इससे किसका हित सधेगा

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By - ??. ???? ???? |17 Aug 2014 6:30 PM
चरमपंथ के खिलाफ युद्ध की अमेरिकी रणनीति बदल चुकी है
इराक से लेकर सीरिया तक के बड़े भू-भाग पर आईएसआईएस द्वारा अपना आधिपत्य स्थापित करने के काफी दिन बाद अमेरिका ने उन पर हवाई हमले का निर्णय लिया। सवाल यह उठता है कि आखिर अब तक अमेरिका किस बात की प्रतीक्षा कर रहा था?
लैवेंट यानी इराक से लेकर सीरिया तक के बड़े भू-भाग पर आईएसआईएस (अथवा आईएसआईएल) द्वारा अपना आधिपत्य स्थापित करने और आइसिस प्रमुख अबू बकर अल बगदादी द्वारा स्वयं को इस क्षेत्र का खलीफा घोषित कर देने के काफी दिन बाद अमेरिका उन पर हवाई हमले का निर्णय लिया। अमेरिका की तरफ से बताया जा रहा है कि उसने यह कार्रवाई संजर पर्वत पर छिपे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की सुरक्षा की दृष्टि से की है, लेकिन सवाल यह उठता है कि आईएस के आतंकी जैसे ही इरबिल के निकट पहुंचे, अमेरिका ने सैनिक कार्रवाई का निर्णय ले लिया, आखिर क्यों? आखिर अब तक अमेरिका किस बात की प्रतीक्षा कर रहा था? राष्ट्रपति बराक ओबामा का कहना है कि वे मध्य-पूर्व में समावेशी राजनीति का विकास करना चाहते हैं, क्या वास्तव में ऐसा ही है? यदि ऐसा है तो क्या चरमपंथ के खिलाफ युद्ध की अमेरिकी रणनीति बदल चुकी है?
राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब सैन्य कार्रवाई के लिए अनुमति दी तो उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पश्चिमोत्तर इराक में एक पर्वत चोटी पर फंसे हजारों धार्मिक अल्पसंख्यकों को संभावित नरसंहार से बचाने के लिए आईएस के खिलाफ सैन्य कार्रवाई जरूरी हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि जब अमेरिका के पास इराकी अल्पसंख्यकों के नरसंहार को रोकने की क्षमता है तो फिर वह अपनी आंखें मूंदे नहीं रह सकता, लेकिन सवाल यह उठता है कि अमेरिका अब तक अपनी आंखें क्यों मूंदे रहा? इसलिए कि राष्ट्रपति अनिर्णय की स्थिति में थे अर्थात बराक ओबामा ने ही अमेरिका को इराक के दलदल से बाहर निकाला था और अब वे पुन: अमेरिका को उसमें धकेलना नहीं चाहते। या फिर इसलिए कि आईएस के आतंकी अब तक उस जगह तक नहीं पहुंच पाए थे जहां पर अमेरिकी हितों को आघात लग सकता हो? अथवा हमला इसलिए नहीं किया गया था क्योंकि अमेरिकी प्रशासन अभी तक इस्लाम के अंत:विभाजनों को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया था और आईएस के खिलाफ इन समूहों को एकजुट करने का कोई रास्ता नहीं मिल पाया था? पिछले एक दशक में इराक में युद्घोत्तर हिंसा में लाखों लोग मारे गये, लेकिन अमेरिका ने इस पर कोई चिंता नहीं व्यक्त की फिर अब यजीदी समुदाय के लोगों की इतनी चिंता क्यों?
उल्लेखनीय है कि इस्लामिक स्टेट (आईएस) के शिकार लोगों में 50 हजार आबादी का वह समूह भी है, जिसने उत्तर-पश्चिमी इराक के सिंजर पहाड़ियों में शरण ले रखी है और अब इन्हें खाने और पीने की समस्या से जूझना पड़ रहा है। आईएस के आतंकियों ने घोषणा की थी कि ये लोग (यजीदी) या तो अपना धर्म छोड़ दें अथवा जजिया चुकाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें। इनमें भय पैदा करने के लिए आईएस के आतंकियों ने इनके साथ क्रूरता का बर्ताव किया और इनमें से कइयों के सिर कलम कर या उन्हें सूली पर चढ़ा कर वीडियो जारी किए। पारंपरिक रूप से यजीदी उत्तर-पश्चिमी इराक, उत्तर-पश्चिमी सीरिया और दक्षिण-पूर्वी तुर्की में छोटे-छोटे समुदायों में रहते रहे हैं जिनकी आबादी 70,000 से 5 लाख तक हो सकती है। आईएस के चरमपंथियों को इनसे घृणा करने के दो कारण हो सकते हैं। या तो वे यह मानते हैं कि यजीदी उमैय्या राजवंश के दूसरे खलीफा और मुसलमानों में बेहद अलोकप्रिय शासक यजीदी इब्न मुआविया के अनुयायी हैं। अथवा इसलिए कि उनकी मान्यताएं ईसाइयत से भी मेल खाती हैं। जो भी हो, ओबामा इनकी हिफाजत करना चाहते हैं, इसलिए आईएस पर हमला जरूरी है, लेकिन यह अमेरिकी हमले का नैतिक या आदर्शवादी पक्ष है, इसके पीछे कुछ अन्य पहलू भी हैं, जिनका अमेरिका खुलासा करना नहीं चाहेगा।
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