सरकार का बड़ा फैसला: जरूरी दवाओं के कच्चे माल पर न्यूनतम आयात मूल्य तय, घरेलू उद्योग को मिलेगा संरक्षण

Government Decision Minimum Import Price for Drug Raw Materials
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भारतीय दवा उद्योग को राहत या मरीजों पर बोझ? कच्चे माल पर मिनिमम इंपोर्ट प्राइस लागू

केंद्र सरकार ने घरेलू फार्मा उद्योग को बचाने के लिए दवाइयों के कच्चे माल के आयात पर न्यूनतम मूल्य तय किया है। जानिए इससे उद्योग और मरीजों पर क्या असर पड़ेगा।

नई दिल्ली। भारत सरकार ने जरूरी दवाओं के कच्चे माल पर न्यूनतम आयात मूल्य तय कर दिया है। इसका उद्देश्य विदेशी, खासकर चीनी कंपनियों द्वारा बेहद कम कीमत पर किए जाने वाले आयात को रोकना और घरेलू दवा निर्माताओं को संरक्षण देना है। केंद्र सरकार का मानना है कि सस्ते आयात के कारण भारतीय कंपनियों पर दबाव बढ़ रहा है और देश में दवा के कच्चे माल के उत्पादन को नुकसान पहुंच रहा है। यह नई व्यवस्था 30 नवंबर 2026 तक लागू रहेगी। केंद्र सरकार ने जिन उत्पादों पर न्यूनतम आयात मूल्य लागू किया है, उनमें पोटैशियम क्लैवुलेनेट और उससे जुड़े कुछ इंटरमीडिएट्स शामिल हैं। पोटैशियम क्लैवुलेनेट का इस्तेमाल बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के निर्माण में किया जाता है। कुल मिलाकर सरकार का यह कदम घरेलू उद्योग को बचाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, पर इसका असर दवाओं की कीमतों और मरीजों पर कितना पड़ेगा, यह आने वाले समय में ही साफ हो पाएगा। कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि केंद्र सरकार की इस पहल के मरीजों के इलाज का खर्च बढ़ सकता है।

एटीएस-8 की भी तय की गई कीमत

इसके अलावा एटीएस-8 नामक इंटरमीडिएट पर भी कीमत तय की गई है, जो कोलेस्ट्रॉल कम करने की लोकप्रिय दवा एटोरवास्टेटिन कैल्शियम के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। विदेश व्यापार महानिदेशालय की अधिसूचना के अनुसार, डायल्यूटेड पोटैशियम क्लैवुलेनेट या उसके डेरिवेटिव्स के लिए न्यूनतम आयात मूल्य 180 डॉलर प्रति किलोग्राम तय किया गया है, जबकि एटीएस-8 के लिए यह सीमा 111 डॉलर प्रति किलोग्राम रखी गई है। तय सीमा से कम कीमत पर अब इन कच्चे माल का आयात नहीं किया जा सकेगा। सरकार का तर्क है कि इस कदम से भारतीय कंपनियों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से राहत मिलेगी। हाल के सालों में चीन की कंपनियों ने कीमतें लगातार घटाकर भारतीय बाजार में दबाव बनाया है, जिससे घरेलू उत्पादन पर निवेश करने वाली कंपनियों को नुकसान हो रहा था।

पीएलआई योजना से इस सेक्टर में बढ़ेगा निवेश

इसी पृष्ठभूमि में 2020 में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शुरू की गई थी, ताकि देश में ही जरूरी दवा कच्चे माल का उत्पादन बढ़ाया जा सके और चीन पर निर्भरता कम हो। हालांकि, दवा उद्योग के कई विशेषज्ञ इस फैसले को लेकर चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि न्यूनतम आयात मूल्य तय करने से कच्चे माल की लागत कृत्रिम रूप से बढ़ेगी। इससे न सिर्फ एपीआई बनाने वाली कंपनियों पर असर पड़ेगा, बल्कि दवाओं के फॉर्मुलेशन तैयार करने वाली कंपनियों की लागत भी बढ़ सकती है। विशेषज्ञों का आशंका है कि अंततः इसका बोझ मरीजों पर पड़ेगा और दवाइयों के दाम बढ़ सकते हैं। कुछ उद्योग प्रतिनिधियों का कहना है कि पहले पोटैशियम क्लैवुलेनेट 140 डॉलर प्रति किलो तक उपलब्ध था और नई सीमा व्यावहारिक स्थिति पर आधारित नहीं लगती। केंद्र सरकार इससे पहले सल्फाडायजीन पर ₹1,174 रुपए प्रति किग्रा न्यूनतम आयात मूल्य तय कर चुकी है, जो अगले साल 30 नवंबर तक जारी रहने वाला है।

एपी सिंह

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