को टैक्स फ्ऱी घोषित कर दिया। बिहार के जनता दल (यू) ने भी सपा के कदमों का अनुसरण किया। दूसरी ओर इसी समय ‘अवेक: द लाइफ ऑफ योगानंद’ नामक फिल्म अमेरिका में रिलीज हुई है। यह फिल्म आध्यात्मिक ओज से भरपूर है। दोनों फिल्मों का ताना बाना धर्म व आध्यात्म के चारों ओर बुना गया था। अब इसे दुर्भाग्य कह लीजिये या नियति का खेल, पर अभी फिल्म ‘अवेक’ भारत में नहीं दिखाई जा रही है।
रहस्यवाद (मिस्टीसिज्म) क्या है? शब्द्कोष के अनुसार यह वह विश्वास है जो हमें बताता है कि आध्यात्मिक सत्य, या परमात्मा का प्रत्यक्ष ज्ञान व्यक्तिपरक अनुभव के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है (अंतज्र्ञान या अंतर्दृष्टि के रूप में)। दैवीयता की गूढ़ता की प्राप्ति की चाहत सभी मानव आबादी व संस्कृतियों में फैली हुई है। कहा जाता है कि एक साधक आध्यात्मिकता के माध्यम से परम सत्य का एहसास कर सकता है। लेकिन कुछ चीजें हैं जो देवत्व की आम (बाह्य) अभिव्यक्ति का गठन करती हैं। विभिन्न प्रकार के धर्म, संप्रदाय, अनुष्ठान, प्रथाएं व सिद्धांत इसके अन्तर्गत आतें हैं। र्शी चिन्मय ने ठीक ही कहा है-‘रहस्यवाद, बेचारा रहस्यवाद! जब इसे कम करके आंका जाता है और इसका सरलीकरण किया जाता है तो यह अपने मूल क्षेत्र से नीचे आ जाता है और धर्म के साथ खड़ा हो जाता है।’ संक्षेप में यह कहावत हम मनुष्यों के उस व्यवहार की व्याख्या करती है जिसके तहत हम 8000 मील की दूरी पर बसे दो अलग-अलग देशों भारत व अमेरिका में चल रही दो अलग-अलग फिल्मों पर प्रतिक्रिया दे रहें हैं। हाल ही में, मुझे शिकागो में ‘अवेक : द लाइफ ओफ योगानंद’ के प्रीमियर शो में जाने का मौका मिला। पाओला डी ़फ्लेरिओ व लीसा लीमान द्वारा निर्देशित यह फिल्म स्वामी योगानंद के जीवनवृत पर बनी है व उनके जीवन व शिक्षाओं को दिखाती है। परमहंस योगानंद (1893-1952) को योग को पश्चिमी दुनिया तक पहुंचाने का र्शेय दिया जाता है। सन 1920 में मात्र 27 साल की उम्र में अपने गुरू र्शी युक्तेश्वर के निर्देश पर योगानंद एक आध्यात्मिक मिशन पर अमेरिका आए। उन्होंने योग को माध्यम बनाते हुए अमेरिकियों को दैवीयता व आध्यात्मिकता की अनुभूति करवाई। उन्होंने सत्य ही कहा था कि ‘हम मात्र एक शरीर नहीं हैं, बल्कि चेतना के सागर हैं।’ परमहंस आगे कहते है कि ‘भारत के योगियों व संतों तथा जीसस द्वारा सदियों पहले जाने व सीखे गए इस ध्यान योग के विज्ञान के द्वारा कोई भी साधक अपने चेतना के दायरे को सर्वज्ञता तक विस्तृत कर सकता है व अपने हृदय में ईश्वरीय सार्वभौमत्व जगा सकता है।’
आज ध्यान, योग, कर्म, गुरु यहां तक कि मोक्ष जैसे शब्द अमेरिकी शब्दकोश का हिस्सा बन चुके हैं। पुस्तक ‘ट्रांससेन्डेंट इन अमेरिका: हिन्दू इन्स्पायर्ड मेडिटेशन मूवमेंट एज न्यू रिलिजन’ की लेखिका लोला विलियमसन के अनुसार अमेरिका में हिन्दुत्व से प्रेरित ध्यान योग को प्रारंभ करने का र्शेय स्वामी विवेकानंद को दिया जाना चाहिए। अपने पक्ष में तर्क देते हुए लेखिका अमेरिका के इतिहास में हुए तीन प्रमुख धार्मिक आंदोलनों का हवाला देती हैं, जिन्हें उन्होंने ‘नए धर्म (न्यू रिलिजन)’ की संज्ञा दी है- योगानंद का सेल्फ रियलाइजेशन फाउंडेशन (एसआरएफ), महर्षि महेश योगी का ट्रांससेंडेंटल मेडिटेशन (टीएम) व स्वामी मुक्तानंद का सिद्ध योगा। 1893 से लेकर अगले कुछ वर्षों में स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी दुनिया को पहली बार सनातन धर्म का परिचय कराया था, इसके बाद 1920 में जब योगानंद ने अमेरिका के तट पर कदम रखा तो उन्होंने इस परंपरा को बखूबी आगे बढ़ाया। उन्होंने जिंदगी के अगले 30 वर्ष अमेरिका में गुजारे व पूर्व के ज्ञान व दर्शन को पश्चिम तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
परमहंस योगानंद ने ‘क्रिया योग’ को पुनर्जीवित किया व दुनिया भर में (मुख्यत: पश्चिम में) प्रचलित किया। भारत से आए इस भूरे संन्यासी ने पश्चिमी दुनिया को मन व आत्मा का विज्ञान सिखाने के लिए योग का सहारा लिया। अब आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि योग शरीर से किया जाता है परन्तु इसका वास्तविक संबंध तो मन व मस्तिष्क से है। आज अमेरिका में योगा सेंटर खोजना, कॉफी शॉप खोजने जैसा आसान है व इसका पूरा र्शेय योगानंद के दशकों पहले किए पर्शिम को जाता है।
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