Logo
election banner
सिनेमा हो या राजनीति, दोनों में सफल वही होता है, जिसे आम लोगों का प्यार-सपोर्ट मिलता है। यही वजह है कि कई मशहूर फिल्म सितारे, राजनीति में भी आते रहे हैं। इनमें से कुछ तो सफल हुए लेकिन कई फिल्म सितारे वापस अपनी फिल्मी दुनिया में लौट गए।

Film Stars In Politics: सिनेमा और राजनीति में काफी समानता दिखती है, वो इसलिए कि इन दोनों ही दुनिया में सब कुछ असमंजस भरा होता है। एक समय तक जिस फिल्म स्टार की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाती रहती हैं, अचानक कोई एक फ्लॉप फिल्म उसका करियर चौपट कर देती है। यही स्थिति राजनीति में भी है। एक चुनावी हार किसी नेता के राजनीतिक जीवन को रसातल में ले जाती है। दोनों ही दुनिया में सबसे बड़ी भूमिका उन लोगों की होती है, जो उन्हें चाहते हैं। फिल्मी दुनिया में ये चाहने वाले दर्शक होते हैं और राजनीति में समर्थक। 

सिनेमा-राजनीति का रिश्ता
बीते कई दशक से फिल्म और राजनीति की दो अलग दुनिया, एक-दूसरे में समाहित होती जा रही हैं। जिस अभिनेता की एक झलक पाने को दर्शक घंटों इंतजार करते थे, वही अभिनेता लोगों से वोट के लिए हाथ जोड़े खड़ा नजर आने लगता है। ऐसा ट्रेंड सिर्फ हिंदी फिल्मों में ही नहीं है, दक्षिण भारत में भी कई सालों से दिख रहा है। 

कई फिल्म कलाकारों ने आजमायी किस्मत
सिर्फ समाजसेवा की इच्छा रकर राजनीति में आने वाले सुनील दत्त जैसे अभिनेता तो अब नहीं रहे, जिनके दिल में समाज के प्रति वास्तव में सहानुभूति और दर्द बसता था। लेकिन उनके बाद भी कई फिल्म स्टार्स जैसे-अमिताभ बच्चन, राज बब्बर, शत्रुघ्न सिन्हा, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, जयाप्रदा, जया बच्चन, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, गोविंदा, परेश रावल और मिथुन चक्रवर्ती अपने दौर में राजनीति में आए हैं। इनमें से बहुत कम ही सफल हुए और जो नहीं चल सके, वे वापस लौट गए। इसलिए कि राजनीति का आशय सिर्फ अपनी फिल्मी लोकप्रियता के दम पर चुनाव जीतने तक सीमित नहीं होता है।

समाज सेवा के लिए आगे आना, फिर मंच से अपनी आवाज जनता तक पहुंचाना इसमें शामिल होता है। फिल्म से राजनीति में कई अभिनेता आए, कुछ की ईमानदारी पर लोगों को भरोसा भी रहा, पर उनकी पारी लंबे समय तक नहीं चली। हालांकि कई कलाकार आज भी राजनीति में सक्रिय हैं।

राजनीतिक दलों को होता है फायदा
यह सवाल आज भी बरकरार है कि आखिर फिल्म कलाकारों का राजनीति में आने का असल मकसद क्या होता है? उनकी अपनी अलग दुनिया है, चाहने वालों की भीड़ है, अथाह पैसा है फिर उनको राजनीति में ऐसा क्या मिलता है, जो पाने की उनकी चाहत खत्म नहीं होती? जहां तक राजनीतिक पार्टियों का सवाल है तो नामी अभिनेताओं के प्रति उनका सिर्फ इतना स्वार्थ होता है, कि उन्हें किसी मुश्किल सीट पर आसान जीत के लिए सामने लाया जाता है। पार्टियों के लिए भीड़ जुटाने में भी इन सिनेमा के कलाकारों की भूमिका रहती है।

कुछ पार्टियों ने अपनी साख की खातिर कुछ अभिनेताओं या अभिनेत्रियों को राज्यसभा में भेजा है। जया बच्चन और जया प्रदा ऐसी ही अभिनेत्रियां रहीं, जिनका राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी राजनीति से अलग रखकर राज्यसभा में अपनी पहचान बनाने के उपयोग किया। पहले यही काम राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत राज्यसभा सीटों पर सत्ताधारी पार्टी करती रही हैं। नरगिस, दिलीप कुमार और रेखा जैसे कलाकारों को भी इसी रास्ते संसद में भेजा गया था।  

कम ही कलाकार हुए भरपूर सफल
फिल्म और राजनीति ये दोनों ही ऐसी दुनिया है कि यदि इनमें संभलकर चलें तो जनता सिर पर बैठाती है। लेकिन जरा चूके तो सारी लोकप्रियता धराशायी होते देर नहीं लगती। यही वजह है कि अपनी प्रसिद्धि को देखते हुए फिल्मों के कलाकार राजनीति में आ तो जाते हैं, पर कम ही लंबी पारी खेल पाने में सफल होते हैं। हिंदी फिल्मों के ऐसे कलाकारों में सुनील दत्त, हेमा मालिनी और स्मृति ईरानी ही हैं, जिन्होंने कई चुनाव जीते और अपनी जगह बनाकर रखी।

लेकिन अमिताभ बच्चन, गोविंदा, विनोद खन्ना, राज बब्बर, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती और परेश रावल हिंदी फिल्मों के ऐसे कलाकार हैं, जो राजनीति में लंबी पारी नहीं खेल पाए। इसलिए कि उन्होंने अपनी फिल्मी लोकप्रियता को राजनीति में भुनाने की कोशिश की, जो जनता को रास नहीं आई। कभी वे खुद राजनीति से हट गए, कभी जनता  ने नकार दिया।

दास्तां है ये कुछ अलग
फिल्म के पर्दे की अपनी अलग ही दुनिया, अलग ही दास्तां है। यहां सफलता पर दर्शकों की तालियों की गूंज बार-बार सुनाई देती है। लेकिन अभिनेता से नेता बनने के बाद मन में दबी-छुपी आशंकाएं जन्म लेती हैं। ऐसे में अपनों से टकराहट, शिकायत और उलाहने के दौर के बीच की भी एक दुनिया होती है, जहां कई बार कोई साथ नहीं होता। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना के राजनीति में आने और फिर लौटने के बाद उनकी छटपटाहट को आसानी से समझा जा सकता है।

धर्मेंद्र के बाद उनके बेटे सनी देओल का मन भी राजनीति से बहुत जल्द उचाट हो गया, जबकि राजेश खन्ना और विनोद खन्ना को फिल्म के असफल होने और राजनीति में उपेक्षा का अंतर समझ में आया था। सिनेमा और राजनीति के आपसी रिश्तों में ऐसे किस्सों की कमी नहीं है

2024 में ये सितारे लड़ेंगे चुनाव
बहरहाल, इस बार के लोकसभा चुनाव में कंगना रनोट, अरुण गोविल राजनीति के मैदान में उतरने वाले नए फिल्मी चेहरे हैं। जबकि गोविंदा 20 साल के लंबे अरसे बाद पार्टी बदलकर फिर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा भी पार्टी बदलकर संसदीय चुनाव मैदान में हैं। देखना दिलचस्प होगा कि इनके साथ जनता कैसा रुख अपनाती है।  

प्रस्तुति- हेमंत पाल
 

5379487