सेना की बढ़ती ताकत, हथियारों के परीक्षण में लगातार मिल रही है सफलता

सेना की बढ़ती ताकत, हथियारों के परीक्षण में लगातार मिल रही है सफलता
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भारतीय वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-4 का सफल परीक्षण किया।
अग्नि-4 के सफल परीक्षण के बाद चीन से परमाणविक मुकाबला करने की भारत की ताकत बढ़ी है। भारतीय वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-4 का सफल परीक्षण किया। इसकी मारक क्षमता 4000 किलोमीटर तक है। यह मिसाइल एक टन तक के परमाणु हथियार ले जा सकती है। इसकी लंबाई 20 मीटर और वजन 17 टन है। ओडिशा राज्य में एक तट के समीप अग्नि-4 का यह चौथा परीक्षण है। उम्मीद है कि भारतीय सेना को वर्ष 2016 तक ‘अग्नि-4’ वर्ग की बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस कर दिया जाएगा। सतह से सतह पर मार करने वाली अत्याधुनिक मिसाइल उच्च स्तर का भरोसा पैदा करने में आधुनिक एवं सुगठित वैमानिकी से लैस है। इस मिसाइल में अत्याधुनिक वैमानिकी एवं पांचवीं पीढ़ी की ऑन बोर्ड कंप्यूटर प्रणाली है। इसमें रास्ते में उत्पन्न होने वाले अवरोध को दूर करने के लिए नवीनतम व्यवस्था की गई है।
अग्नि-1, 2 और 3 तथा पृथ्वी मिसाइलें पहले से ही सशस्त्र बलों के बेड़े में शामिल हैं और इनकी मारक क्षमता 3000 किलोमीटर से अधिक दूरी तक है एवं ये भारत को प्रभारी प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं। तट के समीप लगाए गए रडार एवं इलेक्ट्रो ऑप्टिकल प्रणाली ने मिसाइल के सभी मापदंडों पर नजर रखी तथा लक्ष्य क्षेत्र में खड़ी नौसेना के दो जहाज अंतिम प्रक्रिया के गवाह बने। ‘अग्नि’ वर्ग की बैलेस्टिक मिसाइलें भारतीय रक्षा मंत्रालय के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम यानी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवेलपमेंट प्रोग्राम’ के अंतर्गत निर्मित की गई हैं। अग्नि-3 की 3500 किलोमीटर की मारक क्षमता की वजह से बीजिंग और शंघाई भारत के प्रक्षेपास्त्रों के दायरे में आ गए हैं बशर्ते इनको असम से प्रक्षेपित किया जाता है। अगर भारत अपने यहां किसी भी जगह से प्रक्षेपित कर चीन के हर एक कोने को भेदना चाहता है तो इसके लिए 5000 किलोमीटर के आसपास की एक अधिक लंबी दूरी के प्रक्षेपास्त्र की जरूरत होगी। इसके लिए अग्नि-5 को विकास किया जा रहा है। यह तीन चरण वाली प्रक्षेपास्त्र प्रणाली होगी, जिसे साल के आखिर में छोड़ा जाएगा। फिलहाल जो योजना है उसके मुताबिक इसे उन दो चरणों से होकर गुजरना है जिससे अग्नि-3 गुजरा है और जिसकी उड़ानों को मान्यता मिली हुई है। अब तीसरे चरण का विकास किया जाएगा और यह प्रक्षेपास्त्र को अतिरिक्त 2000 किलोमीटर तक की उड़ान के लिए जरूरी उछाल देगा। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ‘इससे भारत के पास छोटी और मध्यम दूरी के बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र आ जाएंगे।’
इस बीच वैज्ञानिकों ने पहले से ही उन अवरोधों की पहचान कर ली है जिनके कारण 2009 में अग्नि-2 की दो उड़ानों को क्षति पहुंची थी। दोनों ही घटनाएं गुणवत्ता में खामियों के कारण घटीं। एक उड़ान में खराब किस्म के तारों की वजह से बिजली शॉर्ट सर्किट हो गई और दूसरे में घटिया किस्म के निर्माण की वजह से कंट्रोल मोटर्स में दिक्कतें आईं। प्रक्षेपास्त्र दल ने अब उत्पादन प्रणालियों को सुव्यवस्थित करने के लिए कदम उठाए हैं और सार्वजनिक व निजी, दोनों ही क्षेत्रों के 150 उद्योगों-जिन पर वे अग्नि की प्रणालियों के विकास के लिए भरोसा करते हैं, पर वे कठोर नियंत्रण के उपाय किये हैं। इस बीच वैज्ञानिक अग्नि-3 के संस्करण को सड़कों से ले जाने की व्यवस्था बनाने पर काम कर रहे हैं। यह पहले से ही रेल से ले जाया जाता है। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे रक्षा बलों को प्रेक्षपास्त्र को देश के किसी भी हिस्से में ले जाने की मंजूरी मिल जाएगी और जरूरत पड़ी तो गोपनीय तरीके से भी।
