रेपो रेट में कटौती और रुपए में गिरावट से भारतीय बाजारों में देखने को मिल सकती है खींचतान की स्थिति

रेपो रेट में कटौती और रुपए में गिरावट से भारतीय बाजारों में देखने को मिल सकती है खींचतान की स्थिति
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आरबीआई की रेपो रेट में 25 bps कटौती से कर्ज निश्चित ही सस्ता होकर निवेश आकर्षित करेगा, लेकिन गिरते रुपए को देखते हुए हाई नेटवर्थ वाले निवेशक विदेश की ओर रुख कर सकते हैं।

मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर साफ संकेत दिया है कि केंद्र सरकार और आरबीआई दोनों के लक्ष्य एक हैं। मौद्रिक नीति समिति का यह फैसला दिखाता है कि अर्थव्यवस्था में किसी भी तरह की सुस्ती को रोकने के लिए लिक्विडिटी और सस्ते कर्ज के सभी विकल्प खुलकर इस्तेमाल किए जाएंगे। लेकिन, यह स्थिति शेयर बाजारों के लिए उतनी सीधी नहीं है। भारतीय मुद्रा में पिछले कुछ समय से लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। यह 90 रुपए प्रति डॉलर के ऊपर निकल गई है। इस स्थिति ने मुद्रा बाजार में भारी चिंता पैदा कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई की रेपो में कटौती ने अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत ग्रोथ-फ्लोर जरूर तैयार किया है, लेकिन इससे बाजारों में तुरंत तेजी देखने को नहीं मिलेगी। आगे की दिशा कंपनियों की कमाई और वैश्विक अनिश्चितताओं के कम होने पर निर्भर करेगी।

विदेशी निवेशकों को आकर्षित करता है कमजोर रुपया

सैद्धांतिक रूप से कमजोर रुपया विदेशी निवेशकों को आकर्षित करता है, क्योंकि भारतीय एसेट उन्हें सस्ते दिखाई देती है। इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है कि रुपए की कमजोरी के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेश बढ़े हैं। लेकिन इस बार हालात अलग हैं। रुपया जितनी तेजी से गिरा है और अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव जिस तरह कायम है, उसने वैश्विक निवेशकों के मन में स्थिरता को लेकर संदेह पैदा कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच सिर्फ सस्ती मुद्रा, विदेशी निवेश का पर्याप्त कारण नहीं बन पा रही है। दिलचस्प बात यह है कि गिर रहा रुपया भारतीय निवेशकों के लिए अंतरराष्ट्रीय निवेश को और आकर्षक बना देता है। जब रुपया कमजोर होता है, तो विदेशी शेयरों में किया गया निवेश भारतीय मुद्रा में बदलने पर ज्यादा रिटर्न देता है।

निवेश रणनीति में और मजबूत होगा वैश्विक विविधता का तर्क

इस स्थिति में हाई-नेट-वर्थ वाले निवेशक और फैमिली ऑफिसेस ग्लोबल एक्सपोजर बढ़ाने की ओर रुख कर सकते हैं। ओवरसीज फंड, गिफ्ट सिटी प्लेटफॉर्म और ग्लोबल एलोकेशन वाले मौजूदा चैनल इसे और मजबूती देते हैं। भले ही बड़ी मात्रा में फंड का प्रवाह न हो, लेकिन निवेश रणनीति में वैश्विक विविधता का तर्क और मजबूत हो गया है। जहां तक घरेलू शेयर बाजारों की बात है, सरकार और आरबीआई दोनों की नीतियां पूरी तरह ग्रोथ को बढ़ावा देने की ओर हैं। रेपो रेट घटाने के साथ-साथ आरबीआई ने ओपन मार्केट ऑपरेशंस और डॉलर-रुपया स्वैप की घोषणा कर बाजार में अतिरिक्त लिक्विडिटी डालने का संकेत दिया है। नए अनुमान के मुताबिक FY26 में भारत की जीडीपी ग्रोथ 7.3% रहने की उम्मीद है, जबकि महंगाई 2% के करीब रहने का आकलन है। विकास और नियंत्रित मुद्रास्फीति का यह मिश्रण शेयर बाजारों के लिए अच्छा माना जाता है। इससे घरेलू मांग, क्रेडिट ग्रोथ और कंपनियों की आय में सुधार की संभावना बढ़ती है।

बैंकिंग, कंज्यूमर और इंडस्ट्रियल सेक्टर को मिल सकता है फायदा

बैंकिंग, कंज्यूमर और इंडस्ट्रियल सेक्टर जैसे क्षेत्रों को इससे फायदा मिल सकता है। फिर भी बाजारों के सामने चुनौतियां बनी हुई हैं। एक ओर घरेलू लिक्विडिटी मजबूत है, नीतियां ग्रोथ की ओर झुकी हैं और रिटेल निवेशकों का प्रवाह लगातार स्थिर बना हुआ है। दूसरी ओर वैश्विक कमजोरियों, रुपए के दबाव और व्यापारिक अनिश्चितताओं ने निवेशकों की धारणा को सतर्क रखा है। नतीजतन निकट भविष्य में बड़ी रैली की संभावना कम लगती है, बल्कि बाजार सीमित दायरे में घूमते रह सकते हैं। अगर रुपया और गिरता है या अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव गहराता है, तो विदेशी निवेशकों का रुख और कमजोर पड़ सकता है, जिससे बाजार की बढ़त सीमित रह जाएगी। इसके अलावा, आने वाले बजट में सरकार विकास खर्च और वित्तीय अनुशासन के बीच संतुलन कैसे बनाती है, यह भी बाजार की दिशा तय करेगा।

(एपी सिंह की रिपोर्ट)

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