मुलायम की परेशानी

मुलायम की परेशानी
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सुस्त रफ्तार के कारण यूपी सरकार के अच्छे कार्यों की चमक भी नजर नहीं आ रही है।

नई दिल्ली. देश के लिए आधा दर्जन से अधिक प्रधानमंत्री और कई नेताओं को पैदा करने वाले उत्तर प्रदेश की गिनती देश के पिछड़े राज्यों में होती है। इस पिछड़ेपन के कई कारण हैं, लेकिन इनमें से सबसे प्रमुख कारण को समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने खुद बताया है। उनके अनुसार प्रचुर संसाधनों से सम्पन्न गंगा के मैदान में बसा उत्तर प्रदेश मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों व अफसरों के उपेक्षा की वजह से वर्तमान में पिछड़ा हुआ नजर आ रहा है। सुस्त रफ्तार के कारण सरकार के अच्छे कार्यों की चमक भी नजर नहीं आ रही है। वह खुद इंतजार कर रहे हैं कि अखिलेश सरकार की कोई परियोजना पूरी हो तो वह उसका उद्घाटन कर सकें, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिल रहा है। पार्टी संगठन ने छह महीने पहले मंत्रियों की बैठक बुलाकर उनसे उनके उल्लेखनीय काम पूछे थे। तब से आज तक कोई मंत्री अपना एक काम नहीं बता पाया। दरअसल, कुछ वर्षों से राजनीति में बहुत ही सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहा है। शायद लोग अब जाति-धर्म की राजनीति से ऊब चुके हैं और विकास को ही मुद्दा मानने लगे हैं। भारी बहुमत से केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार इसका उदाहरण है। प्रदेश सरकार को भी इस बात का अहसास है और शायद वह अगले चुनाव तक ठोस परिणाम देना चाहती है।

पिछले दिनों लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे के शिलान्यास के बहाने मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश सरकार के कामकाज को लेकर यह सवाल भी खड़ा किया था कि सिर्फ शिलान्यास से काम नहीं चलेगा बल्कि उद्घाटन की तारीखें भी तय करनी होगी। वह पहले भी अखिलेश सरकार के मंत्रियों की खिंचाई कर चुके हैं। 2012 में जब अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में सत्ता की बागडोर संभाली तो सूबे के लोगों को उनसे काफी उम्मीदें थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों से जाहिर हो गया कि जनता की उम्मीदें पूरी नहीं हो रही हैं। उनकी सरकार का ढाई साल से अधिक समय बीत गया पर उनकी किसी भी योजना के उद्घाटन की नौबत नहीं आई है। जबकि 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इससे सपा की बेचैनी बढ़ गई है। यह अच्छी बात है कि इसी बहाने अब उनका ध्यान विकास परियोजनाओं की ओर गया है और उनकी सरकार अपनी तमाम परियोजनाओं की समीक्षा कर रही है। यदि सरकार ने कोई परियोजना शुरू की है तो यह देखना भी उसका काम है कि योजना किस तरह से और कैसे लागू की जा रही है।
सूबे में शिलान्यास व नई घोषित की गई परियोजनाआें की भरमार है। जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है, उनके अधूरे ही छूटने का खतरा बढ़ता जा रहा है। काम पूरे होंगे तभी चुनाव में फायदा भी होगा। सियासत में यही सवाल सबसे बड़ा है। यही सवाल मुलायम को परेशान कर रहा है। जन जीवन से जुड़ी कई योजनाओं के प्रगति की रफ्तार बहुत धीमी है। सड़क और पुल-पुलिया बनाने की परियोजनाएं अफसरों की सुस्ती के कारण अपने मुकाम से कोसों दूर हैं। लोक निर्माण विभाग व सहायक एजेंसियों की 38 सड़कें और 247 पुल-पुलिया निर्माणाधीन हैं, लेकिन मौजूदा प्रगति रिपोर्ट बताती है कि अगले दो साल में भी परियोजनाएं पूर्ण नहीं हो पाएंगी। कमोबेश ऐसी ही स्थिति पुल-पुलियों के निर्माण कार्य की है। 247 पुल-पुलियों में सितंबर तक महज 17 जनता को समर्पित हुए। उत्तर प्रदेश राज्य मार्ग विकास प्राधिकरण द्वारा आधा दर्जन बनाई जा रही फोर लेन सड़क भी शिलान्यास तक ही पहुंच पाई।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सत्ता संभालने के बाद राजधानी में सीजी सिटी का सपना बुना। यहां बंगलुरु व हैदराबाद की तरह आईटी सिटी, ट्रिपल आईटी, कैंसर संस्थान व दुग्ध डेयरी सहित कई प्रोजेक्ट शामिल किए गए। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम भी यहां बन रहा है। सीजी सिटी के ज्यादातर प्रोजेक्ट 2017 या उसके बाद ही पूरे होने वाले हैं। कानपुर-उन्नाव में 1151 एकड़ में प्रस्तावित ट्रांस गंगा हाइटेक सिटी परियोजना को दो साल पहले मंजूरी मिली थी पर काम अभी तक शुरू नहीं हुआ। मुख्यमंत्री ने सितम्बर 2012 में चकगंजरिया में सरकारी दुग्ध डेयरी का शिलान्यास किया था। सरकारी बजट से इसे शुरू करने का प्रस्ताव था, लेकिन पांच लाख लीटर दूध के प्रसंस्करण की क्षमता वाली यह डेयरी शुरू ही नहीं हो पाई। इससे एक बात साफ हो गई कि योजना के निर्माण व क्रियान्वयन को लेकर नौकरशाही कितनी गफलत में थी।
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