बच्चों के भविष्य के लिए निवेश: बिना उलझन के डायरेक्ट म्यूचुअल फंड में कैसे लगाएं पैसा, किन बातों का रखें ध्यान

Child investment mutual funds
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बच्चों के लिए डायरेक्ट म्यूचुअल फंड कम खर्च में निवेश का ज्यादा पारदर्शी विकल्प हैं। 

Direct Mutual Funds for child: बच्चों के लिए डायरेक्ट म्यूचुअल फंड कम खर्च और ज्यादा पारदर्शी विकल्प हैं। अकाउंट बच्चे के नाम पर होता है लेकिन 18 साल तक कंट्रोल पैरेंट के पास रहता है। जल्दी शुरू किया गया साधारण निवेश लंबे समय में बड़ा फायदा देता है।

Direct Mutual Funds for child: ज्यादातर माता-पिता बच्चों के लिए निवेश के बारे में तब सोचते हैं, जब स्कूल की फीस बढ़ जाती या कॉलेज अचानक नजदीक नजर आने लगता। ऐसे समय में कई लोग चिल्ड्रन प्लान या इंश्योरेंस से जुड़े प्रोडक्ट खरीद लेते। यह मानकर कि यही इकलौता रास्ता है जबकि सच यह है कि आप अपने बच्चे के लिए सीधे और कम खर्च वाले डायरेक्ट म्यूचुअल फंड में भी निवेश कर सकते।

बच्चे के नाम पर निवेश का मतलब क्या?

कानूनन नाबालिग खुद म्यूचुअल फंड अकाउंट नहीं चला सकता लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि निवेश नहीं हो सकता। अकाउंट बच्चे के नाम पर खोला जाता है और माता-पिता या कानूनी अभिभावक उसे ऑपरेट करते हैं। पैसा बच्चे के लिए होता है लेकिन नियंत्रण 18 साल की उम्र तक अभिभावक के पास रहता।

डायरेक्ट म्यूचुअल फंड अकाउंट कैसे खोलें?

निवेश करते समय फोलियो बच्चे के नाम पर खुलेगा और एक पैरेंट को गार्जियन बनाया जाएगा। एक पोर्टफोलियो में सिर्फ एक ही गार्जियन हो सकता। बच्चे के लिए जन्म प्रमाण पत्र या पासपोर्ट जैसे डॉक्यूमेंट लगते। गार्जियन का पैनकार्ड, केवायसी, बैंक अकाउंट और सिग्नेचर जरूरी होता। बच्चे का पैनकार्ड इस स्टेज पर नहीं चाहिए। निवेश और रिडेम्पशन दोनों गार्जियन के बैंक अकाउंट से ही होंगे। डायरेक्ट निवेश एएमसी की वेबसाइट या ऑफिशियल प्लेटफॉर्म से किया जाता है, किसी एजेंट के जरिए नहीं।

बच्चों के लिए डायरेक्ट फंड क्यों बेहतर?

डायरेक्ट म्यूचुअल फंड में खर्च कम होता। 10-15 साल जैसे लंबे समय में यही छोटा फर्क बड़ा पैसा बना देता। जब लक्ष्य लंबी अवधि का हो, जैसे पढ़ाई या करियर की शुरुआत, तो गैरजरूरी कमीशन देने का कोई मतलब नहीं। एसआईपी के जरिए डायरेक्ट प्लान में अनुशासन बनाए रखना भी आसान होता।

फंड का चुनाव कैसे करें?

यह बच्चे की उम्र पर नहीं, लक्ष्य तक बचे समय पर निर्भर करता है। अगर लक्ष्य 10 साल से दूर है, तो इक्विटी फंड का हिस्सा ज्यादा रखा जा सकता। जैसे-जैसे लक्ष्य पास आए, जोखिम कम करना जरूरी होता। कई माता-पिता कॉलेज और स्कूल जैसे अलग-अलग लक्ष्यों के लिए अलग निवेश रखते।

टैक्स को लेकर जरूरी बात

बच्चे के नाम पर निवेश से टैक्स अपने आप कम नहीं हो जाता। आमतौर पर रिटर्न उस पैरेंट की इनकम में जुड़ता है, जिसकी आय ज्यादा। 18 साल के बाद यह नियम बदल जाता और टैक्स बच्चे के नाम पर लगता है।

बच्चे के बालिग होने पर 'माइनर टू मेजर' प्रोसेस करना होता है। केवायसी, पैन और बैंक डिटेल अपडेट करने के बाद निवेश का कंट्रोल बच्चे के पास चला जाता। यह उसे फाइनेंस समझाने का अच्छा मौका भी होता है।

इंश्योरेंस वाले महंगे प्लान में फंसना, समय पर पोर्टफोलियो न बदलना और लक्ष्य के करीब भी पूरा पैसा इक्विटी में रखना, ये आम गलतियां हैं। असल फायदा किसी स्कीम का नहीं, बल्कि समय का है। जल्दी शुरू किया गया सादा और साफ निवेश बच्चे के भविष्य के लिए मजबूत आधार बनाता है।

(प्रियंका कुमारी)

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