बदल सकते हैं हालात

बदल सकते हैं हालात
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आजादी के 67 साल बाद भी आम आदमी के जीवन में वैसे बदलाव नहीं हो पाए हैं, जिसकी उन्हें अपेक्षा थी।

राष्ट्र आज 68वां स्वाधीनता दिवस मना रहा है। सबकी निगाहें नव नियुक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर टिकी हैं, जो लालकिले की प्राचीर से पहला भाषण देने जा रहे हैं। मई 2014 में देश में बड़ा राजनीतिक बदलाव हुआ। कांग्रेस नीत यूपीए के दस साल के शासन के बाद मई के अंतिम सप्ताह में भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने देश की बागडोर संभाली है। चुनाव अभियान के दौरान नरेन्द्र मोदी ने देश को हर स्तर पर बदलाव के जो सुनहरे सपने दिखाए हैं, अब उन्हें मूर्त रूप देने की चुनौती है। राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का उत्तर देते हुए मोदी ने संसद में कहा कि जब तक मतदान नहीं हुआ, तब तक हम उम्मीदवार थे। अब जनता की उम्मीदों के रखवाले हैं। उन्हें यह अहसास है कि देश उनसे किस तरह के शासन की अपेक्षा लगाए बैठा है। पिछले कुछ वर्ष के डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के कामकाज से हताश हो चुके जनमानस के लिए नरेंद्र मोदी सरकार काढाई महीने का शुरुआती कामकाज और फैसले निश्चित रूप से एक उम्मीद की लौ जगाते हैं।

यह समझना जरूरी है कि देश विगत कुछ वर्षों में किन हालातों से गुजरा है। डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के समय एक के बाद एक कई बड़े घोटाले उजागर हुए। भ्रष्टाचार की खबरें सुर्खियां बनती रहीं। एक केन्द्रीय मंत्री, कुछ राज्यों के मंत्री, कुछ पूर्व मुख्यमंत्री, कई सांसद, विधायक, कॉरपोरेट जगत के कुछ चेहरे और नौकरशाह भ्रष्टाचार और घोटालों के गंभीर आरोपों में जेल जाते हुए देखे गए। सुप्रीम कोर्ट को कई मामलों की सीबीआई जांच की निगरानी करनी पड़ी। कदाचार के गंभीर आरोपों के उपरांत कुछ केन्द्रीय मंत्रियों को इस्तीफे देने पड़े। कुछ राज्यों के मंत्रियों पर रेप जैसे गंभीर आरोप लगे। कालेधन के सवाल पर देश ने बड़े जनांदोलन देखे। लोकसेवकों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल की मांग को लेकर ऐतिहासिक आंदोलन हुआ। इसके अलावा महंगाई ने वृद्धि के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
ये सब ऐसे कारण रहे, जिनके चलते लोगों का यूपीए सरकार से पूरी तरह मोहभंग हुआ। नतीजतन 2009 में 206 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2014 में केवल 44 सीटों पर सिमटकर रह गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जानते हैं कि भ्रष्टाचार ने पूरी व्यवस्था को खोखला करके रख दिया है। यही वजह है कि आजादी के 67 साल बाद भी आम आदमी के जीवन में वैसे बदलाव नहीं हो पाए हैं, जिसकी उन्हें अपेक्षा थी। तीन दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी करगिल में थे। वहां उन्होंने यह कहते हुए अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं कि न खाऊंगा और न किसी को खाने दूंगा। यानी भ्रष्टाचार और उसमें लिप्त नेताओं और नौकरशाहों को उनकी सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी। हाल ही में उन्होंने नौकरशाहों के लिए 19 सूत्री नियम जारी किए हैं, जो उनकी सेवा नियमावली में शामिल कर लिए गए हैं। उन्हें कहा गया है कि आम आदमी (गरीब) यदि किसी काम से आता है तो उसके साथ सम्मान के साथ पेश आएं और समय सीमा में उसके काम को अंजाम दें।
संसद में अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबों के जीवन में बदलाव लाना उनकी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। 2020 तक वे चाहते हैं कि देश के हर नागरिक के पास अपना घर हो, जिसमें पानी, बिजली और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा हो। बकौल मोदी, सरकार ऐसी होनी चाहिए, जो गरीबों की सुने और गरीबों के लिए जिये। जाहिर है, ऐसा करके वे यह दिखाना चाहते हैं कि कांग्रेस ने गरीबों के नाम पर सिर्फ वोट बटोरे हैं, जबकि उनकी सरकार जमीन पर उनके लिए काम करना चाहती है। वे बेरोजगारी खत्म करने का रोडमैप पेश करने के संकेत पहले ही दे चुके हैं। वे चाहते हैं कि भारत पूरे विश्व के लिए र्शम शक्ति तैयार करे। कौशल विकास के लिए बड़े स्तर पर प्रयास शुरू हों ताकि हर क्षेत्र के सिद्धस्थ और सक्षम हाथ तैयार किए जा सकें। नरेन्द्र मोदी की सरकार यदि गरीबों को शिक्षित करने और बेरोजगार युवाओं के कौशल विकास के अपने एजेंडे को मूर्त रूप दे सकी तो यह उसकी बड़ी उपलब्धि होगी। यही नहीं, इससे विकास की गति को पंख लगने में भी देर नहीं लगेगी।
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