RBI के नए लोन नियम: छोटे व्यवसायों और बैंकों के लिए जारी हुई गाइडलाइन, इन व्यवसायियों को बड़ी राहत

RBI के नए लोन नियम: छोटे व्यवसाय और सहकारी समितियों के लिए कर्ज हुआ आसान
नई दिल्ली। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने छोटे व्यवसायों और बैंकों के लिए ऋण से जुड़े नए नियम जारी किए हैं। इन नियमों का उद्देश्य व्यवसायों को आसानी से ऋण दिलाना और बैंकों को अधिक स्वतंत्रता देना है। नए नियम छोटे और मध्यम व्यवसायों (MSME), सहकारी समितियों और विशेष रूप से सोने से जुड़े व्यवसायों के लिए राहत देने वाले हैं।
सोने से जुड़े व्यवसायों को राहत
पहले बैंकों के लिए सोना या चांदी खरीदने, उनकी जमानत पर ऋण देने की सीमा तय थी। अब RBI ने जौहरियों और सोने का कच्चा माल इस्तेमाल करने वाले व्यवसायों को वर्किंग कैपिटल (कार्यशील पूंजी) के लिए ऋण देने की स्वतंत्रता दी है। इसका मतलब यह है कि इन व्यवसायों को अब आसानी से संचालन के लिए पैसे मिल सकेंगे।
ऋण की ब्याज दरों में लचीलापन
पहले बैंक हर तीन साल में केवल एक बार ब्याज दर बदल सकते थे। अब नए नियमों के तहत बैंक तीन साल से पहले भी ब्याज दर कम कर सकते हैं। इससे छोटे उधारकर्ताओं को लाभ मिलेगा। साथ ही, उधारकर्ता चाहे तो फिक्स्ड रेट (स्थिर ब्याज दर) वाले ऋण पर स्विच कर सकते हैं।
नए नियम और सुझाव
RBI ने कुल सात दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिनमें से तीन अनिवार्य हैं और चार पर जनता से सुझाव मांगे गए हैं। नागरिक 20 अक्टूबर तक अपनी राय भेज सकते हैं।
छोटी सहकारी समितियों की भूमिका
अब छोटी शहरी सहकारी समितियों को भी अधिक ऋण देने की अनुमति दी गई है। इससे आम लोगों को ऋण लेने में आसानी होगी और छोटे व्यवसायों को फंडिंग बढ़ेगी।
पूंजी नियमों में ढील
बैंक अब अतिरिक्त टियर 1 पूंजी के लिए विदेशी मुद्रा और विदेशी रुपये बॉन्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे बैंकों की वैश्विक बाजारों तक पहुंच आसान होगी और वित्तीय मजबूती बढ़ेगी।
ऋण जानकारी और KYC सुधार
पहले बैंक हर 15 दिन में क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियों (CIC) को ऋण की जानकारी देते थे। नए प्रस्ताव के अनुसार यह रिपोर्टिंग साप्ताहिक होगी। इसके अलावा, डेटा जमा करने और सुधारने के लिए नए नियम बनाए गए हैं। KYC नंबर अब अलग क्षेत्र में दर्ज होगा, जिससे उपभोक्ताओं की ऋण जानकारी और स्पष्ट होगी।
RBI के इन नए नियमों से छोटे व्यवसायों को आर्थिक सहारा मिलेगा और बैंकिंग प्रणाली में लचीलापन बढ़ेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि ये बदलाव छोटे उद्योगों और सहकारी समितियों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं।
