सुखोई ने बढ़ाई चिंता

नई दिल्ली. भारतीय वायु सेना के मिग क्षेणी के लड़ाकू विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने का सिलसिला अभी समाप्त नहीं हुआ था कि इधर रूस के सहयोग से तैयार किए गए उन्नत श्रेणी के अत्याधुनिक सुखोई-30 विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने का क्रम बढ़ने लग गया है। अपनी उड़ान का बेहतरीन रिकॉर्ड रखने वाले सुखोई विमानों का दुर्घटनाग्रस्त होना अब एक नई चुनौती है। बीते 14 अक्टूबर को पुणे के समीप थियूर गांव में भारतीय वायु सेना के अग्रणी पंक्ति का अत्याधुनिक किस्म का लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दुर्घटना के समय सुखोई-30 लड़ाकू विमान नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था। सौभाग्य से हादसे में दोनों पायलट सुरक्षित बच गए। उल्लेखनीय है कि पुणे में सुखोई-30 एमकेआई विमानों का एक स्क्वाड्रन तैनात है। एक साल पहले भी पुणे के समीप ही एक सुखोई-30 विमान हादसे का शिकार हो गया था।
इन दोनों हादसों सहित वर्ष 2009 से अब तक सुखोई विमानों के पांच हादसे हो चुके हैं और ये सभी विमान लोहेगांव की स्क्वाड्रन से ही संबंधित हैं। वायु सेना के इस अत्याधुनिक विमान का पहला हादसा 30 अप्रैल, 2009 को राजस्थान के जैसलमेर से लगभग 70 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में पोखरण के पास राजमथाई गांव के समीप हुआ था जिसमें पायलट विंग कमांडर वी एस़ नारा की मृत्यु हो गई थी और दूसरे पायलट विंग कमांडर एसवी मुंजे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस हादसे के ठीक सात माह बाद 30 नवम्बर, 2009 को दूसरा सुखोई विमान हादसे का शिकार हुआ। यह विमान राजस्थान के जैसलमेर इलाके के जेठागांव में दुर्घटनाग्रस्त होकर गिर गया था और दोनों पायलट घायल हो गए थे। 13 दिसम्बर, 2011 को सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान ने पुणे के लोहेगांव एयरबेस से 12 बजकर 45 मिनट पर उड़ान भरी और एक बजकर दस मिनट पर सैन्य ठिकाने से लगभग 20 किलोमीटर दूर वाड़े भोलई गांव में दुर्घटनाग्रस्त होकर जमीन पर आ गिरा। यह विमान नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था और उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद तकनीकी खराबी के चलते कंट्रोल रूम से इसका संपर्क टूट गया। विमान में सवार दोनों पायलटों ने सूझबूझ का परिचय देते हुए इसकी लैंडिंग सुरक्षित स्थान पर करते हुए विमान से बाहर कूदकर अपनी जान बचाई।
अगर आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 2009 से 2011 तक वायु सेना के 30 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। इनमें वर्ष 2009 में 13, वर्ष 2010 में 9 एवं वर्ष 2011 में 8 विमान हादसों का शिकार हुए हैं। इसी अवधि में वायु सेना ने अपने 10 हेलीकॉप्टरों को हादसों में खो दिया है। 30 लड़ाकू विमानों तथा 10 हेलीकॉप्टरों के हादसों में 13 पायलटों, 26 सैन्यकर्मियों व 6 नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक वायुसेना 1970 से अगस्त 2011 तक अपने 999 विमान गंवा चुकी है। अब यह आंकड़ा 1000 से भी ज्यादा हो गया है। इन विमान दुर्घटनाओं में 39.5 प्रतिशत तकनीकी खराबी, 39 प्रतिशत पायलट चूक, 1.5 प्रतिशत जमीन पर मानवीय भूल, 9 प्रतिशत पक्षियों के टकराने व शेष अन्य कारणों से हुई है।
