राज्य स्कूलों में शिक्षा का विकास करने में सफल रहे

नई दिल्ली. साक्षरता और शिक्षा के मामले में भारत की गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है। इस मामले में हम चीन, श्रीलंका, म्यांमार, ईरान से भी पीछे हैं। हालांकि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का वादा संविधान में किया गया है। इसे दस साल में पूरा करने का लक्ष्य भी तय किया गया था, लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। इसके लिए सरकार के पास धन नहीं था। इसलिए राष्टÑीय स्तर पर किसी ठोस योजना की शुरुआत नहीं हो सकी। राज्यों के स्तर पर अलग-अलग प्रयास किये गये। स्वतंत्रता के बाद राज्य की गरिमा को बढ़ाने के लिए कई राज्यों ने स्कूलों में उस राज्य की भाषा को शिक्षा का माध्यम चुना।
मुख्यत: प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर मध्यमवर्ग का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा दिलाने के पक्ष में था, अत: उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकालकर प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करवा दिया। ये निजी स्कूल कई तरह के थे- इतावली मॉन्टेसरी शाखाएं, चर्चों द्वारा संचालित असंख्य स्कूल, लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग कॉन्वेन्ट, निजी संस्थाओं और रामकृष्ण मिशन तथा चिन्मया शाखाओं द्वारा संचालित स्कूल। यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी राज्य और नगर निगम के स्कूलों से दूरी बनाने लगे थे। केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना सरकारी राज्य सेवाकर्मियों के बच्चों के लिए और सैनिक स्कूलों की स्थापना मिलिटरी अफसरों के बच्चों के लिए हुई।
और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS