सुधार पथ पर सब्सिडी

सुधार पथ पर सब्सिडी
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असली समस्या सप्लाई के स्तर पर है जिसके लिए सीधे-सीधे नेता और नौकरशाह जिम्मेदार हैं।
घरेलू गैस पर मिलने वाली सब्सिडी का पैसा उपभोक्ता के खाते में सीधा हस्तांतरित (डीबीटी) करने संबंधी योजना की सफलता से उत्साहित सरकार ने अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को भी इसकी जद में लाने का मन बना लिया है। केंद्र ने सभी राज्य सरकारों से कहा है कि इस साल के अंत तक यह काम शुरू हो जाना चाहिए। रसोई गैस (एलजीपी) पर डीबीटी नवम्बर 2014 से लागू है। सरकार 14.19 करोड़ उपभोक्ताओं के बैंक खाते में सब्सिडी का 25447.93 करोड़ रुपया सीधे जमा करा चुकी है और हेराफेरी पर अंकुश लगाकर उसने पंद्रह हजार करोड़ रुपए की बचत भी कर ली है। यह योजना जब राशन की दुकानों से मिलने वाले गेंहू-चावल पर लागू हो जाएगी तब अंदाजा है कि केंद्र सरकार करीब पचास हजार करोड़ रुपये और बचा लेगी।
सरकार का मानना है कि पूरे देश में लाखों राशन कार्ड जाली हैं। जब सभी काडरें की बायोमैट्रिक पुष्टि हो जाएगी और राशन की एवज में पैसा सीधे उपभोक्ता के खाते में जमा होने लगेगा या उसे कूपन मिलने लगेगा, तब भ्रष्टाचार पर स्वत: अंकुश लग जाएगा। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून-2013 के अनुसार पीडीएस के हर लाभार्थी को हर माह पांच किलो अनाज मुहैया कराना सरकार का दायित्व है। वैसे 95 प्रतिशत राज्यों में राशन काडरें को आधार से जोड़ा जा चुका है। वहां सभी कार्ड धारकों से जुड़ी सूचना कम्पूटर में दर्ज है। केंद्र शासित चंडीगढ़ और पुडुचेरी में तो राशन का पैसा कार्ड धारक के खाते में सीधे जमा करने का काम शुरू भी हो चुका है। 2015-16 के बजट अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में सरकार खाद्यान्न पर 1.24 खरब रुपए की सब्सिडी देगी। सत्ता के गलियारों में बैठी जमात के अनुसार पीडीएफ प्रणाली में 40 फीसदी लीकेज है लेकिन दिल्ली और छत्तीसगढ़ में जब जांच की गई तब केवल 10 फीसदी कार्ड जाली पाए गए। असली समस्या सप्लाई के स्तर पर है जिसके लिए सीधे-सीधे नेता और नौकरशाह जिम्मेदार हैं।
राशन कार्डों की घटती संख्या इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करने में आड़े आएगी। पिछले कुछ साल में देश की आबादी तो बढ़ी है लेकिन राशन कार्ड धारकों की संख्या 22 करोड़ से कम होकर 16 करोड़ रह गई है। राशन का गेंहू, चावल जरूरतमंदों को न मिलकर खुले बाजार में बिकने की शिकायत भी आम है। केंद्र सरकार के अनुसार अभी राशन का 20 से 25 प्रतिशत अनाज बाजार में ऊंचे दाम पर चोर-बाजारी से बेचा जा रहा है। कुछ राजनीतिक दलों को डर है कि योजना लागू हो जाने के बाद सरकार किसानों की उपज का न्यूनतम खरीद मूल्य बढ़ाने में हिचकिचाएगी। गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा आदि का जितना खरीद मूल्य बढ़ेगा, सरकार की सब्सिडी भी उतनी बढ़ जाएगी। यदि किसानों की उपज की कीमत नहीं बढ़ी और उन्हें पेट भरने के लिए सस्ती दर पर पर्याप्त अन्न मिल गया तो वे अनाज पैदा करने के बजाए अन्य फसल उगाएंगे। इस कारण देश को अनाज का आयात करना पड़ेगा और हमारी खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने के लिए सरकार को ग्रामीण विकास का मजबूत ढांचा खड़ा करना होगा। किसानों की निश्चित आय गारंटी की मांग भी अब जोरों से उठने लगी है। खाद्य सुरक्षा कानून और डीबीटी की सफलता के लिए इस मांग पर विचार किया जाना, समय की मांग है। लेकिन सरकार ऐसे सुझावों की अनदेखी कर रही है। वैसे भी रसोई गैस और अनाज पर मिलने वाली सब्सिडी में भारी भेद है।
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