ताजा हादसे के बाद सुखोई विमानों की नई चुनौती सामने आ गई है और वायु सेना की चिंता बढ़ गई है। वायु सेना भी इस दुर्घटना पर कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दे चुकी है जिसमें कुछ तकनीकी खामियां सामने आई हैं। फिलहाल अगले आदेशों तक सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों का समूचा बेड़ा उड़ान नहीं भर पाएगा। वायु सेना के प्रवक्ता विंग कमाण्डर सिरनपाल सिंह बिर्दी ने 22 अक्टूबर को जानकारी दी कि 14 अक्टूबर के हादसे के बाद एहतियात के तौर पर जब तक विमान के बेड़े में शामिल सभी विमानों की एक-एक करके बारीकी से तकनीकी पहलुओं की जांच-पड़ताल नहीं हो जाती तब तक सुखोई विमानों की आधिकारिक उड़ान की स्वीकृति नहीं प्रदान की जाएगी। उन्होंने बताया कि एक बार जांच-पड़ताल का काम समाप्त होने तथा उसकी रिपोर्ट से कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (सीओआई) के अधिकारियों के संतुष्ट होने के बाद ही सुखोई विमानों के उड़ान भरने की अनुमति प्रदान की जाएगी। इस तरह सुखोई र्शेणी के लगभग 180 विमानों की उड़ान पर रोक लगा दी गई है। उड़ानों पर रोक लगाने का यह कोई पहला अवसर नहीं है बल्कि इससे पहले भी हादसों के कारण ही सुखोई-30 विमान बेड़े को दो बार उड़ान भरने से रोका जा चुका है। अब सुखोई विमान हादसों की जड़ तलाशने के लिए रूस से भी मदद ली जा रही है और सुखोई-30 विमानों की उड़ान तब तक बंद रहेगी जब तक तकनीकी जानकारी का पूरी तरह से विश्लेषण नहीं कर लिया जाएगा। विमानों की जांच प्रक्रिया में एचएएल के विशेषज्ञ एवं वायु सेना के अधिकारियों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण हितधारक भी शामिल रहेंगे जिससे सही तथ्यों का पता लगाया जा सके।
विदित हो कि रूस की हथियार निर्माता कंपनी इकरुत्स्क एविएशन इंडस्ट्रियल एसोसिएशन द्वारा निर्मित 50 सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना में 1996 में शामिल किए गए थे। इसके बाद 2007 में 40 सुखोई-30 लड़ाकू विमान और खरीदे गए। इस तरह वायु सेना के विमान बेड़े में अत्यंत उन्नत किस्म के लड़ाकू विमानों के लगभग पांच स्क्वाड्रन तैयार हो गए। विदित हो कि एक स्क्वाड्रन में 16 या 18 लड़ाकू विमान होते हैं। इन सुखोई विमानों की खरीद के बाद हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अर्थात एचएएल में रूसी सहयोग से ये विमान तैयार किए जाने का फैसला हुआ। एचएएल एक प्राइवेट लाइसेंस प्रोग्राम एग्रीमेंट के तहत 140 सुखोई विमान तैयार कर रहा है। 42 सुखोई विमान और खरीदे जा रहे हैं। ध्वनि की गति से तीन गुना तेज रफ्तार से चलने वाले तथा पलक झपकते ही शत्रु के ठिकाने को नेस्तनाबूद करने में सक्षम सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान वायु सेना की मारक क्षमता में रीढ़ की हड्डी के समान बने हुए हैं। इसीलिए वायु सेना अपने बेड़े में ऐसे 272 लड़ाकू विमान रखना चाहती है।
अब तक पांच सुखोई विमानों के जमींदोज हो जाने के कारण वायु सेना को झटका लगा है। इससे इन विमानों की तैनाती की समस्या सामने आ गई है। ऐसे में उन योजनाओं का क्या होगा जहां-जहां इन विमानों की तैनाती की योजना है? यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत-चीन सीमा पर जो नई हवाई पट्टियां खोली जा रही हैं वहां इन्हीं विमानों की तैनाती की जा रही है क्योंकि इन्हें वायु सेना के सबसे अत्याधुनिक विमानों में गिना जाता है। निश्चित रूप से भारत के लिए यह एक नई चुनौती है।
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