कौशल से मिलेगा रोजगार

कौशल से मिलेगा रोजगार
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पिछलें दिनों सीआईआई की इंडिया स्किल रिपोर्ट-2015 के मुताबिक हर साल सवा करोड़ युवा रोजगार बाजार में आते हैं।

पिछलें दिनों सीआईआई की इंडिया स्किल रिपोर्ट-2015 के मुताबिक हर साल सवा करोड़ युवा रोजगार बाजार में आते हैं। आने वाले युवाओं में से 37 प्रतिशत ही रोजगार के काबिल होते हैं। यह आंकड़ा पिछले साल के 33 प्रतिशत के आंकड़े से ज्यादा है और संकेत देता है कि युवाओं को स्किल (कौशल) देने की दिशा में धीमी गति से ही काम हो रहा है। एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार तो हर साल देश में 15 लाख इंजीनियर बनते हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 4 लाख को ही नौकरी मिल पाती है। बाकी सभी बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर हैं। नेशनल एसोसिएशन आॅफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज यानी नैसकॉम के एक सर्वे के अनुसार 75 फीसदी टेक्निकल स्नातक नौकरी के लायक नहीं हैं। आईटी इंडस्ट्री इन इंजीनियरों को भर्ती करने के बाद ट्रेनिंग पर करीब एक अरब डॉलर खर्च करती हैं। इंडस्ट्री को उसकी जरूरत के हिसाब से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नहीं मिल पा रहे हैं। डिग्री और स्किल के बीच फासला बहुत बढ़ गया है। इतनी बड़ी मात्रा में पढ़े लिखे इंजीनियरिंग बेरोजगारों की संख्या देश की अर्थव्यवस्था और सामजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है।

असल में हमने यह बात समझने में बहुत देर कर दी की अकादमिक शिक्षा की तरह ही बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल की शिक्षा देनी भी जरूरी है। एशिया की आर्थिक महाशक्ति दक्षिण कोरिया ने स्किल डेवेलपमेंट के मामले में चमत्कार कर दिखाया है और उसके चौंधिया देने वाले विकास के पीछे स्किल डेवेलपमेंट का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। इस मामले में उसने जर्मनी को भी पीछे छोड़ दिया है। 1950 में दक्षिण कोरिया की विकास दर हमसे बेहतर नहीं थी, लेकिन इसके बाद उसने स्किल विकास में निवेश करना शुरू किया। यही वजह है कि 1980 तक वह भारी उद्योगों का हब बन गया। उसके 95 प्रतिशत मजदूर कुशल हैं या वोकेशनली ट्रेंड हैं, जबकि भारत में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत है। ऐसी हालत में भारत कैसे आर्थिक महाशक्ति बन सकता है? स्किल इंडिया बनाने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने अलग मंत्रालय बनाया है। नेशनल स्किल डेवेलपमेंट मिशन भी बनाया गया है। कें द्रीय बजट में भी इसके लिए अनुदान दिया गया है। मतलब पहली बार कोई केंद्र सरकार इसके लिए इतनी संजीदगी से काम करने की कोशिश कर रही है। इसे देखते हुए लगता है कि स्किल डेवेलपमेंट को लेकर केंद्र सरकार की सोच और इरादा तो ठीक है, लेकिन इसका कितना क्रियान्यवन हो पाएगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा, क्योंकि अभी तक स्किल डेवेलपमेंट के लिए कोई ठोस काम नहीं हुआ है ना ही इसके कोई बड़े नतीजे आए हैं। जबकि तकनीकी और उच्च शिक्षा का यह सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण पहलू है जो हर मायने में देश के विकास को प्रभावित करता है।
बिना स्किल के और लगातार बेरोजगारी बढ़ने की वजह से इंजीनियरिंग कॉलेजों में बड़े पैमाने पर सीटें खाली रहने लगी हैं। उच्च और तकनीकी शिक्षा के वर्तमान सत्र में ही पूरे देशभर में 7 लाख से ज्यादा सीटें खाली हैं। इसने भारत में उच्च शिक्षा की शर्मनाक तस्वीर पेश की है। यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाला भी है, क्योंकि स्थिति साल दर साल खराब ही होती जा रही है। एक तरफ प्रधानमंत्री देश के लिए मेक इन इंडिया की बात कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ देश में तकनीकी और उच्च शिक्षा के हालात बदतर स्थिति में हैं। ये हालात साल दर साल खराब होते जा रहे हैं। सच्चाई यह है कि देश के अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज डिग्री बांटने की दुकान बन कर रह गए हंै। इन कॉलेजों से निकलने वाले लाखों युवाओं के पास इंजीनियरिंग की डिग्री तो है, लेकिन कुछ भी कर पाने का स्किल नहीं है जिसकी वजह से देश भर में हर साल लाखों इंजीनियर बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर हैं।
आज हमारे इंजीनियरिंग के शैक्षिक कोर्स 20 साल पुराने हैं, इसलिए इंडस्ट्री के हिसाब से छात्रों को अपडेटेड थ्योरी भी नहीं मिल पाती, ना ही इनके लिए कोई विशेष स्किल डेवेलपमेंट कार्यक्रम चलाया जाता। इसी वजह से आज इंजीनियरिंग स्नातक के लिए नौकरी पाना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता जा रहा है। अभी स्थिति यह है कि सारा ध्यान थ्योरी सब्जेक्ट पर है, उन्हें रटकर पास करने में ही छात्र अपनी इतिश्री समझते हैं। इंडस्ट्री और इंस्टीट्यूट्स के मध्य एक कॉमन प्लेटफॉर्म स्थापित कर स्किल डेवेलपमेंट की दिशा में सरकारी और निजी दोनों के प्रयास जरूरी हैं।
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