धार्मिक आस्था का सम्मान

धार्मिक आस्था का सम्मान
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इस परियोजना को लेकर ढेरों खतरनाक आशंकाएं भी जतायी जा रही हैं। इसे तोड़ना पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक माना जा रहा है।

मोदी सरकार ने सेतु समुद्रम परियोजना को पूरा करने की प्रतिबद्घता दिखाते हुए रामसेतु की रक्षा का संकल्प व्यक्त किया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भरोसा दिया है कि उनकी सरकार रामसेतु को बचाते हुए सेतु समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट को पूरा करेगी। केंद्र सरकार का यह फैसला उन करोड़ों लोगों की भावनाओं का सम्मान है जिनका विश्वास व आस्था रामसेतु से जुड़ा है और जो मानते हैं कि रामसेतु भगवान र्शीराम द्वारा निर्मित है। सेतु समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का उद्देश्य इस क्षेत्र को बड़े पोतों के परिवहन योग्य बनाना और तटवर्ती इलाकों में मत्स्य और नौवहन बंदरगाह स्थापित करना है, लेकिन इस परियोजना का प्रारंभ से ही विरोध हो रहा है।

पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने तर्क दिया था कि रामसेतु को तोड़ने से भारत और र्शीलंका के बीच पाक जलडमरुमध्य और मन्नार की खाड़ी को जोड़ा जा सकेगा और जहाजों को पूर्वी तट तक जाने के लिए र्शीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। अगर रामसेतु को तोड़ दिया जाए तो समय और ईंधन दोनों की बचत होगी। उच्चतम न्यायालय ने 23 जुलाई, 2008 को सेतु समुद्रम शिप चैनल प्रोजेक्ट के वैकल्पिक मार्ग की संभावना तलाशने के लिए पर्यावरणविद् डॉ. आरके पचौरी की अध्यक्षता में समिति के गठन का आदेश दिया था। समिति ने अपनी सिफारिशों में सेतुसमुद्रम परियोजना को पर्यावरणीय, आर्थिक और भावनात्मक आधार पर विनाशकारी करार दिया, लेकिन यूपीए सरकार ने समिति के सुझावों को नहीं माना। रामसेतु हिंदुजन आस्था का प्रतीक है और उसकी ऐतिहासिकता को संरक्षित रखना सरकार का कर्त्तव्य है।

2005 में भारत सरकार ने इस परियोजना को हरी झंडी दिखायी। अगर रामसेतु को बचाते हुए इस परियोजना को अमलीजामा पहनाया जाता है तो रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा, लेकिन इस परियोजना को लेकर ढेरों खतरनाक आशंकाएं भी जतायी जा रही हैं। इसे तोड़ना पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक माना जा रहा है। रामसेतु एक ऐतिहासिक साक्ष्य है। इसे तोड़ने से न केवल ऐतिहासिकता नष्ट होगी बल्कि रामेश्वरम मंदिर का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। अगर रामसेतु टुटता है तो सुनामी से केरल को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
हजारों समुद्रतटीय मछुवारों की जीविका चली जाएगी। लाखों लोगों को भूखों मरने की स्थिति में होंगे। इसके अलावा इस क्षेत्र से मिलने वाले दुर्लभ शंख और शिप जिनसे करोड़ों रुपये की आय होती है उससे भी हाथ धोना पड़ेगा। भारतीय नौसेना के समक्ष भी ढेरों चुनौतिया उपस्थित होंगी। पर्यावरणविदों का कहना है कि पाक और मन्नार की खाड़ी को गहरा करने से पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ जाएगा। सेतु समुद्रम परियोजना को अमलीजामा पहनाने के लिए तकरीबन 44़9 नॉटिकल मील यानी 83 किलोमीटर लंबा एक गहरा
जलमार्ग खोदा जाएगा जिसके द्वारा पाकजलडमरुमध्य को मन्नार की खाड़ी से जोड़ जाएगा। स्वाभाविक रूप से इससे हजारों टन मलवे निकलेंगे और उससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। तथ्य यह भी कि खुदायी से बंगाली की खाड़ी से पानी का बहाव मन्नार की खाड़ी की ओर बढ़ेगा और उससे मन्नार की खाड़ी का पारिस्थितिकीय तंत्र और भू-जल संतुलन बिगड़ जाएगा। पर्यावरणविदों ने सतर्क किया है कि इस पट्टी की गहराई बढ़ाने और तटबंधों को मजबूत बनाने के लिए होने वाले उत्खनन से उस क्षेत्र में पलने वाले दुर्लभ प्रजाति के समुद्री जीवों और वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। आशंका यह भी जतायी जा रही है रामसेतु के आसपास थोरियम के भारी भंडार हैं और अगर सेतुसमुद्रम परियोजना फलीभूत होती है तो यह भंडार नष्ट हो सकता है।
सेतु समुद्रम परियोजना की ऐतिहासिकता पर गौर करें तो इस परियोजना का प्रस्ताव 1860 में भारत में कार्यरत ब्रितानी कमांडर एडी टेलर ने रखा था। तकरीबन डेढ़ सौ साल बाद यह योजना फिर सुर्खियों में है। बता दें कि ढाई हजार करोड़ की इस परियोजना के लिए भारत सरकार ने स्वेज नहर प्राधिकरण के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। स्वेज नहर प्राधिकरण ही सेतुसमुद्रम शिपिंग चैनल प्रोजेक्ट का निर्माण और देखभाल करेगा। यह चैनल 12 मीटर गहरा और 300 मीटर चौड़ा होगा। देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र की सरकार रामसेतु की रक्षा करते हुए इस परियोजना को कैसे अंजाम तक पहुंचाती है। फिलहाल उसने रामसेतु की रक्षा का प्रतिबद्घता जता देशवासियों की आस्था का सम्मान किया है।

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