Dollar vs INR: रुपया 90 की ओर बढ़ रहा, करेंसी में उतार-चढ़ाव से अपने पोर्टफोलियो को कैसे बचाएं?

US Dollar vs Indian rupee new low
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यूएस डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया न्यू लो पर आ गया है। 

Dollar vs INR: यूएस डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया गिरकर 89.92 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। इससे निवेशकों की चिंता बढ़ गई है। रुपये की कमजोरी में ग्लोबल इक्विटी,IT-फार्मा और गोल्ड मजबूत बचाव रणनीतियां बनकर उभरीं हैं।

Dollar vs INR: भारतीय रुपया 2 दिसंबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर 89.92 पर पहुंच गया। गिरता हुआ रुपया सिर्फ एक आर्थिक संकेत नहीं, बल्कि सीधे पर निवेशक, बचतकर्ता और आयात पर निर्भर सेक्टर्स के लिए परेशानी का इशारा भी है।

कमज़ोर रुपया जहां घरेलू बचत की कीमत को कम करता है। वहीं, आयातित सामान महंगा कर देता। इससे महंगाई बढ़ती है और उन सेक्टर्स पर सीधा असर पड़ता है जो विदेशी कच्चे माल या कम्पोनेंट्स पर निर्भर हैं।

निवेशकों पर सीधा असर

रुपये की गिरावट का सबसे पहला प्रभाव फिक्स्ड इनकम निवेशों पर दिखता है। वास्तविक रिटर्न घट जाता है क्योंकि महंगाई और मुद्रा कमजोरी दोनों मिलकर उसकी वैल्यू कम कर देते हैं। दूसरे,अगर निवेशक की पोर्टफोलियो हेज्ड नहीं है, तो जोखिम बढ़ जाता है।

कमज़ोर रुपया अक्सर विदेशी निवेशकों के मूड को भी खराब करता है। डॉलर मजबूत होता है तो वे सुरक्षित बाज़ारों की ओर देखते हैं,जिससे भारतीय इक्विटी बाज़ार में गिरावट का दबाव बढ़ता है।

कैसे करें अपने पोर्टफोलियो का बचाव?

विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की कमजोरी में सबसे प्रभावी रणनीति है-अंतरराष्ट्रीय निवेश। अंतरराष्ट्रीय स्टॉक्स या म्यूचुअल फंड में निवेश करना रुपये की गिरावट के खिलाफ एक मजबूत बचाव है, बशर्ते इसे सही संरचना और समझ के साथ किया जाए। इतिहास बताता है कि अमेरिकी बाज़ार में निवेश भारतीय निवेशकों को सिर्फ रुपये की कमजोरी के चलते ही 2-3% अतिरिक्त सालाना फायदा दे देता है।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर पोर्टफोलियो का 10-20% हिस्सा ग्लोबल इक्विटीज में लगाया जाए-खासकर अमेरिकी फंड्स में। इसके साथ आईटी और फार्मा जैसे एक्सपोर्ट-ओरिएंटेड सेक्टर्स में निवेश लाभ देता है क्योंकि डॉलर मजबूत होने पर उनकी कमाई बढ़ जाती है।

गोल्ड का दम और रीबैलेंसिंग की जरूरत

कमज़ोर रुपये में गोल्ड हमेशा एक मजबूत सुरक्षा कवच बनकर उभरता है। गोल्ड ETF और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में 5-10% निवेश ऐसे समय में बेहद उपयोगी होता है। वैश्विक उथल-पुथल के बीच वे पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग की सलाह देते हैं- 70-80% घरेलू एसेट्स और 20-30% अंतरराष्ट्रीय निवेश का बैलेंस जोखिम कम करता है। ब्याज दरों का अंतर,विदेशी फंडों की धारणा और महंगाई-ये सभी रुपये की दिशा तय करते हैं। कम भारतीय ब्याज दरें अक्सर बड़े आउटफ्लो का कारण बनती हैं।

(प्रियंका कुमारी)

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