नई उड़ान को चाहिए राज्यों का बल

नई दिल्ली. बैंक ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस-2015 पर दुनिया के 189 देशों की रैंकिंग जारी करके जैसे कोई तूफान खड़ा कर दिया है। इस रैंकिंग ने अर्थजगत की कई पुरानी धारणाओं को ध्वस्त कर दिया है और ऐसे नए मापदण्ड खड़े कर दिए हैं, जो दुनिया, देश और प्रदेश के नए भाग्य- विधाता बन गए हैं। कौन सोच सकता था कि 189 देशों की रैंकिंग में भारत 142वें स्थान पर आएगा। इथियोपिया, पापुआन्यूगिनी, अजरबैजान, निकारागुआ भी अगर इस सूची में भारत के ऊपर बैठते हों तो हमारा दिल बैठना स्वाभाविक है।
लेकिन इन सबके बीच प्रधानमंत्री नई उम्मीदों की रोशनी लेकर आते हैं और भारत को अग्रणी 50 देशों में शामिल कराने का संकल्प लेते हैं तो फि र एक बार नए उत्साह का संचार पूरे देश में होता है। हमारे लिए तो यह जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत के विभिन्न राज्यों की रैंकिंग में छत्तीसगढ़ की चमकदार उपस्थिति अव्वल चौथे राज्य के रूप में दर्ज हुई है। इस तरह भारत को 50 देशों में शामिल कराने के अभियान में राज्यों की भूमिका भी नए सिरे से परिभाषित हुई है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट ने एक बार फि र हमारा ध्यान भारत के बिजनेस सिस्टम या कामकाज के उस वातावरण की ओर खींचा है, जो सन् 1950 के प्राचीन नियम- कायदों की ऐतिहासिक वजह से बोझिल है। केन्द्र और राज्यों की सरकारें अब आंखें मलकर जाग रही हैं और निवेश आकर्षित करने के लिए सुधारों को वक्त की जरूरत के रूप में पहचान रही हैं।
एज आफ डूइंग बिजनेस अडीबी बुनियादी रूप में यही जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी सन् 2017 तक भारत को शिखर के 50 देशों की पंक्ति में लाने के लिए विश्वव्यापी अभियान भी चला रहे हैं। ऐसी रेंकिंग की अपनी सीमाएं हो सकती होंगी, लेकिन इसके बावजूद यह सभी हितधारकों के लिए सही दिशा में एक बड़ी शुरुआत है। इस रेंकिंग से न केवल अंतरराज्यीय प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बल्कि एज आफ डूइंग बिजनेस के लिए चेतना और इनकी गति के निर्धारण के नए मापदण्ड भी बनेंगे। जब दिसंबर 2014 में डीओपीपी ने 98 सूत्रीय कार्ययोजना की घोषणा की थी, तब भले ही राज्यों में एक तरह की नाराजगी देखी गई थी, क्योंकि रेंकिंग 8 बड़े मापदण्डों पर आधारित थी और 285 सवालों के जवाबों की संरचना पर टिकी थी, जो राज्यों को अपनी सहूलियत के अनुरूप सही नहीं जान पड़ते थे, लेकिन रेंकिंग ने काफी हद तक आशंकाओं को झुठलाया है और आश्चर्य मिश्रित भावनाओं के दरवाजे खोले हैं। इस रेंकिंग ने एक बार फि र यह साबित किया है कि विभिन्न राज्यों के बीच काफी गहरी खाई है।
गुजरात और आन्ध्रप्रदेश का पहले दो राज्यों में होना तो आशानुरूप रहा, लेकिन तीसरे, चौथे, पांचवें और सातवें स्थान पर क्रमश: झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और ओडिषा का रहना सचमुच एक रहस्योद्घाटन ही है। इस रेंकिंग के माध्यम से यही दर्शित हुआ है कि कुछ पुराने राज्य अपनी पुरानी साख के कारण ही टिक पाए हैं, लेकिन इन राज्यों में बुनियादी बदलावों की सख्त जरूरत है वरना वे युवा तथा महत्वाकांक्षी राज्यों से पिछड़ने का खतरा उठाएंगे। इन युवा राज्यों ने एज आफ डूइंग बिजनेस में बढ़त के जरिए वास्तव में अपनी धमक बना ली है। यह जानना काफी दिलचस्प है कि प्रथम सात राज्यों में से छह राज्य एनडीए शासित हैं। संभवत: ऐसा केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल के कारण है और केन्द्र सरकार इसकी प्रेरणा शक्ति का स्रोत है।
इन राज्यों के पूर्ण क्षमता से कार्य करने के पीछे राजनीतिक स्थिरता, दूरदर्शी राजनीतिक नेतृत्व भी समान रूप से महत्वपूर्ण घटक हैं। रेंकिंग निश्चय ही इन अग्रणी राज्यों में निवेश आकर्षित करने की एक बड़ी प्रेरणा तथा प्रोत्साहन का काम करेगी। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य के मुख्यमंत्री अपने राज्य में यथासंभव सर्वाधिक निवेश आकर्षित करने के लिए विकास के नए मापदण्ड गढ़ रहे हैं। अलबत्ता झारखण्ड की कहानी जरूर चौंकाने वाली है, क्योंकि इस राज्य ने गठन के बाद के 15 वर्षों में 10 मुख्यमंत्री देख लिए हैं अर इसके बावजूद झारखण्ड एज आफ डूइंग बिजनेस की सूची में ऊपर से तीसरा है। ज्यादातर नए राज्यों ने प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उद्योगों के क्षेत्र में परम्परागत रूप से बढ़िया काम किया है और अब उदीयमान क्षेत्रों की ओर कदम उठा रहे हैं। जहां आकर्षक सुविधाएं तथा आर्थिक प्रोत्साहन अपने चरम पर पहुंच रहे हैं, वहां अब कामकाज का बेहतर वातावरण, निवेश के निर्णय लेने के लिए विशिष्ट मापदण्ड बन रहा है कि वह राज्य अडीबी में कहां खड़ा है। निरीक्षण का राष्ट्रीय औसत 19.54 प्रितशत होना एक और चिंता का क्षेत्र है, अलबत्ता टैक्स रिफ ार्म के मापदण्ड में राज्यों ने अच्छी गति दर्षाई है। यह अध्ययन 98 सूत्रीय कार्ययोजना के क्रियान्वयन में राज्यों की गति की माप अनिवार्य रूप से करता है, जिससे यह पता चले कि राज्यों ने कारोबार के वातावरण को अनुकूल बनाने की दिशा में कितने गंभीर प्रयास किए हैं। यद्यपि सुधारों को निवेश-वृद्धि तथा राज्यों की आय-वृद्धि के रूप में तब्दील होता देखना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन अडीबी के लिए नियामक संरचना के सृजन से होने वाले लाभ निकट भविष्य में दिखाई पड़ने लगेंगे। अपने राज्य में अडीबी में सुधारों का लाभ देने की स्थिति में पहुंच गए राज्यों का प्रदर्शन करने वाले छत्तीसगढ़ जैसे राज्य वास्तविक सराहना के पात्र बने हैं। र्शम कानूनों संबंधी अनुक्रम एवं उनके क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ को द्वितीय स्थान प्राप्त है।
सुगमता से व्यापार को शुरू करने के लिए छत्तीसगढ़ देश में तृतीय स्थान पर है। व्यापार में विभिन्न शासकीय निरीक्षणों में देश में छत्तीसगढ़ को चौथा स्थान प्राप्त है। इस रेंकिंग प्रक्रिया में केवल 7 राज्यों को 50 प्रतिशात से 75 प्रतिशत के बीच कुल अंक प्राप्त हुए हैं जिसमें छीसगढ़ ने चौथे स्थान पर आकर, महत्वाकांक्षी लीडर की र्शेणी में अपना स्थान दर्ज किया है। इसमें राज्य की औद्योगिक नीति 2014-19 के क्रियान्वयन का इसमें बड़ा योगदान है।
छत्तीसगढ़ में ईओडीबी के मापदण्डों पर अमल का प्रतिशत 62.45 है जबकि भारत का औसत मात्र 32 प्रतिशत है। इस विश्लेषण से यह भी स्पष्ट है कि ईओडीबी पर अमल में संकोच करने वाले राज्यों के आर्थिक विकास की गति धीमी होगी, बल्कि राष्ट्रीय आर्थिक परिदृष्य में भी उन्हें हासिए पर जाना होगा। उभरते हुए राज्य अभी इस स्थिति में नहीं हैं कि वे अपनी गति को शिथिल कर सके क्योंकि उनकी उपलब्धियां अभी अल्पकालिक ही हैं। अडीबी को प्रेरणा का विषय बनाना होगा, जो विभिन्न सरकारों और उनके विभागों में नौकरशाही के हर वर्ग की मानसिकता बदलने के लिए लगातार प्रयास करे। राजनीतिक दृष्टिकोण तथा स्थायित्व के मुख्य कुंजी होने के बावजूद सरकारी अधिकारियों के मां-बाप बनने की मानसिकता में बुनियादी परिवर्तन की आवश्यकता है, तभी एज आफ डूइंग बिजनेस में तेजी आएगी अन्यथा वर्ष 2017 तक भारत का दुनिया में टाप-50 में पहुंचने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य एक कल्पना ही रह जाएगा।
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