मंगल पर जीवन के संकेत

मंगल पर जीवन के संकेत
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एरिजोना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान स्कॉलर लुजेंद्र ओझा को पहली बार इस बात के सबूत मिले थे कि मंगल पर लिक्विड फॉर्म में पानी मौजूद है।

पिछले दिनों अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मंगल ग्रह पर खारे पानी की मौजूदगी के पुख्ता सबूत दिए। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में मंगल ग्रह पर पानी होने की खोज कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है। इससे मंगल पर जीवन होने की संभावनाओं के बारे में वैज्ञानिक ठीक से पता लगा सकेंगे। पत्रिका नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने मंगल की कुछ ढलानों पर गर्मी के मौसम में बनी धारियों का अध्ययन किया, जिसके बारे में पहले माना जाता था कि वे खारे पानी के बहने से बनी होंगी। नासा ने दावा किया है कि मंगल ग्रह पर नमकीन पानी के तरल रूप में होने की पुष्टि हुई है, पहले पानी के जमे हुए रूप में होने का अनुमान था। धारियां अप्रैल-मई में बनीं, गर्मी में ये धारियां अच्छे से दिखने लगीं और अगस्त के अंत तक गायब हो गईं। एरिजोना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान स्कॉलर लुजेंद्र ओझा को पहली बार इस बात के सबूत मिले थे कि मंगल पर लिक्विड फॉर्म में पानी मौजूद है।

नासा ने अपने मुख्यालय में जेम्स वेब ऑडिटोरियम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस खोज का पूरा विवरण भी दिया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में अटलांटा के जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से जुड़े लुजेंद्र ओझा भी मौजूद थे। युनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में प्लैनेटरी जियोलॉजी के प्रोफेसर अल्फ्रेड एस. मैकएवेन के मुताबिक, अध्ययन दल ने मंगल ग्रह पर पानीयुक्त अणुओं (परक्लोरेट) की पहचान की है। मैकएवेन के अनुसार मंगल ग्रह पर खारे पानी का स्पष्ट तौर पर पता चला है। लगभग 4.5 अरब साल पहले मंगल ग्रह पर अभी की तुलना में साढ़े छह गुना अधिक पानी और एक स्थूल वायुमंडल था। अधिकांश पानी अंतरिक्ष में गायब हो गया और इसका कारण मंगल ग्रह पर पृथ्वी की तरह लंबे समय तक चुंबकीय क्षेत्र नहीं होना रहा। नासा को प्राप्त मंगल की ताजा तस्वीरों में लाल ग्रह पर पानी के सबूत मिले हैं। ये तस्वीरें नासा ने अपने वेबसाइट पर सबके देखने के लिए जारी की। तस्वीर के विेषण में सामने आया कि मंगल ग्रह की सतह पर पानी के बहने के निशान हैं और यह पानी अत्यंत खारा है। तरल पानी की मौजूदगी मंगल ग्रह पर जीवन खोजने की संभावना को और पुख्ता करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि तस्वीरों के जरिए मंगल ग्रह पर देखी गई गहरी लकीरों को अब तरल पानी के सामयिक बहाव से जोड़कर देखा जा सकता है। उपग्रहों से मिला डाटा दर्शाता है कि चोटियों पर दिखने वाले ये लक्षण नमक की मौजूदगी से जुड़े हैं। मंगल ग्रह पर ऐसा नमक, पानी के जमने और वाष्प बनने के तापमान को भी बदल सकते हैं जिससे पानी ज्यादा समय तक बह सकता है। मंगल पर पानी जमता तो पृथ्वी के समान जीरो डिग्री सेल्सियस पर ही है, लेकिन कम दबाव के चलते 10 डिग्री सेल्सियस पर ही वाष्पित हो जाता है। पृथ्वी पर पानी 100 डिग्री सेल्सियस पर भाप बनता है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा को सैटेलाइट से मिले डाटा से पता चलता है कि चोटियों पर दिखने वाली ये डार्क लाइन्स पानी और नमक के कारण बने हैं। नासा के इस खुलासे से मंगल ग्रह पर जीवन होने की नई उम्मीद जगी है।

