स्किल इंडिया: आईटीआई पर ध्यान दें

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By - ????? ???????? |19 Oct 2015 6:30 PM
युवाओं को स्किल और वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए जितने भी कार्यक्रम चल रहे हैं उनमें फिलहाल आईटीआई सबसे अहम है
पिछले दिनों स्किल इंडिया कैम्पेन को लांच करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आईआईटी नहीं बल्कि आईटीआई है सदी की जरूरत। उनकी इस बात का सीधा मतलब प्रशिक्षित युवा से था जिसे अपनी आजीविका चलाने के लिए कुछ काम आता हो क्योंकि आज देश में हालात ऐसे हैं कि आधे से ज्यादा पढ़े लिखे उच्च शिक्षित युवा बेरोजगार हैं, उन्हें कोई काम नहीं आता, या आंशिक तौर पर जो काम आता है उसमें वो ठीक से प्रशिक्षित नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है, लेकिन क्या देश में आईटीआई की दशा ठीक है? क्या वो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए जाने जाते हैं। इन कुछ सवालों के जवाब हमें खोजने होंगे साथ में इस बात की भी पड़ताल करनी होगी कि देश भर के 14000 आईटीआई का स्तर कैसा है? उनके शिक्षकों का स्तर कैसा है? उनके प्रशिक्षण के लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं? सच्चाई तो यह है कि देश में अधिकांश आईटीआई का स्तर ठीक नहीं है, साथ में अधिकांश आईटीआई के बच्चे और वहां के शिक्षक दोनों ही प्रशिक्षित नहीं हैं। आईटीआई अध्यापकों के उचित प्रशिक्षण के लिए अभी तक कोई ठोस सिस्टम विकसित ही नहीं हो पाया है।
वैसे तो देश में युवाओं को शिक्षा और वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए कई कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन उन सब में सबसे अहम है आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) क्योंकि इसका बुनियादी ढांचा गांव और कस्बों तक मौजूद है। शिक्षाविद् डॉ. अशोक कुमार गदिया के अनुसार अगर सरकार सिर्फ आईटीआई की गुणवत्ता को सुनिश्चित कर दे तो देश भर के आधे बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल जाए। असली समस्या यह है हर नई सरकार आते ही अपने एजेंडे के हिसाब से कई कार्यक्रम चलाती है, लेकिन वो पुराने बुनियादी और बने बनाए ढांचे को ठीक नहीं करती ना ही ठीक करना चाहती। सरकार बदलते ही कार्यक्रम बदलते रहते हैं, लेकिन तस्वीर नहीं बदल पाती क्योंकि वो जमीनी स्तर पर काम नहीं करते। स्कूली स्तर पर तकनीकी/व्यावसायिक वोकेशनल कोर्स के मामले में नेशनल सैंपल सर्वे के एक अध्ययन के अनुसार, स्कूली शिक्षा के दौरान कंप्यूटर प्रशिक्षण प्राप्त 44 प्रतिशत घर बैठे हैं। टैक्सटाइल प्रशिक्षण प्राप्त 66 प्रतिशत के पास नौकरियां नहीं हैं। स्कूलों में वोकेशनल कोर्स किए हुए सिर्फ 18 प्रतिशत युवाओं को ही संबंधित ट्रेड की नौकरी मिल पाई है। बाकी 82 प्रतिशत अपनी पढ़ाई का लाभ नहीं उठा पाए। ज्यादातर बेरोजगारी झेलने को मजबूर हैं। इस 18 प्रतिशत में से मात्र 40 प्रतिशत को ही औपचारिक शतरें पर नौकरी मिली। जाहिर है कि शेष 60 प्रतिशत की नौकरी अस्थाई किस्म की है। नौकरियां हासिल करने वालों में 30 प्रतिशत ऐसे थे, जिनके पास स्नातक अथवा उच्च डिग्री थी। हमें यह सोचना होगा कि चाहे अधिकतर वोकेशनल कोर्स हो, आईटीआई हो, डिप्लोमा हो, इंजीनियरिंग की डिग्री हो आखिर कुछ भी पढ़ लेने के बाद बेरोजगार ज्यादा क्यों है? सच्चाई यह है कि इन सभी जगहों पर ठीक से प्रशिक्षण प्राप्त युवा नहीं हैं। जाहिर सी बात है जिन युवाओं को कोई काम नहीं आता ऐसे में कोई कंपनी उन्हें क्यों लेगी। अगर किसी तरह से ले भी लिया तो पहले वो उन युवाओं को अपने काम के हिसाब से प्रशिक्षण देगी जिस पर उन्हें पैसे खर्च करने होगे।
