आप के हाथ में है बदलाव की डोर, अमेरिका के बाद भारत की तुलना रूस और चीन से

दुनिया के विकसित लोकतंत्र भी कभी इन्हीं स्थितियों से गुजरे हैं। हमारी स्वतंत्रता का 68 वां और गणतंत्र का यह 65 वां साल ही है। देश की विशालता और विविधता को देखते हुए जो कुछ हमने हासिल किया है वह कम भी नहीं है। इसमें दो राय नहीं कि हमारी तमाम अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पाईं, पर हम व्यवस्था के बारे में खुलकर बात कर पा रहे हैं। उसे बदलने का मौका हमें जब भी मिलता है बदलाव होता है। हमारे लोकतंत्र की ताकत है हमारी विविधता। संयोग है कि इस गणतंत्न दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा हमारे मेहमान हैं। अमेरिकी समाज और भारतीय समाज की तुलना करें तो अनेक समानताएं मिलेंगी। अमेरिका में दुनिया भर की संस्कृतियों का मिलन होता है। जहां यूरोप के देश एक राष्ट्र-एक देश के सिद्धांत पर बने हैं वहीं अमेरिका अनेक राष्ट्रों का देश है, भारत की तरह।
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