नाबालिग: उम्र पर फिर छिड़ी बहस

नाबालिग: उम्र पर फिर  छिड़ी बहस
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केंद्र सरकार का महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय आजकल जेजे एक्ट-2000 के संशोधन करने में जुटा है।
यौन उत्पीड़न जैसे गम्भीर अपराधों में शामिल किशोरों की उम्र 18 से 16 करने को लेकर फिर एक बहस शुरू हो गई है। इसी मुद्दे को लेकर अभी मार्च में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने किशोरों की उम्र घटाकर 16 वर्ष करने की याचिकायें खारिज करते हुए किशोर न्याय अधिनियम को अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के अनुरूप बताया था परंतु अब सुप्रीम कोर्ट की ही एक बेंच ने केन्द्र सरकार से जानना चाहा है कि हत्या, बलात्कार व अपहरण जैसे जधन्य अपराधों में शामिल आरोपी को क्या केवल इसलिए छोड़ देना चाहिए, क्योंकि उसने अभी 18 साल की उम्र पूरी नहीं की है। शीर्ष अदालत का यह भी कहना है कि बालकों के द्वारा किये जाने वाले गंभीर और कम गंभीर अपराधों के बीच फर्क किया जाना चाहिए। इसी के चलते केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के नाबालिग आरोपियों से वयस्क अपराधियों के समान बर्ताव किये जाने की वकालत की है। उनका तर्क है कि 50 फीसदी यौन अपराधों को 16 वर्षीय किशोरों द्वारा अंजाम दिया जाता है।
केंद्र सरकार का महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय आजकल जेजे एक्ट-2000 के संशोधन करने में जुटा है। हालांकि इस एक्ट का संशोधित ड्राफ्ट तैयार करके संबधित विभागों और मंत्रालयों को भेज दिया गया है। इस संशोधन की खास बात यह है कि इसमें प्रमुख रूप से दो बातों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। पहला, जघन्य अपराधों में शामिल 16 से 18 साल के किशोर पर मुकदमा चलाने का फैसला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड पर छोड़ दिया गया है। दूसरे, किशोर के आपराधिक रिकॉर्ड मिटाये जाने के प्रावधान में संशोधन किया गया है। गौरतलब है कि दिसंबर 2012 में दिल्ली में महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद गठित जस्टिस जेएस वर्मा समिति ने भी किशोरों की उम्र घटाकर 16 साल करने के सुझाव को अव्यावहारिक बताकर खारिज कर दिया था। उधर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन के खिलाफ है। उसका साफ कहना है कि इस कानून का मकसद बालकों को सजा देना न होकर उनका सुधारना अधिक है।
इस सारी कवायद के पीछे किशोरों के लगातार जघन्य अपराधों में शामिल होना भी एक खास कारण है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से साफ है कि नाबालिग किशोरों द्वारा अंजाम दी गई बलात्कार की घटनाओं में अकेले दिल्ली में 158 फीसदी की वृद्घि हुई है। चौंकाने वाली बात यह है कि किशोरों द्वारा अंजाम दिये जाने वाले सामान्य अपराधों में यह वृद्घि मात्र 34 फीसदी की ही रही। ज्यादा तकलीफदेय यह है कि चोरी व डकैती की घटनाओं में इनकी सहभगिता में 200 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सच्चाई यह है कि इन अपराधों में शामिल किशोरों की उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच पाई गई। हालिया आंकड़े बताते हैं कि 2012-13 में 33 हजार से भी अधिक किशोर 25 हजार से अधिक घटनाओं में निरूद्घ हुये। उनमें एक हजार से अधिक बच्चे 7 से 12 वर्ष, ग्यारह हजार बच्चे 12 से 16 वर्ष तथा शेष 16 से 18 वर्ष के आयु समूह में पाये गये।
बाल अपराधियों के लिए एक अलग कानून बनाने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाल अधिकारों का संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया तो इस अंतरराष्ट्रीय कानून में 18 वर्ष के किशोर को नाबालिग घोषित किया गया था। साथ ही इसमें बच्चों की अशिक्षा, उत्पीड़न, शोषण तथा अपराध से जुड़े तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए 18 वर्ष तक के बच्चों के मौलिक अधिकार सुनिश्चित किये गये थे। तत्पश्चात ही दुनिया भर की सरकारों ने अपने-अपने देशों में बाल अधिकार से जुड़े कानून प्रतिपादित किये। अपने यहां भी इसी संधि के तहत 1992 में संसद में यह कानून पारित कर दिया गया। उसी के अनुपालन में जेजे एक्ट-2000 बनाया गया। किशोर न्याय अधिनियम 2000 की स्थिति यह है कि 18 वर्ष से कम की आयु के किशोर ने चाहे कितना ही जघन्य अपराध किया हो, परन्तु उसे तीन वर्ष से अधिक की सजा नहीं हो सकती। साथ ही सजा के बाद उसे सामान्य जेल में न भेजकर किशोर सम्प्रेषण गृह ही भेजा जायेगा। आज ऐसे हजारों नाबालिग इन बाल सुधार गृहों में अपना जीवन काट रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि आज लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन ने भी अपने लड़ाकों को भारत के सुरक्षाकर्मियों द्वारा पकड़े जाने पर अपनी उम्र 18 साल से कम बताने के निर्देश जारी किये हैं। निश्चित ही यह देश के किशोर न्याय अधिनियम का दोष है।
यदि भारत सरकार किशोर की उम्र 18 साल से कम करके 16 साल करने का प्रयास करती भी है तो यह सीधे-सीधे संयुक्त राष्ट्र के प्रोटोकॉल का उल्लंधन माना जायेगा। इसलिए मंत्रालय ने किशोर की उम्र के मुद्दे से मुंह फेरकर अब किशोरों द्वारा किये जाने वाले अपराध और उसकी प्रकृति पर ध्यान केंद्रित किया है। नाबालिगों से जुड़े अपराध के सही कारणों की खोज करने के साथ-साथ हमें इनसे जुड़े कानूनों में भी समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलाव करना ही चाहिए। मगर साथ ही साथ इन किशोरों द्वारा किये जा रहे जघन्य अपराधों की प्रकृति पर भी गौर करना बहुत जरूरी है। अगर हम इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार नहीं करते हैं तो हो सकता है कि इनकी आड़ में संगठित व यौन अपराध और अधिक फलते-फूलते रहें। इसलिए अब यह उपयुक्त समय है जब हमें पूरा शिद्धत से जघन्य अपराध करने वाले किशोरों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए।
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