Home For Rent: घर किराए पर लेने से पहले किन बातों का रखना चाहिए ध्यान, नोट कर लें डिटेल

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भारत में अगर किराये पर घर ले रहे तो किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। 

Home For Rent: भारत में ज्यादातर किरायानामा 11 महीने के लिए होता है ताकि रजिस्ट्रेशन की झंझट और खर्च से बचा जा सके। लंबे समय तक रहना है तो मल्टी-ईयर एग्रीमेंट बेहतर, इससे किराया और शर्तें स्थिर रहती हैं।

Home For Rent: अगर आप किसी घर को किराए पर लेने की सोच रहे हैं, तो सिर्फ जगह और किराया ही नहीं, बल्कि उसकी अवधि तय करना भी जरूरी है। भारत में ज्यादातर किरायानामे 11 महीने के लिए बनाए जाते हैं। इसका कारण है रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908, जिसके तहत एक साल या उससे कम अवधि के किरायानामे का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं होता। इससे किराएदार और मकान मालिक, दोनों का समय और पैसा बच जाता है।

छोटे किरायानामे इसलिए भी लोकप्रिय हैं क्योंकि ये दोनों पक्षों को लचीलापन देते हैं। अगर नौकरी बदल जाए या किसी वजह से घर बदलना पड़े, तो किराएदार आसानी से निकल सकता है। वहीं मकान मालिक भी जरूरत पड़ने पर किराया संशोधित कर सकता है या संपत्ति वापस ले सकता है। हालांकि, इस तरह के अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट कोर्ट में विवाद की स्थिति में कम मजबूत माने जाते हैं।

कब करें लंबी अवधि का किरायानामा?

अगर आप कई साल तक एक ही घर में रहने की योजना बना रहे हैं या फर्नीचर, फिटिंग्स जैसी चीजों में निवेश कर रहे हैं, तो लंबे समय का किरायानामा (2-3 साल या ज्यादा) फायदेमंद हो सकता है। ऐसे एग्रीमेंट किराए को स्थिर रखते हैं और बार-बार रिन्युअल की झंझट से बचाते हैं। इनमें नोटिस पीरियड, रेंट बढ़ोतरी का क्लॉज, और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी जैसी बातें स्पष्ट होती हैं। मकान मालिक को स्थायी इनकम का भरोसा मिलता है जबकि किराएदार को किराया अचानक बढ़ने का डर नहीं रहता।

रजिस्ट्रेशन और खर्च का फर्क

11 महीने के किरायानामे को रजिस्टर कराने की जरूरत नहीं लेकिन उस पर स्टांप ड्यूटी देना जरूरी होता है। वहीं, लंबे एग्रीमेंट को रजिस्टर कराना अनिवार्य है, जिससे स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस दोनों लगती हैं। हर राज्य में इनकी दरें अलग होती हैं, जो आमतौर पर कुल किराया और सिक्योरिटी डिपॉजिट के प्रतिशत के आधार पर तय होती हैं। इसलिए साइन करने से पहले स्थानीय नियमों की जांच करना जरूरी है।

किरायानामा करते वक्त ध्यान रखें ये बातें

चाहे 11 महीने का एग्रीमेंट हो या 3 साल का, उसमें किराया, डिपॉजिट, नोटिस पीरियड और मेंटेनेंस जैसी बातें साफ-साफ लिखवाएं। सभी सिग्नेचर गवाहों की मौजूदगी में हों और सही स्टांप ड्यूटी दी जाए। लंबे एग्रीमेंट को रजिस्टर कराने से दोनों पक्षों को कानूनी सुरक्षा मिलती है।

किरायानामे की अवधि आपकी ज़रूरत पर निर्भर करती है कि कम अवधि में ज्यादा लचीलापन है, तो लंबी अवधि में भरोसे और सुरक्षा की गारंटी। इसलिए सोच-समझकर फैसला लें।

(प्रियंका कुमारी)

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