अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और लंबी छलांग, जीएसएलवी मार्क-3 का सफलतापूर्वक लांच

X
By - ????? ???????? |19 Dec 2014 6:30 PM
अंतरिक्ष में लंबी उड़ान
इसरो ने मंगलयान के बाद अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और लंबी छलांग लगाते हुए आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में भारत में बना सबसे बड़ा रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 को सफलतापूर्वक लांच कर दिया। जीएसएलवी मार्क-3 यानी भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान की खासियत है कि यह अपने साथ 4 टन का वजन ले जा सकता है। यह भारत के लिए दोहरी खुशी का मौका है। एक तो देश के सबसे बड़े रॉकेट का लांच कामयाब रहा है और दूसरी अच्छी बात यह है कि भारत भी अंतरिक्ष में इंसान भेजने की क्षमता हासिल करने में कामयाब रहा। क्योंकि अभी तक अंतरिक्ष में इंसान को भेजने की काबिलियत रूस, अमेरिका और चीन के पास है। इस कामयाबी के साथ ही भारत उन देशों की सूची में शामिल हो गया, जो अंतरिक्ष में बड़े सेटेलाइट भेज सकते हैं।
इस सफलता से इसरो की दो साल के भीतर अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की महत्वाकांक्षी परियोजना को गति मिलेगी। चंद्रयान-1 और मंगलयान की कामयाबी के बाद भारत की निगाहें अब आउटर स्पेस पर हैं। इसरो ग्रहों की तलाश के लिए मिशन भेजने की योजना बना रहा है। खास बात यह है कि इसमें एक मानव मिशन भी शामिल है। मानव स्पेसफ्लाइट कार्यक्रम का उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा में एक मानव अंतरिक्ष मिशन शुरू करने की है। वर्तमान में, पूर्व परियोजना गतिविधियों क्रू मॉड्यूल, पर्यावरण नियंत्रण और लाइफ सपोर्ट सिस्टम, क्रू एस्केप सिस्टम आदि महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास पर इसरो ध्यान दे रहा है।
पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए मनुष्य को ले जाने और उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान शुरू करने के लिए एक अध्ययन इसरो द्वारा किया गया है। देश की क्षमता का निर्माण और प्रदर्शन करने के उद्देश्य से साथ मानव मिशन उपक्रम से संबंधित तकनीकी और प्रबंधकीय मुद्दों का अध्ययन इसरो कर रहा है। कार्यक्रम के बारे में 300 किलोमीटर पृथ्वी की निचली कक्षा और उनकी सुरक्षित वापसी के लिए 2 या 3 चालक दल के सदस्यों को ले जाने के लिए एक पूरी तरह से स्वायत्त कक्षीय वाहन के विकास की परिकल्पना की गई है। इसरो ने 2015 में अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने के लिए आरंभिक तैयारियां पूरी कर दी है। इसके लिए वैज्ञानिक अध्ययन का कार्य करीब-करीब पूरा कर लिया गया है। कुछ आवश्यक मंजूरियां मिलने के बाद अंतरिक्ष यान के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अंतरिक्ष में जाने वाली इसरो की पहली मानव फ्लाइट में दो यात्री होंगे। यह फ्लाइट अंतरिक्ष में सौ से नौ सौ किलोमीटर ऊपर तक जाएगी।
जीएसएलवी एमके-3 की प्रायोगिक उड़ान में एक्टिव दो ठोस बूस्टर, एक तरल कोर स्टेज और एक पैसिव क्रायोजेनिक स्टेज का इस्तेमाल किया गया। प्रक्षेपण के 330 सेकेंड बाद मॉड्यूल 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर रॉकेट से अलग हो गया और करीब 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसने फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया। तीन पैराशूटों की मदद से मॉड्यूल की रफ्तार को नियंत्रित किया गया और वह सफलतापूर्वक समुद्र में उतर गया। रॉकेट के प्रक्षेपण से लेकर मॉड्यूल के समुद्र में उतरने की प्रक्रिया में कुल 20 मिनट का समय लगा। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य नए रॉकेट की जटिल प्रक्रिया खासकर एयरोडायनेमिक और कंट्रोल विशेषताओं की जांच करना था, जिन्हें ग्राउंड पर जांचना संभव नहीं है। चार टन वजनी केयर मॉड्यूल के परीक्षण का मकसद देसी तकनीक की जांच करना था जो फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सके। इस मॉड्यूल का बाहरी आवरण वैसा ही था जैसा कि मानव मिशनों में इस्तेमाल होता है। जीएसएलवी एमके-3 के माध्यम से इसरो का मकसद साढ़े चार से पांच टन वजनी इनसेट-4 वर्ग के संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजना है। इससे भारत करोड़ों डॉलर के व्यावसायिक प्रक्षेपण बाजार में भी अपनी पैठ बना सकेगा।
भारत ने एक दशक पहले इस रॉकेट के विकास की शुरुआत की थी। जीएसएलवी एमके-3 की पहली प्रायोगिक उड़ान पूरी कर ली है। इसके दो ठोस चरणों और तरल कोर स्टेज का प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक रहा। प्रायोगिक मॉड्यूल का प्रदर्शन भी काफी अच्छा रहा। इस मॉड्यूल में तीन लोग जा सकते हैं। यह मॉड्यूल पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक बंगाल की खाड़ी में गिरा। इस तरह के शक्तिशाली प्रक्षेपण यान के विकास का सपना 1990 के दशक में देखा गया था जो अब पूरा हो गया। इसकी भार ले जाने की क्षमता दूसरों के मुकाबले ज्यादा है। इसकी सफलता से भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने को लेकर इसरो का आत्मविश्वास बढ़ा है। इस रॉकेट की पूर्ण विकसित उड़ान में अभी दो साल का समय लगेगा। जीएसएलवी एमके-3 की परिकल्पना और उसकी डिजाइन इसरो को इनसेट - 4 र्शेणी के 4500 से 5000 किलोग्राम वजनी भारी कम्युनिकेशन सेटेलाइट्स को लांच करने की दिशा में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाएगा। इससे अरबों डॉलर के व्यावसायिक बाजार में भारत की क्षमता में इजाफा होगा। भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान होता है। यह यान उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है।
रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 फीसदी उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है।
कुलमिलाकर जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण और बड़ी उपलब्धि है। जिससे आने वाले समय में भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी ताकत बनकर उभरेगा। इस सफलता से भारत का मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान का सपना भी जल्द पूरा हो सकेगा और भारत को वाणिज्यिक फायदा भी होगा।
खबरों की अपडेट पाने के लिए लाइक करें हमारे इस फेसबुक पेज को फेसबुक हरिभूमि, हमें फॉलो करें ट्विटर और पिंटरेस्ट पर-
और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App
Next Story
- होम
- क्रिकेट
- ई-पेपर
- वेब स्टोरीज
- मेन्यू
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS