पेट्रोलियम मंत्रालय दस्तावेज जासूसी केस: देशहित से बड़ा खिलवाड़

साल 2035 तक भारत की ऊर्जा जरूरतें आज की तुलना में दोगुनी हो जाएंगी। ऐसे में पेट्रोलियम मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेजों को चुराकर बेचने का जो भंडाभोड़ हुआ है, उससे साफ है कि नौकरशाही और उद्योगपतियों का गठजोड़ राष्ट्र व जनहित से कहीं ज्यादा निजीहित साधने में लगा है।
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चोरी पकड़ने के तमाम तकनीकी व प्रौद्योगिकी प्रबंधों के बावजूद सरकारी गोपनीय दस्तावेज कितनी आसानी से चुराकर बेचे जा सकते हैं, इसका ताजा उदाहरण पेट्रोलियम व ऊर्जा मंत्रालय में हुआ चोरी का पर्दाफाश है। इस कथित जासूसी का दायरा यदि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी अपने घेरे में ले लेता है तो यह और भी गंभीर मसला हो जाएगा। यह मामला इसलिए गंभीर है, क्योंकि चुराए गए दस्तावेजों को शासकीय गोपनीय अधिनियम के तहत सुरक्षा प्राप्त थी। बावजूद उन अभिलेखों को भी आसानी से चुरा लिया गया जो वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आगामी बजट भाषण में पढ़े जाने थे। साफ है, ये खेल औद्योगिक घराने नौकरशाहों के साथ मिलकर भावी नीतियों को अपने हित में प्रभावित करने की दृष्टि से तो खेल ही रहे थे, श्रेष्ठ ऊर्जा भण्डार स्थलों को नीलामी के जरिए हथियाने के लिए भी खेल रहे थे।
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कमोबेश यही घिनौना खेल 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के समय भी उजागर हुआ था, जब उद्योगपतियों और नौकरशाहों के गठजोड़ के साथ इसमें पत्रकार और पैरोकार भी शामिल थे। इस कांड में भी पत्रकार के रूप में शांतनु सैकिया और पैरोकार के रूप में प्रयास जैन कठघरे में हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े नीरा राडिया टेपकांड की ध्वानियों की गूंज अभी भी कानों से टकराती रहती है। इस ताजा जासूसी कांड का अभी तक एक सुखद पहलू यह रहा है कि इसमें किसी नेता या मंत्री का नाम नहीं आया है जबकि स्पेक्ट्रम घोटाले में संचार मंत्री ए राजा और सांसद कनिमोझी के नाम शामिल थे।
पूरी दुनिया में इस समय ऊर्जा के स्रोतों को कब्जाने की होड़ चल रही है। इस मामले में भी चोरों ने जो सूचनाएं हासिल की हैं, वे सब तेल, गैस और कोयला भंडारों से जुड़ी हैं। दिल्ली पुलिस ने जिन औद्योगिक कंपनियों के आला अधिकारियों को गिरफ्तार किया है, वे सभी कंपनियां पेट्रोल, गैस और कोयला जैसे प्राकृतिक संपदाओं के ठेके के कारोबार से जुड़ी हैं। ऊर्जा के अक्षय स्रोतों के भंडारों की जासूसी के प्रति ये कंपनियां इतनी चौकन्नी थीं कि कंपनियों ने बजट भाषण के उन दस्तावेजों को भी हासिल कर लिया था, जिन्हें आम बजट पेश किए जाते वक्त वित्त मंत्री पढ़कर देश के सामने लाते। ये कागज नेशनल गैस ग्रिड से संबंधित हैं। यह संस्था भू-गर्भ शास्त्रियों के जरिए देश में उपलब्ध गैस भंडारों की खोज करती है और फिर उन्हें निकालने की योजना बनाती है।
दिल्ली पुलिस को जिन अभिलेखों की छायाप्रतियां प्राप्त हुई हैं, वे सब पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल के गोपनीय दस्तावेज हैं। इन पर सेल के डीजी के दस्तखत हैं। कुछ दस्तावेज एक्सप्लोरेशन विभाग से जुड़े हैं, जिन पर सचिव नलिन कुमार के हस्ताक्षर हैं। यही नहीं पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के पास से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा का खत भी बरामद किया है। जाहिर है, सेंघमारी का दायरा व्यापक है और गोपनीयता को सुरक्षित रखने के सभी उपाय मंत्रालय की दहलीज पर बौने साबित हुए हैं। जबकि पेट्रोलियम मंत्री के कार्यालय में तो पूर्व सैनिकों को सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे और मेटल डिटेक्टर लगे थे। बावजूद आधी रात मेंं डुप्लीकेट चाबियों से दरवाजों और अलमारियों के ताले खोलकर दस्तावेजों की फोटोकॉपी कर लेने का सिलसिला निरंतर चल रहा था। इससे शक की सुई सुरक्षा की ठेका व्यवस्था तक भी पहुंच सकती है? क्योंकि सुरक्षा ठेकेदार चंद सुरक्षाकर्मियों को एक स्थल पर लंबे समय तक रखने को स्वतंत्र होते हैं, जबकि सरकारी सुरक्षा में कर्मचारियों की ड्यूटी बदलना लाजिमी होता है।
इस कथित चोरी बनाम जासूसी कांड से पर्दा उठने और औद्योगिक अधिकारियों की गिरफ्तारी होने के बावजूद उद्योगपतियों को कोई हैरानी नहीं है। इसके उलट, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर वे कह रहे हैं कि बड़े औद्योगिक घराने ऐसे विशेष समूह रखते हैं, जो विभिन्न माध्यमों से गोपनीय सूचनाओं को हासिल करते हैं। ये सूचनाएं प्राकृतिक संपदा की नीलामी और परियोजनाओं के ठेकों से संबंधित होती हैं। या फिर इनका संबंध सरकार की उन भावी नीतियों और निर्णयों से होता है, जिनसे उद्योग जगत के हित जुड़े होते हैं। नीतियों की पहले जानकारी प्राप्त करने के बाद आवारा पूंजी के खिलाड़ी कारोबारी इस पूंजी को शेयर बाजार में लगाकर रातों रात करोड़ों-अरबों के बारे न्यारे कर लेते हैं। अपने हित साधने के लिए इस तरह का छल-छद्म करते तो चंद उद्योगपति हैं, लेकिन बदनामी पूरा उद्योग जगत झेलता है। इसलिए इस धर्तकर्म को न तो जासूसी कहा जा सकता है। यह सीधे-सीधे गोपनीय कानून से खिलवाड़ है। इसलिए पुलिस ने आरोपियों पर धारा 411 के तहत बेईमानी से चुराई संपत्ति हासिल करने का प्रकरण कायम करके विधि सम्मत तार्किक पहल की है।
देसी-विदेशी घरानों के ऐसे षड़यंत्र देश को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं होने दे रहे हैं। गोया,तेल और गैस आयात करने को हम मजबूर बन गए हैं। वैसे भारत को 2030 तक उर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होने की उम्मीद है। हालांकि इस लक्ष्य को इसलिए पूरा करना मुश्किल है, क्योंकि 2035 तक भारत में उर्जा पदार्थों की जरूरत आज की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। ऐसे में पेट्रोलियम मंत्रालय के भीतर ही गोपनीय दस्तावेजों को चुराकर बेचने का जो भंडाफोड़ हुआ है,उससे साफ होता है कि सरकारी व्यवस्था में ऐसे कई छेद हैं, जो लक्ष्यों को छलने का काम कर रहे हैं। नौकरशाही और उद्योगपति का गठजोड़ राष्ट्र व जनहित से कही ज्यादा निजीहित साधने में लगा है।
यही वजह है कि सरकारी कर्मचारियों को कंपनियां गोपनीयता भंग करने के लिए वर्षों से नियमित रिश्वत के रूप में 25 से 50 हजार प्रतिमाह देने में लगी हैं और अधिकारी शक होने के बावजूद अपने मातहतों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करते? यह नरमीं इस बात का संकेत है कि इस कांड में छोटी मछलियों के साथ बड़ी मछलियां भी भागीदार हैं। जबकि पेट्रोलियम मंत्रालय में फिलहाल छोटे कर्मचारी ही पकड़े गए हैं। गोया, पुलिस को अभी असली सूत्रधारों तक पहुंचने की जरूरत है। और यदि दिल्ली पुलिस आला अधिकारियों तक पहुंचने में नाकाम रहती है। तो केंद्र सरकार दायित्व बनता है कि वह इस मामले को सीबीआई या विशेष जांच दल को सौंपे, अन्यथा जासूसी के असली सूत्रधार बेनकाब नहीं होंगे ?
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