बयान पर बवाल क्यों

निस्संदेह, जिनका इस सोच से मतभेद है उनको उसे प्रकट करना ही चाहिए, लेकिन इसमें नया कुछ नहीं है। इसमें कहीं से यह अर्थ नहीं निकलता है कि सभी को हिंदू कर्मकांड अपनाने के लिए मजबूर करने का उनका विचार है। इसका यह भी अर्थ नहीं निकलता है कि दूसरे मजहब और संप्रदाय के लोगों को इस देश में अपने मजहब और उपासना पद्घति के साथ रहने का अधिकार नहीं है। यह संघ की मूल सोच है जिस पर वह खड़ी है। इसलिए ऊपरी तौर पर इसमें ऐसा कुछ नहीं दिखता जिस पर इतना बड़ा बवण्डर खड़ा किया जाए। कांग्रेस के मनीष तिवारी, माकपा के सीताराम येचुरी व जदयू के शरद यादव ने एतराज जताते हुए कहा कि संविधान में कहीं भी हिंदुस्तान का जिक्र नहीं है। बात ठीक है इसमें भारत और इंडिया कहा गया है। बसपा की मायावती ने भी आपत्ति जताई और कहा कि भीमराव अंबेडकर ने सभी धर्मों को एक भाव से देखते हुए भारत नाम दिया था। लिहाजा भागवत को ऐसे बयानों से बचना चाहिए, जिनसे एकता पर असर पड़े। दिग्विजय सिंह ने कहा कि, ‘आज जितना खतरा तालिबान की विचारधारा से है, उतना ही खतरा आरएसएस की विचारधारा से है।
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