देश में युवाओं को स्किल और वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए जितने भी कार्यक्रम चल रहे हैं उनमें फिलहाल आईटीआई सबसे अहम है जिस पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। देश में प्रशिक्षित युवा नहीं निकल रहे हैं तो साथ में यह भी सच है कि उनके टीचर ही ठीक से प्रशिक्षित नहीं हैं। देश में फिलहाल 14000 आईटीआई हैं जिनमें लगभग 2000 सरकारी और 12000 प्राइवेट हैं। आईटीआई शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण आज भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि सिर्फ सरकार अपने 2000 आईटीआई के लिए टीचर ट्रेनिंग उपलब्ध कराती है और इसके लिए कुछ टीचर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी है, लेकिन 12000 प्राइवेट आईटीआई के लिए टीचर ट्रेनिंग उपलब्ध कराना आज भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि निजी क्षेत्र में आज भी पर्याप्त संख्या में टीचर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट नहीं हैं। अधिकांश प्राइवेट आईटीआई शिक्षक जब खुद ट्रेंड नहीं हैं ऐसे में वो बच्चों को कैसे ट्रेनिंग दे पाएंगे? कुल मिलाकर आईटीआई शिक्षकों के लिए टीचर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट और गुणवत्ता के मानक स्थापित किए जाने की जरूरत है। आईटीआई की गुणवत्ता को लेकर सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि 2012 के पहले खुले लगभग 10000 आईटीआई की गुणवत्ता को रिव्यू और असेसमेंट कैसे किया जाए? क्योंकि वो नाबेट (नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फॉर एडूकेशनल एंड ट्रेनिंग) से अपना एक्रीडेशन नहीं कराना चाहते, ना सरकार ही उन्हें बाध्य कर पा रही है क्योंकि वो एक्रीडेशन के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट चले गए और स्टे लेकर आ गए। कुल मिलाकर देश में निचले स्तर पर सबसे पहले आईटीआई पर ध्यान देना होगा क्योंकि इसकी पहुंच समाज के निचले स्तर तक है।
तकनीकी शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए आज से कई दशक पहले गांधी जी ने कहा था कि कॉलेज में हाफ-हाफ सिस्टम होना चाहिए। मतलब की आधे समय में किताबी ज्ञान दिया जाए और आधे समय में उसी ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष बताकर उसका प्रयोग सामान्य जिंदगी में कराया जाए। भारत में तो गांधी जी की बातें ज्यादा सुनी नहीं गईं पर चीन ने उनके इस प्रयोग को पूरी तरह से अपनाया और आज स्थिति यह है कि उत्पादन की दृष्टि से चीन भारत से बहुत आगे है। भारतीय बाजार चीनी सामानों से भरे पड़े हैं दिवाली, रक्षाबंधन हमारे देश के प्रमुख त्यौहार हैं पर आज बाजार में सबसे ज्यादा पटाखे और राखियां चीन की ही बनी हुई मिलती हैं। कुल मिलाकर सरकार का मेक इन इंडिया कार्यक्रम भी तभी सफल हो पाएगा जब शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी बदलाव किया जाएगा। वास्तव में हम अपने ज्ञान को बहुत ज्यादा व्यावहारिक नहीं बना पाए हैं। आज पूरी शिक्षा व्यवस्था में खासकर वोकेशनल कोर्स, आईटीआई, डिप्लोमा, इंजीनियरिंग में इनोवेशन की जरूरत है। वर्तमान समय में एक बार फिर हमें बुनियादी स्तर पर अपने आईटीआई को ठीक करना होगा, उनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और प्रशिक्षण का इंतजाम करना होगा तभी हम सही मायनों में देश की एक बड़ी युवा आबादी को रोजगार दिला पाएंगे।
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