प्रधानमंत्री मोदी का वैश्विक संवाद

नई दिल्ली. भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी को देश के नए नेतृत्व ने एक्ट ईस्ट का एक नया रंग दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर हैं, जहां एक और भारत-ऑस्ट्रेलिया रिश्तों पर बात होगी वहीं वे ब्रिसबेन में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने, पश्चिम एशिया में इस्लामिक स्टेट के खतरे पैदा होने और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बदलते परिदृश्य के विचार से यह सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण है। ब्राजील में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के बाद मोदी का यह सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संवाद भी है। इसके पहले वे म्यांमार में हुए आसियान शिखर सम्मेलन और ईस्ट एशिया समिट में हिस्सा लेकर आए हैं, जहां उन्होंने भारत के आर्थिक बदलाव का जिक्र करने के अलावा भारत की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का उल्लेख भी किया। उन्होंने लुक ईस्ट के संवर्धित रूप एक्ट ईस्ट का जिक्र भी इस बार किया।
इस महीने की तीसरी बड़ी घटना काठमांडू में दक्षिण एशिया के देशों के शिखर सम्मेलन के रूप में होगी। यहां भी मोदी की विदेश नीति की बड़ी परीक्षा है। दुनिया के देश इस वक्त जहां आर्थिक विकास को लेकर फिक्रमंद है वहीं लगातार बढ़ते वैश्वीकरण की फिक्र भी है। एक लम्बे अरसे तक भारत पूर्व एशिया के देशों से कटा रहा। आसियान को बने 37 साल हो गए हैं। शुरूआत में भारत के पास भी इसमें शामिल होने का अवसर था। वह शीतयुद्ध का दौर था और आसियान अमेरिकी गुट से जुड़ा संगठन माना गया। बहरहाल पीवी नरसिंहराव के समय में भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी की बुनियाद पड़ी और 1992 में भारत इसका डायलॉग पार्टनर बना। दिसम्बर 2012 में भारत ने जब आसियान के साथ सहयोग के बीस साल पूरे होने पर समारोह मनाया तब तक हम ईस्ट एशिया समिट में शामिल हो चुके थे और हर साल आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भी शामिल होते हैं।
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