धोखाधड़ी का नया तरीका: कोर्ट ने उजागर किया कर्ज वसूली रोकने का खेल

Fake FIR Scam: देश में कानूनी सुरक्षा का गलत इस्तेमाल एक खतरनाक ट्रेंड बनता जा रहा है। कर्ज चुकाने से बचने के लिए कुछ उधारकर्ता अब बैंकों के खिलाफ झूठी FIR और फर्जी आरोप लगाकर वसूली प्रक्रिया रोकने की कोशिश कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में ऐसे ही एक मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए इसे ‘कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग’ करार दिया और जुर्माना भी लगाया।
कोर्ट ने झूठी FIR खारिज की
राजपाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में, एक उधारकर्ता ने कर्ज न चुकाने के बाद बैंक पर धोखाधड़ी और विश्वासघात के आरोप लगाते हुए FIR दर्ज करा दी। जांच में पता चला कि बैंक केवल वैध वसूली कर रहा था। कोर्ट ने FIR रद्द करते हुए कहा कि यह सिर्फ कर्ज वसूली में बाधा डालने की रणनीति है।
आरसीसी इंफ्रावेंचर्स पर बैंक फ्रॉड का आरोप
इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान आरसीसी इंफ्रावेंचर्स लिमिटेड और जैन परिवार का नाम भी सामने आया, जिन पर 100 करोड़ रुपए से अधिक के बैंक घोटाले का आरोप है। गुरुग्राम के DLF सेक्टर-29 थाने में दर्ज FIR (नं. 0295/2024) के अनुसार, कंपनी ने 2018–2019 में NH-74 की एक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना के लिए कई बैंकों से लोन लिया और फिर जानबूझकर डिफॉल्ट कर दिया।
जांच में सामने आया कि कंपनी ने जालसाजी, दस्तावेजों में हेरफेर और आपराधिक षड्यंत्र का सहारा लिया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी जांच रोकने के आरोपियों के प्रयासों को खारिज कर दिया।
बार-बार दोहराया गया धोखाधड़ी का पैटर्न
इस मामले को और भी गंभीर बनाता है यह तथ्य कि आरसीसी और उससे जुड़े कुछ व्यक्ति सिर्फ एक ही नहीं, बल्कि कई बैंकों और ऋणदाताओं के साथ इसी तरह की धोखाधड़ी कर चुके हैं। वर्ष 2020 में यस बैंक, 2021 में एचडीएफसी बैंक, 2022 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और 2023 में कोटक महिंद्रा बैंक के साथ साथ दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड स्थित एक अन्य ऋणदाता के साथ भी यही रणनीति अपनाई गई। दिल्ली के एक ऋणदाता के मामले में, ऋण राशि प्राप्त करने के बाद आरसीसी ने भुगतान में चूक की और फिर धमकी, असहयोग, और झूठे–बेबुनियाद आपराधिक आरोप लगाकर वसूली की प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास किया।
SFIO जांच की मांग
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी बड़ी रकम और बार-बार दोहराए गए फ्रॉड को देखते हुए यह मामला गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) को सौंपा जाना चाहिए।
