Physical Share: पुराने शेयर सर्टिफिकेट को डिमैट में बदलना क्यों जरूरी, पूरा प्रोसेस आसान भाषा में समझें

Physical Share demat conversion
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Physical Share demat conversion: फिजिकल शेयर को डिमैट में चेंज करना क्यों जरूरी। 

फिजिकल शेयर अब इस्तेमाल में नहीं, डिमैट में बदलना जरूरी। DRF फॉर्म, सही डॉक्यूमेंट और नाम मिलान ही मुख्य प्रोसेस है।

Physical Share Demat conversion: कभी फिजिकल शेयर सर्टिफिकेट आम बात थे लेकिन अब ये जोखिम का पैकेज बन चुके हैं, खो जाना, चोरी होना, खराब होना, और सबसे बड़ी परेशानी कि लंबी क्लेम प्रक्रिया। आज पूरा शेयर बाजार इलेक्ट्रॉनिक यानी डिमैट फॉर्म में चलता। कई कंपनियां अब फिजिकल शेयर ट्रांसफर तक स्वीकार नहीं करतीं। ऐसे में पुराने सर्टिफिकेट को डिमैट में बदलना ही उनकी असली वैल्यू निकालने का इकलौता तरीका है।

सबसे पहले आपके पास एनएसडीएल या सीडीएसएल से जुड़े किसी डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के साथ एक डिमैट अकाउंट होना चाहिए। ज़्यादातर लोग बैंक या स्टॉकब्रोकर के जरिए इसे खोलते हैं। इस दौरान पैन कार्ड, एड्रेस प्रूफ और पहचान पत्र जैसी केवायसी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं।

अगर आपके पास पहले से डिमैट अकाउंट है तो नया अकाउंट खोलने की जरूरत नहीं। अकाउंट एक्टिव होने पर DP आपको डीआरएफ (Dematerialisation Request Form) देता है, जिसमें सर्टिफिकेट जमा करने की प्रक्रिया लिखी होती है।

फिजिकल सर्टिफिकेट कैसे जमा करें

  • हर शेयर सर्टिफिकेट का ओरिजिनल कॉपी देना जरूरी है।
  • नाम बिल्कुल वही होना चाहिए जैसा डिमैट अकाउंट में है।
  • अगर नाम, स्पेलिंग या इनीशियल में अंतर है तो हलफनामा, नाम-चेंज दस्तावेज या सबूत देना पड़ सकता है।
  • DRF में सर्टिफिकेट नंबर और डिस्टिंक्टिव नंबर भरने होते हैं।
  • सर्टिफिकेट पर सरेंडर्ड फॉर डिमटेरियलाइजेशन लिखकर टिक किया जाता है।

कई मामलों में कंपनी रिकॉर्ड से सिग्नेचर मिलान भी किया जाता है। फर्क मिलने पर अनुरोध वापस हो सकता है। जॉइंट होल्डर्स को सर्टिफिकेट पर रिकॉर्ड के क्रम में साइन करना होता है।

वेरिफिकेशन कैसे होता है?

DP आपके डॉक्यूमेंट सिस्टम में दर्ज करके कंपनी के रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट को भेज देता है। RTA यह चेक करता है कि सर्टिफिकेट असली है या नहीं। कहीं खोया/चोरी या स्टॉप-लिस्टेड तो नहीं? होल्डर का नाम रिकॉर्ड से मैच करता है या नहीं? सब कुछ सही होने पर इलेक्ट्रॉनिक रूप से डिमैट की मंजूरी देता है और 2–6 हफ्तों के भीतर शेयर आपके डिमैट अकाउंट में दिखाई देने लगते हैं।

कब आती है दिक्कत?

पुराने सर्टिफिकेट, खासकर 20–30 साल पुराने, सबसे ज्यादा मुश्किलें पैदा करते हैं। इसमें नाम मिसमैच होना, सिग्नेचर का न मिलना, होल्डर की मौत पर ट्रांसमिशन की प्रोसेस, सर्टिफिकेट का खो जाना और इसके अलावा कंपनी का मर्जर या डिलिस्टिंग होना। ऐसे मामलों में डुप्लीकेट सर्टिफिकेट, इंडेम्निटी बॉन्ड या अतिरिक्त डॉक्यूमेंट देना पड़ सकता है। धैर्य यहां सबसे जरूरी है।

डिमैट होने के बाद क्या?

शेयर डिमैट में आते ही आप उन्हें तुरंत बाजार में बेच सकते हैं। बिना कागज़ी प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर भी संभव होता है। डिविडेंड, बोनस, राइट्स जैसी सुविधाएं सीधे बैंक/डिमैट में क्रेडिट हो जाती हैं।

(प्रियंका कुमारी)

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