रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता

नई दिल्ली. देश की रक्षा चुनौतियों को देखते हुए भारत सरकार सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में लग गई है। इसी के मद्देनजर 25 अक्टूबर को रक्षा मंत्री की अगुआई वाली रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की लगभग दो घण्टे चली बैठक में 80000 करोड़ रुपये के सौदों को हरी झण्डी प्रदान की गई। तीनों सेनाओं को नवीनतम हथियारों से सुसज्जित करने के लिए किए गए फैसलों में स्वदेशी उत्पाद पर अधिक ध्यान दिया गया और 80000 करोड़ रुपये की खरीद में से लगभग 77000 करोड़ रुपये की खरीद भारतीय कम्पनियों से किए जाने का निर्णय हुआ। यह कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ भावना के अनुरूप है।
इस बैठक में अधिकांश निर्णय नौसेना के अनुकूल रहे जो अपने उन्नयन और क्षमता विस्तार की भारी कमी महसूस कर रही है। इसमें नौसेना की ताकत व मारक क्षमता बढ़ाने के लिए छह अत्याधुनिक पनडुब्बियां बनाने की बात निश्चित हुई। 50000 करोड़ रुपये की लागत से ये पनडुब्बियां भारत में ही बनाई जाएंगी। इसके लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनाई जाएगी जो डेढ़ से दो माह के अंदर देश के निजी व सरकारी बंदरगाहों में उपलब्ध सुविधाओं का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देगी। फिर इसी के आधार पर रक्षा मंत्रालय विशिष्ट बंदरगाह के प्रस्ताव का अनुरोध जारी करेगा। उसके बाद चयनित बंदरगाहों पर पनडुब्बियों के निर्माण का काम शुरू कर दिया जाएगा।
नई तैयार की जाने वाली पनडुब्बियां एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन (एआईपी) क्षमता से लैस होंगी जिससे ये पनडुब्बियां पहले की पारंपरिक पनडुब्बियों की तुलना में समुद्र के अंदर पानी में अधिक समय तक रह सकें। इसके अलावा इनके निर्माण में ऐसी स्टील्थ तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा जिससे वे दुश्मन की टोह में न आ पाएं। इन पनडुब्बियों में जमीनी हमला करने वाली क्रूज मिसाइलों को लगाए जाने की क्षमता होगी। इस तरह इन पनडुब्बियों से नौसेना की निगाहें पैनी बन जाएंगी और इनकी मारक क्षमता से एक नया सुरक्षा कवच तैयार होगा। इसके साथ ही डीएसी ने नौसेना के विशेष दस्ते के अभियानों के लिए बड़े पैमाने पर अत्याधुनिक हथियार व साजो-सामान खरीदने की मंजूरी दी।
इसके अलावा डीएसी ने नौसेना के लिए तारपीडो और हैवी कैलिबर गन खरीदने का निर्णय तकनीकी आधार पर टाल दिया, लेकिन यह आश्वासन दिया कि इनके बारे में शीघ्र ही कोई फैसला लिया जाएगा। फिलहाल भारत की नौसेना के पास 13 पनडुब्बियां हैं। भारत ने 1999 में यह निर्णय लिया था कि उसके पास 2030 तक 24 पनडुब्बियां होनी चाहिए। पनडुब्बी बेड़ा बढ़ाने के उद्देश्य से फ्रांस से छह स्कॉर्पियन पनडुब्बियां खरीदी जा रही हैं जिनमें से पहली पनडुब्बी 2015 तक प्राप्त हो जाएगी। इस तरह भारत समंदर का सिकंदर बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है और चीन के हिंद महासागर में पैर पसारने की योजना को रोकने में सक्षम होगा।
डीएसी ने एक मात्र विदेशी खरीद में समरतांत्रिक गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखा और इसके लिए अमेरिका की बजाय इजरायल को तरजीह दी। अमेरिका काफी दिनों से भारत को जैवलिन टैंक रोधी मिसाइल बेचने की लॉबिंग कर रहा था, लेकिन भारत ने मिसाइल की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए इजरायल से 8356 स्पाइक टैंक रोधी गाइडेड मिसाइलें खरीदने का निर्णय लिया। इन मिसाइलों की खरीद पर तकरीबन 3200 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इन मिसाइलों को चलाने के लिए सेना अलग से 321 मिसाइल लांचर भी खरीदेगी। विदित हो कि इजरायल की हथियार निर्माता कम्पनी राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम इन मिसाइलों का निर्माण करती है। यह कम्पनी इन मिसाइलों को बड़े पैमाने पर बनाने के लिए अपनी तकनीक भी भारत के रक्षा क्षेत्र की कम्पनी भारत डायनॉमिक्स लिमिटेड को देगी। इस तकनीक के जरिए भारत इनका उत्पादन बड़े पैमाने पर कर सकेगा क्योंकि उसे ऐसी लगभग 40000 मिसाइलों का जरूरत है। तभी उसकी सेना पूर्ण रूप से सुसज्जित हो सकेगी।
दरअसल, इजरायल की हथियार निर्माण तकनीक आला दरजे की मानी जाती है। पूरी दुनिया इजरायल के हथियारों का लोहा मानती है। अब इजरायल की मिसाइलों के हासिल होने से चीन व पाकिस्तान के खिलाफ भारत की ताकत अत्यंत मजबूत होगी। स्पाइक मिसाइलों की यह विशेषता है कि इन्हें इस तरह से डिजाइन किया गया है कि कोई भी सैनिक आसानी के साथ इधर से उधर ले जा सकता है। ये मिसाइलें दागने में अपने लक्ष्य पर सटीकता से हमला करती हैं।
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