छत्तीसगढ़/ मंत्रिमंडल का आकार बढ़ाना आसान नहीं, ऐसे हो सकता है समस्या का हल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दिल्ली में व्यस्त हैं। उनकी राहुल गांधी से मुलाकात नहीं हो सकी है। राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी का शिमला स्थित नव-निर्मित घर गृह-प्रवेश से पहले देखने गए हुए थे। शुक्रवार देर शाम लौटे।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 22 Dec 2018 1:22 AM GMT
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दिल्ली में व्यस्त हैं। उनकी राहुल गांधी से मुलाकात नहीं हो सकी है। राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी का शिमला स्थित नव-निर्मित घर गृह-प्रवेश से पहले देखने गए हुए थे। शुक्रवार देर शाम लौटे।
शनिवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राहुल गांधी से मिलकर मंत्रिमंडल के आकार-प्रकार और समाधान पर विमर्श करेंगे।
राहुल गांधी के परामर्श के अनुसार भूपेश बधेल अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे। मंत्रिमंडल के साथ ही नए प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए उपयुक्त नेतृत्व की भी तलाश को अंतिम रूप देना है।
दिनभर ऐसे चला बैठकों का दौर
सुबह सबसे पहले मुख्यमंत्री बघेल ने प्रभारी पीएल पुनिया के आवास की ओर रुख किया। मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा की। अपनी ओर से उन्होंने जो फेहरिस्त बढ़ाया उस पर विस्तार से मंथन हुआ। सार कुछ नहीं निकला। आश्चर्यजनक ये रहा कि भूपेश बघेल से मुलाकात के बाद मंत्रिमंडल का चित्र साफ नहीं हुआ लेकिन प्रभारी पुनिया लखनऊ के लिए उड़ गए।
पुनिया के आवास से निकलकर मुख्यमंत्री का काफिला वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा के आवास की ओर रवाना हुआ। मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल पर उनसे भी राय ली। उसके बाद शाम को सभी से रायशुमारी के बाद भूपेश बघेल अहमद पटेल से लंबी गुफ्त-गू की। माना जा रहा है कि वहीं फेहरिस्त को अंतिम रूप दिया गया जिसपर शनिवार को राहुल गांधी से भी मशविरा मुख्यमंत्री करेंगे।
मंत्रिमंडल का आकार बढ़ाना आसान नहीं
संविधान विशेषज्ञ डा. सुकुमार पाठक ने बताया कि संसद से पारित तय प्रावधानों के मुताबिक ये कानून पारित कर दिया गया है कि जिस राज्य में केवल विधानसभा है वहां विधायकों की कुल संख्या का 15 फीसदी मंत्रिमंडल का आकार होगा। जिन राज्यों में विधानसभा और विधान परिषद दोनों हैं वहां दोनों सभाओं में विधायक और विधान पार्षद की कुल संख्या का 10 फीसदी ही मंत्रिमंडल का आकार होगा।
छग में चूंकि एक ही सभा है इसीलिए वहां कुल विधायकों के 15 फीसदी के हिसाब से मंत्रियों की संख्या मुख्यमंत्री समेत 13 है। उन्होंने कहा कि इस नियम को बदलने के लिए विभिन्न दलों के बीच पहले एकराय कायम करनी होगी। फिर उसे केंद्र सरकार द्वारा संसदीय पटल पर रखकर कानून में संशोधन कराना होगा पूरी प्रक्रिया बेहद जटिल है। आसान नहीं।
ऐसे हो सकता है समस्या का हल
संसदीय मामलों के विशेषज्ञ त्रिमूर्ति भगीरथ सिन्हा का कहना है कि अगर राज्य सरकार को विधायकों को एडजस्ट करना है तो उन्हें संसदीय सचिव और बोर्ड के अध्यक्ष के पद को लाभ के पद से विधानसभा द्वारा हटाकर आराम से एडजस्ट करते हैं।
इससे राज्यमंत्री के रूप में विधायकों की सेवा विभिन्न कैबिनेट मंत्रियों के साथ अटैच किया जा सकेगा। लेकिन उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि ऐसे सभी पदों के लिए विधानसभा से पारित कराना होगा कि ह्यये लाभ के पद में नहीं आतेह्ण अन्यथा सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के हिसाब से विधायकों को लाभ का पद देने पर अगर किसी ने कोर्ट में चुनौती दी तो संबंधित विधायक की सदस्यता जा सकती है। पूर्व में विस से पारित नहीं कराने के कारण ही दिल्ली सरकार के संसदीय सचिवों का पद इसी वजह से गंवाना पड़ा था।
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