प्रिया प्रकाश वारियर की आंखों से चांदमारी, लोकतंत्र के सिर से टला असहिष्णुता का खतरा

प्रिया प्रकाश वारियर की आंखों से चांदमारी, लोकतंत्र के सिर से टला असहिष्णुता का खतरा
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प्रिया प्रकाश वारियर ने आंखों से चांदमारी क्या कि भारत के लोकतंत्र पर जो असहिष्णुता का खतरा मंडरा रहा था तो लगभग टल गया है।

प्रिया प्रकाश वारियर ने पहले भौंहें नचाईं फिर दो बड़ी-बड़ी आंखों में से एक को बड़ी अदा के साथ दबाया और देखते ही देखते सवा अरब आबादी में से सवा करोड़ लोग उस पर मर मिटे। ये अधिकांशत: वही थे, जो किसी न किसी वजह से प्यार की बिंदास अभिव्यक्ति के खिलाफ अड़े दिखते आए हैं। इनमें वे भी हैं, जो मन मन भावे, मूढ़ हिलावे टाइप के हैं।

जो एक सांस में प्यार के खिलाफ और दूसरी सांस में नफरत के सदाचारी प्रदर्शन के पक्ष में डटे रहते हैं। उसने दो उंगलियों और एक अंगूठे को जोड़कर अंखियों से तड़ातड़ चांदमारी की। उसके ‘चंद्रमा' ने मर मिटने का सजीव अभिनय किया। नाबालिग कौतुक अक्सर इसी तरह के होते हैं। यह अलग बात है कि इसी तरह से कुछ चांद कालांतर में चांदमारी करने वाली की संतति के चंदा मामा बन जाते हैं।

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कुछ सेकंड की यह क्लिप सोशलमीडिया पर नमूदार हुई तो उसे देखने, समझने और परखने के लिए सरोकारधर्मी एक्टिविस्ट अनायास ही एकमत हो लिए। यह विरल फिनोमिना है। तराजू के पलड़े में मतभेद के मेंढकों को बड़ी कुशलता के साथ तोल ले जाने जैसा। प्यार की ज़रा सी अराजक हवा क्या बही तो लगा कि असहिष्णुता की वजह से लोकतंत्र के सिर पर मंडराता आसन्न खतरा लगभग टल गया है।

अब स्थिति तनावपूर्ण भले ही हो लेकिन है नियंत्रण में। वीडियो क्लिप के भीतर नेपथ्य में मलयाली गीत बजता रहा और उसमें निहित अल्हड़ भावनाएं पूरे मुल्क के मानसिक आसमान में बिना डोर वाले कनकौए की तरह ऊंची उड़ान भरने लगीं। विचारकों ने एक स्वर में कहा-हां जी हां, यही प्यार है। जानने लायक बात यह है कि विचारवीर इतनी सरलता से किसी बात पर एकमत नहीं होते।

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वे किसी की बात में हां में हां बड़ी मुश्किल से मिलाते हैं। वे ‘न न' करते, अक्सर नफ़रत के सदाचारी स्वरूप के पक्ष में जा खड़े होते हैं। वे एक लम्पट का विरोध करते हुए, दूसरे दुराचारी के समर्थन में जा डटते हैं। एक समय था कि जब प्यार के चर्चे हर जुबान पर चढ़ जाते थे, अब विमर्श आनन-फानन में ‘वायरल' हो जाते हैं। पहले चर्चा के चरखे पर वाचालता की कपास काती जाती थी।

अब दृश्य श्रव्य तकनीक के माध्यम से फैल जाती है। एक वक्त ऐसा भी गुजरा जब सोनम गुप्ता की बेवफाई कदीमी करंसी नोट पर लिखित प्रारूप में सामने आई। जनता पुराने करंसी नोटों को नए नोटों में तब्दील करने के लिए एटीएम के सामने लाइन में खड़े होकर आगत विकास, काले धन और सोनम गुप्ता की बात वक्तकटी के लिए करते थे।

सवा करोड़ लोग अंखियन की गोलीबारी देख चुके हैं। इस दिखावटी आंकड़े में वे लोग सम्मलित नहीं हैं, जिन्होंने इसे दूसरों के मोबाइल के जरिये ताकाझांकी करते हुए निहारा है। गुपचुप देखा-देखी का अपना परम आनंद है। पराई चीज को अपनेपन से अपनाना मितव्ययता है और माले मुफ्त, दिल बेरहम वाला मजेदार उपक्रम भी है।

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