लालकिले से गांव की आवाज

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By - ?????? ???? |16 Aug 2014 6:30 PM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के 68वें स्वतंत्रता दिवस पर एक नई शुरुआत की।
शायद पहली बार किसी पुरुष पीएम के कुर्ते पर जवाहर जैकेट नहीं थी। नेहरू युग से बाहर निकलने का संकेत उन्होंने केवल वेशभूषा से ही नहीं दिया। उन्होंने अपने को देश का पीएम के बजाय प्रधान सेवक कहा। यह भी पहली ही बार था कि उनके पूरे भाषण में किसी दल, वर्ग, सम्प्रदाय, व्यक्ति या देश के खिलाफ कोई कटुता नहीं थी और सबसे बड़ी बात उन्होंने कही कि देश का विकास करना है तो गांव से शुरुआत करनी होगी।
परम्परा के अनुसार चलना आसान होता है। उसे तोड़ना और नई राह बनाना कठिन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के 68वें स्वतंत्रता दिवस पर एक नई शुरुआत की। शुरुआत वेशभूषा से हुई वे औपचारिक पहनावे की बजाय गुजराती पगड़ी, कुर्ता और चूड़ीदार पायजामा में थे। शायद पहली बार किसी पुरुष पीएम के कुर्ते पर जवाहर जैकेट नहीं थी। नेहरू युग से बाहर निकलने का संकेत उन्होंने केवल वेशभूषा से ही नहीं दिया। उन्होंने अपने को देश का पीएम के बजाय प्रधान सेवक कहा। यह पहला ही मौका था जब लालकिले के प्राचीर से देश को संबोधित करने वाला प्रधानमंत्री आजादी के बाद पैदा हुआ है। यह भी पहली ही बार था कि उनके पूरे भाषण में किसी दल, वर्ग, सम्प्रदाय, व्यक्ति या देश के खिलाफ कोई कटुता नहीं थी और सबसे बड़ी बात उन्होंने कही कि देश का विकास करना है तो गांव से शुरुआत करनी होगी।
लालकिले से प्रधानमंत्री का संबोधन ऐसा मौका होता है जब वह देशवासियों से सीधे संवाद करते हैं। लेकिन यह अवसर एक औपचारिक सरकारी कार्यक्रम में बदलकर रह गया था। केंद्र और हमारी ज्यादातर राज्यों की सरकारें शहरोन्मुखी हो गई हैं। सारी योजनाएं और कार्यक्रम शहरों के विकास को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। सरकारों को गांव की याद भूमि अधिग्रहण और खेती की उपज के समय ही आती है। जिसे देखो वही किसी शहर को शंघाई तो किसी को पेरिस या सिंगापुर बनाने की बात करता है। लालकिले की प्राचीर से किसी प्रधानमंत्री ने शायद पहली बार (कम से कम पिछले तीन चार दशकों में) आदर्श गांव की बात की है। आदर्श गांव के मामले में उन्होंने आगे रास्ता भी तैयार कर दिया है। उन्होंने हर सांसद को जिम्मेदारी दी है कि वह अपनी सांसद निधि से अगले दो साले में अपने चुनाव क्षेत्र में एक गांव को आदर्श गांव बनाएं। और अपना पांच साल का कार्यकाल खत्म होने तक दो और आदर्श गांव बनाएं। इस तरह 2019 तक देश में 2370 आदर्श गांव बन जाएंगे। एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो आसपास के गांवों में अपने गांव को बेहतर बनाने की प्रतियोगिता शुरू हो जाएगी। अंधाधुंध शहरीकरण के इस दौर में गांवों को सुधारने की सुध लेकर प्रधानमंत्री ने शहरों और गांवों के बीच बढ़ती खाई को पाटने की पहल की है। इससे गांवों के हमारे पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
देश की ग्रामीण और गरीब आबादी के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की प्रधानमंत्री ने घोषणा की है। वह है ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’। इस योजना के तहत साढ़े सात करोड़ परिवारों को बैंकिग सेवा के दायरे में लाना है। हर घर में दो बैंक एकाउंट होंगे। इन खाता धारकों को एक लाख रुपए का जीवन बीमा मिलेगा। यह सामाजिक सुरक्षा के मोर्चे पर किसी भी सरकार का सबसे बड़ा कदम है। जाहिर है कि बैंकिंग सेवा से वंचित लोगों की सबसे बड़ी तादाद गांवों में है तो इसका सबसे ज्यादा फायदा भी गांवों को मिलेगा। इससे लोगों में न केवल सुरक्षा की भावना आएगी बल्कि बैंक खाता उन्हें एक अधिकार से सम्पन्न होने का सम्मानजनक भाव भी देगा। लेकिन इस सबसे ऊपर सदियों से साहूकार व्यवस्था से शोषण का शिकार लोगों के लिए मुक्ति का रास्ता खुलेगा। किसानों की आत्महत्या में सबसे बड़ी वजह यह साहूकार व्यवस्था ही है। बैंकिंग से सेवा से वंचित गरीब और आदिवासियों के पास साहूकार के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
इसी तरह एक साल में देश के सभी स्कूलों में शौचालय और वह भी लड़के लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने के लक्ष्य से उन्होंने सांसदों और औद्योगिक घरानों को जोड़ दिया है। गांवों में महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या का प्रधानमंत्री ने लालकिले से जिक्र करके बताया है कि वे इस समसमया के प्रति कितने गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि यह शर्म की बात है कि गावों में महिलाओं को शौच जाने के लिए अंधेरे का इंतजार करना पड़ता है। यह ग्रामीण जीवन के मर्म को छूने वाली बात है। हर घर में शौचालय उनकी सरकार का लक्ष्य है। इससे न केवल स्वच्छता को बढ़ावा मिलेगा बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार में भी इससे मदद मिलेगी।
दरअसल प्रधानमंत्री का उद्बोधन ही हर मामले में लीक से हटकर है। कहते हैं ‘लीक लीक कायर चलेंं, लीकहिं चलें कपूत। लीक छांड़ि तीनों चलें, शायर सिंह सपूत।’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण को अपने विरोधियों पर हमले का मंच नहीं बनाया। यहां से उन्होंने अपने पड़ोसी देशों के बारे मेाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से अपील की कि वे जातिवाद और साम्प्रदायिकता के रास्ते को छोड़ें। देश सुशासन और विकास की दो पटरियों पर चलेगा तभी आगे बढ़ेगा।
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