सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में जुटी सरकार

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By - ??. ???? ???? |10 Sept 2014 6:30 PM
इस निर्णय से भारत के रक्षा उद्योग में 40000 करोड़ रुपये के नए अवसर पैदा होंगे।
भारत की बढ़ती रक्षा चुनौतियों को देखते हुए केंद्र सरकार देश की सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में लग गई है। इसी के मद्देनजर रक्षा मंत्री की अगुवाई वाली रक्षा खरीद परिषद् (डीएसी) ने 29 अगस्त को एक बैठक में सैन्य आधुनिकीकरण के लिए 17000 करोड़ रुपये से ज्यादा के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी। थल सेना का हेलीकॉप्टर बेड़ा मजबूत किए जाने की मांग काफी पुरानी है। इसके लिए 197 हल्के उपयोग वाले हेलीकॉप्टरों की खरीदारी की जानी है। इस बैठक में रक्षा मंत्रालय ने लंबे समय से आरोपों और उनकी जांच रिपोटरें के बीच लटक रहे इन हेलीकॉप्टरों की खरीदारी सौदे को लेकर चल रही आशंकाओं को समाप्त करते हुए इस प्रस्तावित सौदे को रद्द कर दिया। इसके बदले डीएसी ने यह निर्णय लिया कि विदेशों से हल्के हेलीकॉप्टर खरीदे जाने की बजाय थल सेना की जरूरतें पूरी करने का अवसर भारतीय रक्षा उद्योग को प्रदान किया जाए। दरअसल, भारतीय सेना अपने पुराने चीतल व चीता हेलीकॉप्टरों की जगह नए हेलीकॉप्टर चाहती है। सियाचिन जैसे ऊंचे इलाकों पर सैनिक और साजो-सामान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे चीता व चेतक काफी पुराने हो चुके हैं। अब डीएसी के इस निर्णय के बाद भारतीय सेना की जरूरतों के मुताबिक लगभग 400 हेलीकॉप्टरों के निर्माण का ऑर्डर भारतीय रक्षा कम्पनियों को मिल सकता है। रक्षा क्षेत्र में दलाली और घूसखोरी के आरोपों के चलते ऐसे हेलीकॉप्टरों का सौदा एक लंबी अवधि से रुका हुआ था। अब यह फैसला देश के रक्षा उद्योग को मजबूती देने वाला एक बड़ा कदम है। इस निर्णय से भारत के रक्षा उद्योग में 40000 करोड़ रुपये के नए अवसर पैदा होंगे।
थल सेना को बड़ी संख्या में टैकों की जरूरत है। इस संबंध में डीएसी ने सेना को 6600 करोड़ रुपये की लागत के 114 अर्जुन मार्क-2 स्वदेशी टैंक खरीदे जाने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। इन टैंकों की गति 70 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा है जो कि दुनिया के अन्य विख्यात टैंकों से कहीं ज्यादा है। इस तरह के टैंकों में से अमेरिका के एम्ब्रस-1ए टैंक की गति 67 किलोमीटर प्रति घंटा, रूसी टैंक टी-80 की 75 किलोमीटर प्रति घंटा, व र्जमन के टैंक लेपर्ड-2 की रफ्तार 72 किलोमीटर प्रति घंटा है। ऐसे टैंकों के मिलने से भारतीय सेना की ताकत काफी बढ़ जाएगी।
इसके अलावा 40 अर्जुन टैंकों में चेसिस आधारित कैटापोल्ट आर्टीलरी सिस्टम लगाए जाने की स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। इन सेल्फ प्रोपेल्ड गनों के विकास की लागत 820 करोड़ रुपये निश्चित की गई है। इससे इन टैंकों की मारक क्षमता काफी बढ़ जाएगी। भारत की उत्तर-पूर्व सीमा के नजदीक तैनात सुरक्षा बल के जवानों के लिए एक डेडिकेटेड मोबाइल कम्युनिकेशन सिस्टम मुहैया करवाने के प्रस्ताव को भी अनुमति प्रदान कर दी गई है। इस प्रकार भारतीय सेना की तीन, चार और 14 कोर के लिए इन संचार उपकरणों की खरीदारी की लागत लगभग 900 करोड़ रुपये होगी।