नासा का नया डाटा दर्शाता है कि मंगल ग्रह अभी भी भौगोलिक रूप से सक्रिय है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल ग्रह पर देखी गई गहरी लकीरों को अब तरल पानी के सामयिक बहाव से जोड़कर देखा जा सकता है। अब मंगल ग्रह पर भविष्य में बस्तियां बसाने की कल्पना अब केवल कथा कहानियों तक सिमट कर नहीं रहेगी क्योंकि मंगल ग्रह की सतह पर पानी तरल अवस्था में देखा गया है जो जीवन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ ही ऐसी संभावनाएं बढ़ गई हैं कि मंगल पर जीवन मिल सकता है।
नासा के खगोलीय विज्ञान विभाग के निदेशक जिम ग्रीन के अनुसार मंगल एक सूखा और बंजर ग्रह नहीं है जैसा कि पहले सोचा जाता था। उन्होंने कहा, कुछ निश्चित परिस्थितियों में पानी तरल अवस्था में मंगल पर पाया गया है। वैज्ञानिक लंबे समय से यह अनुमान लगाते आ रहे थे कि कभी लाल ग्रह पर जीवन था। नासा ने कहा है कि तरल अवस्था में जल मिलने से यह संभव है कि वहां इस समय जीवन हो। इसके बारे में सर्वाधिक रोमांचित करने वाली बात यह है कि मंगल के बारे में हमारा प्राचीन नजरिया और मंगल पर जीवन की संभावना, मंगल पर पूर्व में जीवन के बारे में रासायनिक जीवाश्म की खोज के बारे में रही है। सच्चाई यह भी है कि मंगल पर तरल अवस्था में जल की मौजूदगी, भले ही यह बेहद खारा पानी हो, यह इस बात की संभावना पैदा करता है कि यदि मंगल पर जीवन है तो हमें यह बताने के लिए एक रास्ता मिला है कि यह जीवन वहां कैसे बना रहा। अब इस नई खोज ने इस सवाल को ठोस आकार दे दिया है कि क्या इस ग्रह पर जीवन है और अब हम इस सवाल का जवाब दे सकते हैं। नासा के विज्ञान अभियान निदेशालय के सहायक प्रशासक और अंतरिक्ष वैज्ञानिक जॉन ग्रुंसफेल्ड के अनुसार मंगल पर जल की मौजूदगी से मंगल पर मानव अभियान भेजना आसान हो जाएगा जिसे वर्ष 2030 तक भेजने की नासा की योजना है। ग्रुंसफेल्ड ने कहा, सतह पर जिंदा रहने के लिए वहां संसाधन हैं। उन्होंने कहा कि पानी महत्वपूर्ण है, लेकिन ग्रह पर अन्य महत्वपूर्ण तत्व भी हैं जैसे कि नाइट्रोजन जिसका इस्तेमाल ग्रीन हाउस में पौधों को उगाने के लिए किया जा सकता है।
मंगल पर पानी की मौजूदगी की यह घोषणा ब्लॉकबस्टर फिल्म द मार्सियन के रिलीज होने से पूर्व हुई है। इस फिल्म में मैट डेमोन मंगल ग्रह पर करीब एक महीने बिना भोजन के मरने के लिए छोड़ दिए जाने के बाद खुद को जिंदा रखते हैं। वैज्ञानिकों का लंबे समय से मानना रहा है कि कभी लाल ग्रह पर पानी बहता था और इसी से वहां घाटियां और गहरे र्दे बने, लेकिन तीन अरब साल पहले जलवायु में आए बड़े बदलावों के चलते मंगल का सारा रूप बदल गया। फिलहाल वैज्ञानिक समूह मंगल के बारे में अपनी समझ को क्रांतिकारी आकार दे रहे हैं। इस ग्रह की सतह की खोज में जुटे रोवर्स ने यह भी पाया है कि इसकी मिट्टी पहले लगाए गए अनुमानों से कहीं अधिक नम है। मंगल की सतह पर चार साल पहले ढलानों पर गहरे रंग की रेखाएं देखी गई थीं। वैज्ञानिकों के पास इसके सबूत नहीं थे, लेकिन बाद में पाया गया कि ये रेखाएं गर्मियों में बढ़ जाती थीं और उसके बाद सर्दियां आते आते गायब हो जाती थीं। अब पता चला है कि ये असल में पानी की धाराएं हैं, लेकिन अब इसके सावधानीपूर्वक अध्ययन और विेषण के बाद वैज्ञानिक यह कहने को तैयार हैं कि ये रेखाएं वास्तव में जल धाराएं हैं।
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