बही बदलाव की बयार, आंतकवाद से ग्रस्त चुनाव

इतनी भारी संख्या में मतदान करने लोग किसी सत्तारूढ़ पार्टी की वापसी के लिए नहीं आते। जम्मू कश्मीर में तो पहले और दूसरे चरण में 71 और 70 प्रतिशत मतदान ने पूरी दुनिया को अचंभित किया। झारखंड में भी पहले चरण में 71 प्रतिशत मतदान हुआ तो अंतिम चरण में 70.42 प्रतिशत। कश्मीर में हमने देखा कि दो दौर के मतदान के बाद किस तरह आतंकवादियों ने हमला आरंभ किया। हर चुनाव के पूर्व एवं बाद आतंकवादी हमले हुए, सरपंच मारे गए, सुरक्षा बल एवं आम नागरिक मारे गए। उड़ी, त्राल और बारामूला ऐसे क्षेत्र थे जहां बड़े आतंकवादी हमले हुए, आतंकवादियों का यहां प्रभाव भी माना जाता है पर यहां भी लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट डाले। एक ओर कंपकंपाती ठंड, कोहरे, लगातार आतंकवादी हमलों, सामने लटकती मौत के खतरे और अपने-अपने क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले अलगावादियों के बहिष्कार के बावजूद मतदाताओं का इतनी संख्या में घर से निकलने का कोई एक सामान्य कारण तो नहीं हो सकता। दूसरी ओर झारखंड का यह पहला चुनाव है जो शत-प्रतिशत शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया। किसी को उम्मीद नहीं थी कि झारखंड का चुनाव बिना खून-खराबे के संपन्न होगा।
जम्मू कश्मीर में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 3 स्थान और 32.4 प्रतिशत मत पाये थे। पीपुल्स डेमोकेट्रिक पार्टी ने भी 3 सीटें जीतीं, लेकिन उसे मत केवल 20.5 प्रतिशत ही मिला। नेशनल कॉन्फेंस को 19.11 प्रतिशत मत मिला एवं सीटें एक भी नहीं। लोकसभा चुनाव के अनुसार 87 सीटों वाली विधानसभा में सबसे ज्यादा स्थानों पर 41 पीडीपी को, भाजपा को 27 स्थानों पर तथा नेकां को 6 एवं कांग्रेस को 10 पर बढ़त थी। जाहिर है, भाजपा ने अपनी स्थिति लगभग बनाए रखी है। भाजपा को घाटी में मिल मतों को ध्यान रखें तो उसके असर का विस्तार हुआ है। यह सामान्य बात नहीं है। यह भी सच है कि घाटी में मोदी के बढ़ते प्रभाव को विरोधियों ने लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल किया। यह कहा गया कि अगर आपने मतदान नहीं किया तो भाजपा आ जाएगी। तो मोदी जम्मू कश्मीर में पक्ष एवं विपक्ष में ध्रुवीकरण के मुख्य कारक बन गए। नेशनल कॉन्फेंस और कांग्रेस को अलग-अलग उम्मीद से ज्यादा स्थान आने का मुख्य कारण ही रणनीतिक मतदान था। यानी अनेक क्षेत्रों में मतदाताओं के बड़े वर्ग ने भाजपा को हराने वाले उम्मीदवार को मत दिया। इस रणनीतिक मतदान ने ही भाजपा के 44 से ज्यादा सीट के लक्ष्य को पूरा नहीं होने दिया।
झारखंड में भी भाजपा ने लोकसभा चुनावों में 14 में से 12 स्थानों पर विजय पाकर राजनीति को लगभग एकतरफा कर दिया था। झारखंड मुक्ति मोर्चा शेष बची 2 स्थानें तो जीतीं पर मत उसे केवल 9.4 प्रतिशत ही मिला था। लोकसभा चुनाव के अनुसार भाजपा को 58 स्थानों पर, झामुको को 9, झारखंड विकास मोर्चा को 4, कांग्रेस को 3 एवं अन्य को 7 स्थानों पर बढ़त थी। झारखंड में भाजपा सरकार बना रही है पर परिणाम उसकी उम्मीदों के अनुरूप नहीं है। लोकसभा चुनाव के अनुसार उसकी सीटें घटीं हैं। दोनों राज्यों में भाजपा नहीं मोदी ही चुनाव लड़ रहे थे। मोदी का नाम झारखंड के शहरों से निकलकर कस्बों एवं गांवों तक पहुंच चुका था। उनकी सभाओं में उमड़ता जनसमूह साफ कह रहा था कि लोगों का आकर्षण कायम है। झारखंड विकास मोर्चा तक अपनी प्रतिष्ठा बचाने में सफल रहा। यह केवल भाजपा के कारण ही हुआ।
बावजूद इसके झारखंड को पहली बार लगभग बहुमत वाली सरकार मिल रही है। देखना होगा मोदी के केंद्रीय नेतृत्व वाली भाजपा की प्रदेश सरकार वहां के लिए अपरिहार्य हो चुकी सत्ता की नई संस्कृति कायम कर पाती है या नहीं। झारखंड के आम लोग नेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, दलालों और कारोबारियों की दुरभिसंधि से हो रही भ्रष्टाचार का अंत देखना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें शेष पार्टियों में भाजपा बेहतर विकल्प दिखी। कारण, झामुमो सत्ता में थी, कांग्रेस उसके साथ सहभागी थी भले वह चुनाव साथ नहीं लड़ी, शेष पार्टियों में किसी के पास स्थिर सरकार देने का माद्दा नहीं था और मोदी के प्रति विश्वास था। बावजूद भाजपा की प्रदेश इकाई अपनी दुर्बलताओं के कारण इस माहौल को अपार बहुमत में परिणत करने में सफल नहीं हुई। भाजपा के लिए यह विचार करने का विषय है।
जम्मू कश्मीर की ओर लौटें तो उसे एक पार्टी बहुमत वाली सरकार नहीं मिली, जो कि राज्य के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। पीडीपी पूर्व आकलन के अनुसार सीटें नहीं ला पाई। सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया। अगर लोन की पार्टी को कुछ सीटें मिली होतीं तो संभवत: भाजपा एवं पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की मिलीजुली सरकार की संभावना बन सकती थी पर उसके मतों में वृद्घि हुई है। ऐसे समय जब कश्मीर के बारे में कुछ ठोस कदम उठाए जाने हैं, बहुमत की सरकार आवश्यक थी। जो भी हो, कश्मीर की राजनीति को नये समीकरण के साथ काम करना होगा। इसका भी असर आने वाली राजनीति पर होगा। यह बदलाव का सबसे बड़ा संकेतक है।
कुल मिलकार यह मानना होगा कि कश्मीर की राजनीति ने करवट लेना आरंभ किया है। हो सकता है उसे सुदृढ़ होने में समय लगे। झारखंड में इस परिणाम ने दो ध्रुवीय राजनीति की ओर जाने का अभी संकेत दिया है। इसे भी सुदृढ़ होने में समय लगेगा, लेकिन इनका होना निश्चित है। बदलाव की एक बार चली हवा जब तक तार्किक परिणिति तक नहीं पहुचंती वह रुक नहीं सकती।
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