बयान पर बवाल क्यों

बयान पर बवाल क्यों
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जिस ढंग से विरोधी नेताओं और मीडिया के एक धड़े ने इसे महाविवाद का मुद्दा बनाया हुआ है उससे कुछ सकारात्मक नहीं निकलने वाला।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा हाल के कार्यक्रमों में दिए गए हिंदू एवं हिंदू राष्ट्र संबंधी वक्तव्य पर जो बावेला खड़ा हुआ है उससे बाहर निकलकर इस पर विचार करने की आवश्यकता है। वास्तव में हमारा देश ऐसी अवस्था में पहुंच गया है जहां ऐसा लगता ही नहीं कि किसी के बयान पर शांति और संतुलन से विचार कर प्रतिक्रिया देने की हम आवश्यकता समझते हैं। किसी का एक बयान आया नहीं कि हम उसका परिप्रेक्ष्य, पृष्ठभूमि संदर्भ आदि जाने बिना हंगामा करने लगते हैं। जिस ढंग से विरोधी नेताओं और मीडिया के एक धड़े ने इसे महाविवाद का मुद्दा बनाया हुआ है उससे कुछ सकारात्मक नहीं निकलने वाला। इसलिए नहीं कि उनको असहमति व्यक्त करने का अधिकार नहीं है, बल्कि इसलिए कि इनने इसे इस तरह प्रस्तुत किया है मानो पहली बार और कोई अजूबी बात मोहन भागवत ने कही है। संघ के विचारों से मतभेद होना अपनी जगह है, पर जिन्होंने संघ के विचारों को पढ़ा है, संघ नेताओं के भाषणों को सुना है वे निस्संकोच कहेंगे कि भागवत ने कोई नई बात नहीं कह रहे हैं। संघ की मान्यता है कि किसी व्यक्ति का मजहब कुछ भी हो सकता है, उसकी उपासना पद्धति कोई भी हो सकती है, पर हिंदुस्तान में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है। हिंदू विशेषण संघ राष्ट्रीयता के तौर पर प्रयोग करता है। वह भारत को हिंदू राष्ट्र कहता ही है।
मोहन भागवत ने जो कहा वह उनकी परंपरागत सोच और पहले से कही जा रही बातों की पुनरावृत्ति भर है, लेकिन हमारी मीडिया की कृपा और कुछ नेताओं की शब्दवीरता से ऐसा संदेश निकला मानो मोहन भागवत ने ऐसा बयान दिया है जो पहले कभी आया नहीं और इस कारण इतना बड़ा विवाद खड़ा हो रहा है। आइए यह देखें कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा क्या है। इन उक्तियों पर दृष्टिपात करिए, ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है, हिंदुत्व इसकी पहचान है और यह (हिंदुत्व) अन्य (धर्मों) को स्वयं में समाहित कर सकता है। अगर इंग्लैंड में रहने वाले अंग्रेज हैं, जर्मनी में रहने वाले जर्मन हैं और अमेरिका में रहने वाले अमेरिकी हैं तो फिर हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोग हिंदू क्यों नहीं हो सकते। सभी भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान हिंदुत्व है और देश में रहने वाले इस महान सस्कृति के वंशज हैं। हिंदुत्व एक जीवन शैली है और किसी भी ईश्वर की उपासना करने वाला अथवा किसी की उपासना नहीं करने वाला भी हिंदू हो सकता है। दुनिया अब मान चुकी है कि हिंदुत्व ही एकमात्र ऐसा आधार है, जिसने भारत को प्राचीन काल से तमाम विविधताओं के बावजूद एकजुट रखा है। स्वामी विवेकानंद का हवाला देते हुए भागवत ने कहा कि किसी ईश्वर की उपासना नहीं करने का मतलब यह जरूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति नास्तिक है, हालांकि जिसका खुद में विश्वास नहीं है, वो निश्चित तौर पर नास्तिक है।’ इसके पूर्व दो अगस्त को भोपाल के एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने जो कहा उसे देखिए, संघ जैन, सिख और बौद्ध को अल्पसंख्यक बताना साजिश है। संघ इन्हें हिंदुओं से अलग नहीं मानता। भारत में राष्ट्र की अवधारणा हमारी सांस्कृतिक पहचान से ही बनी है वह लोगों को जोड़ती है।’

निस्संदेह, जिनका इस सोच से मतभेद है उनको उसे प्रकट करना ही चाहिए, लेकिन इसमें नया कुछ नहीं है। इसमें कहीं से यह अर्थ नहीं निकलता है कि सभी को हिंदू कर्मकांड अपनाने के लिए मजबूर करने का उनका विचार है। इसका यह भी अर्थ नहीं निकलता है कि दूसरे मजहब और संप्रदाय के लोगों को इस देश में अपने मजहब और उपासना पद्घति के साथ रहने का अधिकार नहीं है। यह संघ की मूल सोच है जिस पर वह खड़ी है। इसलिए ऊपरी तौर पर इसमें ऐसा कुछ नहीं दिखता जिस पर इतना बड़ा बवण्डर खड़ा किया जाए। कांग्रेस के मनीष तिवारी, माकपा के सीताराम येचुरी व जदयू के शरद यादव ने एतराज जताते हुए कहा कि संविधान में कहीं भी हिंदुस्तान का जिक्र नहीं है। बात ठीक है इसमें भारत और इंडिया कहा गया है। बसपा की मायावती ने भी आपत्ति जताई और कहा कि भीमराव अंबेडकर ने सभी धर्मों को एक भाव से देखते हुए भारत नाम दिया था। लिहाजा भागवत को ऐसे बयानों से बचना चाहिए, जिनसे एकता पर असर पड़े। दिग्विजय सिंह ने कहा कि, ‘आज जितना खतरा तालिबान की विचारधारा से है, उतना ही खतरा आरएसएस की विचारधारा से है।

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