भारतीय नौसेना का पनडुब्बी बेड़ा भी कमजोर है। इसके लिए निर्णय लिया गया है कि 4800 करोड़ रुपये की लागत से नौसेना की छह पनडुब्बियों को अत्याधुनिक बनाया जाए। इनमें चार किलो क्लास की सिंधु पनडुब्बियां और दो शिशुमार र्शेणी की एचडीडब्लू पनडुब्बियां शामिल हैं। किलो क्लास की दो पनडुब्बियां उन्नतीकरण के लिए रूस भेजी जाएंगी। शिशुमार र्शेणी की पनडुब्बियों का उन्नयन भारत में ही मंझगांव गोदी में किया जाएगा। इसी के साथ नौसेना को 1770 करोड़ रुपये की लागत से अपने युद्घक जहाजों के लिए पनडुब्बी रोधी तंत्र विकसित करने की मंजूरी मिल गई है। यह प्रणालियां नौसेना के 11 जंगी पोतों में लगाई जाएंगी। नौसेना काफी दिनों से 16 नए बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर चाह रही है जिनकी लागत तकरीबन 1800 करोड़ रुपये होगी। अब डीएसी ने इनकी खरीद के लिए निविदाएं खोलने की अनुमति प्रदान कर दी है। उल्लेखनीय है कि इसकी दौड़ में अमेरिकी कंपनी सिकोस्र्की, यूरोप कंपनी एनएच इंडस्टीज तथा अगस्ता-वेस्टलैंड शामिल हैं।
वायु सेना के लिए 15 हैवी लिफ्ट शिनूक चॉपर हेलीकॉप्टरों और 22 अपाचे अटैक चॉपर हेलीकॉप्टरों की खरीदारी की अंतिम बाधा दूर कर दी गई है। इनसे जुड़े निवेश प्रस्तावों में फेरबदल को स्वीकार कर लिया गया है। शिनूक और अपाचे हेलीकॉप्टरों को विदेशी कंपनियों से खरीदा जाना है। इन हेलीकॉप्टरों के आने से वायु सेना काफी सशक्त हो जाएगी। गौरतलब है कि इससे पहले 19 जुलाई को डीएसी की पहली बैठक में 21000 करोड़ रुपये के रक्षा खरीद सौदों के प्रस्तावों को हरी झण्डी दी गई थी। इसमें जंगी पोतों, गश्ती जहाजों, स्वदेशी हेलीकॉप्टरों और निजी क्षेत्र को सैन्य परिवहन विमानों के निर्माण को मंजूरी प्रदान की गई थी। ये प्रस्ताव तकरीबन छह महीने से लटके हुए थे, क्योंकि फरवरी 2014 के बाद से डीएसी की बैठक नहीं बुलाई गई थी। इन सौदों में 15 युद्घपोतों, 32 हेलीकॉप्टरों और 56 परिवहन विमानों के प्रस्ताव शामिल हैं। इनमें से अधिकांश उपकरण देश में ही बनाए जाएंगे। जहां तक परिवहन विमानों के निर्माण का सवाल है तो यह पहला अवसर होगा जब देश में सैन्य विमानों के निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के एकाधिकार को समाप्त करते हुए सरकार ने इसके लिए निजी क्षेत्र को मौका दिया है। लगभग ढाई अरब डॉलर के इस रक्षा सौदे में निजी क्षेत्र एक विदेशी हिस्सेदार को चुनेगा और वहां से 16 विमान तैयार हालत में लिए जाएंगे और शेष 40 परिवहन विमानों का निर्माण भारत में तकनीक हस्तांतरण के तहत किया जाएगा।
नौसेना एवं तटरक्षक बल के लिए लगभग 7000 करोड़ रुपये की लागत से 32 हल्के उन्नत ध्रुव हेलीकॉप्टरों की खरीदारी की जाएगी। इनमें 16 हेलीकॉप्टर नौसेना तथा 16 हेलीकॉप्टर तटरक्षक बल को मिलेंगे। यही नहीं नौसेना के बेड़े के साथ चलने वाले 5 सर्मथन पोतों, 5 तीव्र गश्ती पोतों और 5 ऑफशोर गश्ती वाहनों की परियोजना भी स्वीकार कर ली गई। ये सभी पोत देश के ही शिपयाडरें में बनाए जाएंगे। 9000 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले सहायक पोतों की परियोजना में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्ड प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। शेष 10 पोतों का निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयाडरें में किया जाएगा। इसके साथ ही इस बैठक में 900 करोड़ रुपये की लागत से खोज और बचाव उपकरणों की खरीद को हरी झण्डी प्रदान की गई। निश्चित है कि इन सभी प्रकार के आधुनिकीकरण और खरीदारी से भारतीय सेनाएं अत्यन्त सशक्त बन जाएंगी।
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