Health inurance tips: पुरानी बीमारी ठीक हो गई, तो क्या इंश्योरेंस कंपनी क्लेम रिजेक्ट कर सकती? किन बातों का रखना चाहिए ध्यान

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पुरानी बीमारी भले ठीक हो चुकी हो,बीमा पॉलिसी लेते समय उसे बताना जरूरी है। 

Health insurance tips:पुरानी बीमारी भले ठीक हो चुकी हो,बीमा पॉलिसी लेते समय उसे बताना जरूरी है। न बताने पर क्लेम के दौरान मेडिकल रिकॉर्ड सामने आने से जांच और विवाद बढ़ सकते हैं।

Health insurance tips: कई लोग मानते हैं कि पुरानी बीमारी अगर ठीक हो गई हो,इलाज पूरा हो चुका हो और जिंदगी में उसका कोई असर न हो, तो बीमा पॉलिसी लेते वक्त उसे बताने की जरूरत नहीं लेकिन बीमा कंपनियों की पॉलिसी इससे बिल्कुल अलग होती। उनके लिए आपका मेडिकल इतिहास सिर्फ आज की सेहत नहीं,बल्कि पूरी जोखिम प्रोफ़ाइल का हिस्सा होता है। ऐसे में पुरानी,पूरी तरह ठीक हो चुकी बीमारी भी क्लेम के समय परेशानी खड़ी कर सकती, खासकर तब, जब उसे खरीदी के वक्त बताया न गया हो।

बीमा कंपनियां प्रीमियम तय करने से पहले आपकी जोखिम प्रोफ़ाइल का मूल्यांकन करती हैं। पॉलिसी खरीदते समय दिया गया मेडिकल घोषणा ही उनके लिए सबसे अहम दस्तावेज होता है। क्लेम के समय अस्पताल और बीमा कंपनी आपके पुराने मेडिकल रिकॉर्ड,पर्चियां और डिस्चार्ज समरी तक की जांच करती हैं। अगर उनमें कोई ऐसा इलाज सामने आ जाए,जिसे आपने पॉलिसी लेते समय जिक्र नहीं किया था, तो कंपनी को जांच का आधार मिल जाता है। कई बार क्लेम इसलिए रोका जाता है क्योंकि बीमा पॉलिसी धारक की बात और मेडिकल रिकॉर्ड में अंतर दिख जाता है, चाहे वह बीमारी आज पूरी तरह ठीक ही क्यों न हो।

पुरानी बीमारी का जिक्र करना क्यों जरूरी?

हमारी रोजमर्रा की भाषा में क्योर का मतलब खत्म,पर बीमा की भाषा में इसका मतलब है-एक बार डिस्क्लोज करो और फिर कंपनी तय करेगी कि इसे महत्व देना है या नहीं। जैसे-अगर बचपन में अस्थमा हुआ था और अब सालों से कोई समस्या नहीं, फिर भी पॉलिसी लेते समय इसका जिक्र कर देना बेहतर है। अगर भविष्य में किसी सांस की समस्या के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़े तो पुरानी बीमारी छुपाने का मुद्दा बीच में आ सकता।

हर दावा रिजेक्ट नहीं होता लेकिन जांच लंबी हो जाती है और संकट के वक्त यही सबसे बड़ी परेशानी बन जाती है।

क्या हर पुरानी बीमारी से क्लेम पर असर पड़ता है?

ऐसा जरूरी नहीं है। बीमा कंपनियां मोटे तौर पर दो बातें देखती हैं। बीमारी का क्लेम से संबंध है या नहीं, अगर बताई जाती तो अंडरराइटिंग का फैसला बदल सकता था या नहीं। पुरानी टूटी हड्डी का भविष्य में डेंगू के इलाज से कोई संबंध नहीं,ऐसे मामलों में आमतौर पर क्लेम मिल जाता है। लेकिन अगर कभी डायबिटीज रही हो और बाद में किडनी या हार्ट से जुड़ा क्लेम आए,तो नॉन-डिस्क्लोज़र बड़ा मुद्दा बन सकता।

जानकारी देने का फायदा ज्यादा

अक्सर लोग डरते हैं कि पुरानी बीमारी बताने से प्रीमियम बढ़ जाएगा या पॉलिसी मिल ही नहीं पाएगी। लेकिन ज़्यादातर मामलों में ऐसा नहीं होता। कंपनियां बीते इलाज की गंभीरता,फॉलो-अप और मौजूदा स्थिति देखकर फैसला करती हैं। कई बार सिर्फ वेटिंग पीरियड जोड़ दिया जाता है, बस।

क्या करें ताकि क्लेम में दिक्कत न आए?

हर बड़ी बीमारी, सर्जरी या लंबे इलाज की जानकारी बीमा कंपनी को जरूर दें। पुराने मेडिकल रिकॉर्ड को जरूर संभालकर रखें। शायद बताने की जरूरत नहीं वाली भी बातें शेयर कर दें। पॉलिसी के बाद सेहत में बदलाव आए तो अपडेट करें। बीमा इसलिए लिया जाता है कि मुश्किल समय में सहारा मिले न कि दस्तावेजों पर बहस हो। पुरानी बीमारी बताने का मतलब शक नहीं,बल्कि अपना क्लेम भविष्य में सुरक्षित रखना है।

(प्रियंका कुमारी)

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