अब भारत के पास अग्नि एक, दो, तीन, चार के साथ-साथ पृथ्वी और इंटर सेप्टर मिसाइल भी हैं। इस इंटर सेप्टर मिसाइल से हम अपना बचाव करते हुए दुश्मन की मिसाइलों को रास्ते में ही मार कर ध्वस्त कर सकते हैं। भारत इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल परीक्षण 26 जुलाई, 2010 को कर चुका है। उसने अपने आसमान की किलेबंदी में एक कदम और बढ़ाते हुए स्वदेश निर्मित इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल प्रायोगिक परीक्षण कर लिया है। जिसने बंगाल की खाड़ी के ऊपर 16 किलोमीटर की ऊंचाई पर ‘दुश्मन’ बैलेस्टिक मिसाइल को ध्वस्त कर दिया। इस परीक्षण में ‘दुश्मन’ बैलेस्टिक मिसाइल सतह से सतह पर मार करने वाली आधुनिक पृथ्वी मिसाइल को बनाया गया। पूर्ण बहुस्तरीय बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) प्रणाली विकसित करने के लिए ओडिशा तट के आईटीआर के दो प्रक्षेपण स्थलों से किया गया परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा। वायुमंडल के भीतर की परिस्थिति (30 किलोमीटर की ऊंचाई तक) के लिए तैयार की गई इंटरसेप्टर मिसाइल सात मीटर लंबी और एकल चरण ठोस ईंधन रॉकेट चालित मिसाइल है जो आंतरिक नेवीगेशन प्रणाली, उच्च तकनीकी वाले कंप्यूटर और इलेक्ट्रो मैकेनिकल एक्टीवेटर से लैस है। जिसे जमीन पर आधुनिक राडारों से संकेत मिलते हैं। वायुमंडल के बाहर की परिस्थिति यानी इंटरसेप्टर दोहरे चरण वाली मिसाइल होती है। ये मिसाइलें भारत के जल, थल और नभ की सुरक्षा करने में सक्षम है।
डीआरडीओ भारत की बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र प्रतिरक्षा प्रणालियों (बीएमडी) को भी तैयार कर चुका है। डीआरडीओ के पूर्व निदेशक सारस्वत ने कहा है कि परीक्षण उड़ानों में इसकी अधिकतर प्रणालियों को मान्यता दे दी गई है और वे वायुमंडल के भीतर और बाहर दोनों ही रास्ते से आ रहे बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्रों को नष्ट कर सकती हैं और काफी ऊंचाई पर उन्हें नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। हालांकि बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र प्रतिरक्षा प्रणाली खर्चीली है, लेकिन इससे पाकिस्तान से परमाणु प्रक्षेपास्त्र हमलों के खिलाफ भारत के प्रमुख शहरों को जरूरी कवच हासिल हो गया है। अगर भारत को लंबी दूरी की प्रक्षेपास्त्र प्रणालियों को विकसित करना है तो उसे अंतर महाद्वीपीय बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र भी विकसित करने होंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की ओर से डिजाइन और असेंबल किए गए इसके अंतरिक्ष वाहन में 10000 किलोमीटर से अधिक दूरी तक पेलोड छोड़ने के लिए पहले ही रॉकेट क्षमता मौजूद है, लेकिन सरकार इसे अंतर महाद्वीपीय बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र में तब्दील करने या डीआरडीओ को अंतर महाद्वीपीय बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र को विकसित करने की मंजूरी देने के मामले में थोड़ी हिचकती रही है। डीआरडीओ कहता रहा है कि अगर भारत को कभी भी ऐसी जरूरत पड़ती है तो वह पांच साल के भीतर ऐसे प्रक्षेपास्त्र का निर्माण कर लेगा, लेकिन अब उसने अपना नजरिया बदल दिया है। अग्नि-4 से उसकी ताकत बढ़ी है। यह भारत के लिए राहत की बात है।
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