श्राद्ध स्पेशल: पूर्वजों के सम्मान का महापर्व ''श्राद्ध'', जानिए कितने प्रकार के होते हैं श्राद्ध

श्राद्ध स्पेशल:  पूर्वजों के सम्मान का महापर्व श्राद्ध, जानिए कितने प्रकार के होते हैं श्राद्ध
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विश्वामित्र स्मृति, निर्णय सिंधु तथा भविष्य पुराण में श्राद्धों का वर्णन पूर्णरूप से किया गया है।
नई दिल्ली. भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष कहे जाते हैं। ये समय होता है पूर्वजों का ऋण यानी कर्ज उतारने का। पितृपक्ष यानी महालया में कर्मकांड की विधियां और विधान अलग-अलग हैं। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं। इस दौरान पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध किया जाता है। आपको बता दें कि विश्वामित्र स्मृति, निर्णय सिंधु तथा भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्धों का वर्णन किया गया है। जैसे नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिंडन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धयर्थ, कर्मांग, तीर्थ, यात्रार्थ, पुष्ट्यर्थ।
सबसे पहले होता है नित्य नित्य श्राद्ध। यह श्राद्ध रोज किया जाता है। रोज किए जाने वाले इस श्राद्ध को जल से संपन्ना किया जाता है। उसके बाद नैमित्तक श्राद्ध का वर्णन किया गया है। ये किसी को निमित्त मानकर विशेष अवसरों पर किया जाता है। और फिर काम्य श्राद्ध। किसी कामना विशेष या सिद्धि की प्राप्ति के लिए यह श्राद्ध किया जाता है। जैसे-पुत्र की प्राप्ति आदि।
उसके बाद वृद्धि श्राद्ध का वर्णन है। यह श्राद्ध सौभाग्य वृद्धि के लिए किया जाता है। इसमें वृद्धि की कामना रहती है जैसे संतान प्राप्ति या परिवार में विवाह आदि मांगलिक कार्यो में। उसके बाद सपिण्डन श्राद्ध है। सपिण्डन शब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना है। शास्त्रों के अनुसार जब जीव की मृत्यु होती है, तो वह प्रेत हो जाता है। प्रेत से पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डन कहलाती है। फिर पार्वण श्राद्ध आता है। यह श्राद्ध अमावस्या के विधान के अनुरूप किया जाता है। पिता, दादा, परदादा, सपत्नीक और दादी, परदादी के निमित्त किया जाता है। इसे पर्व की तिथि पर किया जाता है।
गोष्ठी श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्ना किया जाता है। कर्मांग श्राद्ध किसी संस्कार के अवसर पर किया जाता है। कर्मांग का अर्थ कर्म के अंग से होता है। इसमें विभिन्न संस्कारों जैसे सीमन्तोन्नायन, पुंसवन आदि को प्रमुखता दी गई है। शुद्धयर्थ श्राद्ध से शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं, वे शुद्धयर्थ श्राद्ध कहलाते हैं। फिर तीर्थ श्राद्ध तीर्थ पर जाने पर किए जाते हैं। यात्रार्थ श्राद्ध यात्रा की सफलता के लिए किया जाता है। और अंत में पुष्टयर्थ श्राद्ध है। पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं वे पुष्ट्यर्थ श्राद्ध कहलाते हैं। इसमें शरीर के स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक उन्नति में बढ़ोतरी होती है। ये इस प्रकार के श्राद्ध है।

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