भाजपा-कांग्रेस ने दुत्कारा, तो सपा ने चौधरी अजित सिंह को दिया सहारा

भाजपा-कांग्रेस ने दुत्कारा, तो सपा ने चौधरी अजित सिंह को दिया सहारा
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इससे पहले सपा भी रालोद का विलय करने की शर्त पर अजित सिंह को अपने साथ लाने की बात कह चुकी थी।
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नई दिल्ली. संसद में रालोद के कदम रखने के लिए चौधरी अजित सिंह को अंतिम चरणों में समाजवादी पार्टी ने गठजोड़ की राजनीति के तहत राज्यसभा भेजने का फैसला ले ही लिया, जिसके लिए सपा को राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल कर चुके बिशम्बर निषाद का टिकट काटकर बलि देनी पड़ी।
सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने आखिर मुलायम सिंह यादव की सपा से हाथ मिलाकर राज्यसभा जाने का प्लेटफॉर्म तैयार कर ही लिया। राज्यसभा में 16 राज्यों की रिक्त होने वाली 58 सीटों के लिए आगामी 11 जून को होने वाले द्विवार्षिक चुनाव के लिए जारी नामांकन प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश की 11 में से सात सीटों के लिए सपा के सभी सातों घोषित उम्मीदवारों ने नामांकन भी दाखिल कर दिये हैं, लेकिन सपा ने चौधरी अजित सिंह के लिए नामांकन दाखिल कर चुके बिशम्बर निषाद को फिर से राज्यसभा जाने से रोक दिया है यानि उसका टिकट काट दिया है। दरअसल रविवार को यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चौधरी अजित सिंह के दिल्ली में बसंतकुंज स्थित आवास पर यूपी में केबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ हुई बैठक में सपा-रालोद के गठबंधन का फैसले को अंजाम दिया गया। इससे पहले अजित सिंह ने कल शनिवार को मुलायम सिंह यादव के साथ भी बैठक की थी। इस गठबंधन का सहारा लेकर सपा ने चौधरी अजित सिंह को राज्यसभा में दाखिल करने का भी फैसला किया। गौरतलब है कि इससे पहले भाजपा ने अजित सिंह को विलय करने की शर्त पर अपने साथ मिलाने का फरमान सुना दिया था और उसके बाद कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी ने भी रालोद प्रमुख को खाली हाथ वापस कर दिया था। ऐसे में राज्यसभा जाने की जुगत में लगे चौधरी अजित सिंह ने एक बार फिर समाजवादी पार्टी की साइकिल पर अपने नल की सवारी करने की मुहिम शुरू की, जो पटरी पर आ गई और उनके राज्यसभा जाने की मुराद भी मुलायम सिंह ने पूरी कर दी। हालांकि सपा की इस रणनीति पर सवाल भी उठने लगे हैं कि आखिर अजीत सिंह को राज्यसभा के लिए समर्थन देने के पीछे सपा की कौन सी रणनीति है? इसके दूरगामी परिणाम क्या रहेंगे, ये भविष्य के गर्भ में हैं। गौरतलब है कि इससे पहले सपा भी रालोद का विलय करने की शर्त पर अजित सिंह को अपने साथ लाने की बात कह चुकी थी।
सपा व रालोद की मजबूरियां
उत्तर प्रदेश विधानसभा में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी 229 विधायकों के साथ सबसे बड़े संख्याबल के रूप में मजबूत स्थिति में है। इसी मजबूत संख्याबल के सहारे यूपी से 11 राज्यसभा सीटों में से सपा अपने सात प्रत्याशियों का नामंकन भी दाखिल करा चुकी है। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 31 मई मंगलवार है। रालोद प्रमुख अजित सिंह के लिए सपा को एक प्रत्याशी का टिकट वापस कर रालोद प्रमुख अजित सिंह को समर्थन देकर राज्यसभा पहुंचाएगी। इस रणनीति के पीछे सपा और रालोद दोनों की ही अगले साल विधानसभा चुनाव की मजबूरी साफतौर से नजर आ रही है। सपा को पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाट बैल्ट में रालोद का सहारा मिल सकता है तो सपा के सहारे उत्तर प्रदेश विधानसभा में रालोद भी अपने विधायकों की संख्या में इजाफा कर सकता है। फिलहाल विधानसभा में रालोद के आठ और 10 निर्दलीय विधायकों के बलबूते भी अजित सिंह राज्यसभा नहीं पहुंच सकते थे, जिसके लिए भाजपा और कांग्रेस से दुत्कारे जाने पर सपा के समर्थन से उन्हें राज्यसभा पहुंचने का रास्ता आसानी से मिल जाएगा।
सपा-रालोद गठबंधन की शर्ते
सूत्रों के अनुसार चौधरी ने राज्यसभा की सीट के अलावा गठबंधन की शर्त के रूप में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड की 50 विधानसभा सीटों पर अपना दावा जताया है। करीब डेढ़ घंटा चली बातचीत में शिवपाल यादव ने चौधरी को कोई ठोस भरोसा नहीं दिया, जिसका अंतिम फैसला सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव करेंगे।

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