लोकतंत्र की बही बयार, जम्मू कश्मीर में हुआ शांतिपूर्ण चुनाव का पहला दौर संपन्न

लोकतंत्र की बही बयार, जम्मू कश्मीर में हुआ शांतिपूर्ण चुनाव का पहला दौर संपन्न
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जम्मू-कश्मीर में 25 नवंबर को पंद्रह विधानसभा सीटों के लिए प्रथम चरण का चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हो गया है।

नई दिल्ली. जम्मू-कश्मीर में 25 नवंबर को पंद्रह विधानसभा सीटों के लिए प्रथम चरण का चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हो गया है। हालांकि विधानसभा चुनाव ने यहां की सर्द फिजाओं को बहुत सरगर्म बना दिया है। बाकी प्रांतों के विधानसभा चुनावों से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव काफी कुछ पृथक प्रतीत होते हैं। क्योंकि जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय सुरक्षा के नजरिए से भारत का एक अत्यंत संवेदनशील प्रांत रहा है। विगत तकरीबन 26 वर्षों से जम्मू-कश्मीर प्रांत पाक पोषित आतंकवाद का शिकार रहा है। दिल्ली में सत्तानशीन पार्टी सदैव से ही जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में बहुत गहरी दिलचस्पी लेती रही है। इस बार भी केंद्र में सत्तानशीन भारतीय जनता पार्टी जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में अपना परचम लहराना चाहती है। अत: केंद्र में सत्तानशीन भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव कैंपेनर बनाकर जम्मू-कश्मीर में अपनी किस्मत आजमाई है।

हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मोदी अपने करिश्माई किरदार का प्रभाव प्रदर्शित कर चुके हैं। अब वही कारगर चुनावी मंत्र भाजपा ने जम्मू-कश्मीर और झारखंड प्रांतों में आजमाया है। आतंकवाद से ग्रस्त रहे जम्मू-कश्मीर में चुनाव महज रियासत में हुकूमत स्थापित करने की कवायद मात्र नहीं होते वरन् भारतीय लोकतंत्र में यहां के नागरिकों का अक्षुण्ण यकीन बनाए रखने के साथ ही साथ इन चुनावों का अंतरराष्ट्रीय महत्व भी रहा है। 1987 के विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस हुकूमत ने केंद्र की कांग्रेस हुकूमत के साथ साजिश करके बड़े पैमाने पर चुनावों में धांधली अंजाम दी थी। इसके बाद ही 1988 से कश्मीर में आतंकवाद का खूनी दौर प्रारम्भ हो गया, जो कि अभी तक पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।
हाल ही में सेना की फायरिंग में दो कश्मीरी नौजवानों की मौत ने यहां भारी कशीदगी और तनाव का वातावरण उत्पन्न कर दिया है। हालांकि भारतीय सेना ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है, किंतु आम लोगों के मध्य गम-ओ-गुस्सा अभी बरकरार बना रहा है। अभी हाल ही में एक कोर्ट मार्शल में एक फर्जी एनकाउंटर केस के तहत सेना के एक कर्नल सहित सात मुलजिमों को आजीवन कारावास की सजा का ऐलान किया गया। इस शानदार अदालती निर्णय से कश्मीर के आवाम का यकीन भारतीय कानून-व्यवस्था में निश्चित तौर पर बढ़ा है। 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) के नाम से निर्मित किए गए विपक्षी मोर्चे के अनेक लीडरान चुनाव मतगणना के आखिरी दौर तक आगे बने रहे, किंतु अंतिम परिणामों में उन्हें पराजित घोषित कर दिया गया था। चुनाव धांधली से निराश हताश होकर मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के लीडरों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद की शुरुआत की थी। 1987 के विधानसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर में 9 वर्षों की अवधि तक विधानसभा चुनाव आयोजित नहीं किए जा सके।
भारत के लिए यह एक गंभीर सबक रहा, जिसके बाद हुकमतों ने बहुत कुछ सोचा-विचारा और समझा। अब तो जम्मू-कश्मीर में काफी हद तक सामान्य स्थिति बहाल हो चुकी है। 1996 के बाद जम्मू-कश्मीर में 2002 और 2008 में विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए। विदित है कि संवैधानिक तौर पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है। 1977 में जम्मू-कश्मीर में हुकूमत शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने और 2002 में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बनाई थी। जम्मू-कश्मीर के संगीन हालात में इसी के बाद तेजी से सुधार प्रारम्भ हुआ। पाकिस्तान हमेशा से ही जम्मू-कश्मीर में जेहादी आंतकवाद के शोलों को हवा देने के लिए मौके की तलाश में संलग्न रहता है। 1987 की जम्मू-कश्मीर की फारुख हुकूमत और केंद्र की राजीव हुकूमत ने येनकेन प्रकारेण चुनाव में धांधली अंजाम देकर राज्य में चुनाव जीतने को एकमात्र अपना मकसद समझा तो पाकिस्तान को कश्मीर में प्रॉक्सी वार संचालित करने का कुटिल मौका उपलब्ध हो गया।
आज भाजपा जम्मू-कश्मीर में अपनी हुकूमत कायम करने की कोशिशों में जोर-शोर से मशगूल है। मोदी हुकूमत को यह समझना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर केवल एक प्रांत नहीं है वह भारत की एकता और अखंडता की सबसे बड़ी कसौटी है। भाजपा जब केंद्र में सत्तानशीन नहीं थी, तब उसने वहां अनेक आंदोलन किए, जिनका जबरदस्त सियासी लाभ भी उसे हासिल हुआ। 1996 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने डोडा आंदोलन किया था और प्रथम बार प्रांत में भाजपा ने आठ विधानसभा सीटें जीत ली थी।
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