आत्मनिर्भर होगी सेना, रक्षा बजट के लिए 2,46,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान

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By - ?????? ????? ??? |4 March 2015 12:00 AM IST
वित्तमंत्री ने बजट में कहा है कि अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए भारत का संपूर्ण ध्यान अब आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर रहेगा।
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राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न सदैव ही किसी भी अन्य प्रश्न से ऊपर रहा है। रक्षा क्षेत्र में अभी तक भारत अस्त्र शस्त्रों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहा है। वित्तमंत्री ने बजट में कहा है कि अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए भारत का संपूर्ण ध्यान अब आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर रहेगा।
वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा लोकसभा में आम बजट पेश किया गया। भारत में रक्षा बजट को वस्तुत: देश के आम बजट के अंतर्गत ही प्रस्तुत किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भारत के रक्षा बजट के लिए कुल दो लाख छियालिस हजार करोड़ रुपयों का प्रावधान किया है। उन्होंने बजट पेश करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न सदैव ही किसी भी अन्य प्रश्न से ऊपर रहा है। वित्तमंत्री ने फरमाया कि रक्षा क्षेत्र में अभी तक भारत अस्त्र शस्त्रों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहा है। अत: अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए भारत सरकार का संपूर्ण ध्यान अब अस्त्र-शस्त्र निर्माण क्षेत्र में पूरी तरह से आत्म निर्भरता प्राप्त करने के लिए केंद्रित रहेगा। मेक इन इंडिया के विचार बिंदु के तहत ही वित्तमंत्री ने विगत वित्तीय वर्ष के रक्षा बजट की तुलना में इस वित्तीय वर्ष में तकरीबन नौ फीसदी का इजाफा किया है।
उल्लेखनीय है कि रक्षा उत्पादन क्षेत्र में नरेंद्र मोदी हुकूमत ने 49 फीसदी तक विदेशी पूंजी निवेश की छूट पहले ही प्रदान कर दी है। भारत की सेना प्राय: आधुनिकतम अस्त्र शस्त्रों की कमी प्राय: जूझती रही है। इसका सबसे बड़ा कारण रहा है कि भारत सरकार, भारतीय सेना के तीनों अंगों के लिए आवश्यक अस्त्र शस्त्रों, लड़ाकू विमानों, जंगी जहाजों आदि का तकरीबन सत्तर फीसदी आयात करती रही है। भारत को सबसे विकट रक्षा चुनौती पेश करने वाला चीन, अपने देश में अत्याधुनिक सैन्य हथियार निर्मित करके उनका निर्यात कर रहा है। नरेंद्र मोदी हुकूमत द्वारा एफडीआई के बलबूते पर ही सही भारत के रक्षा उत्पादन क्षेत्र को ताकतवर बनाने की पहल प्रारम्भ की गई है।
निरंतर बढ़ती हुई रक्षा चुनौतियों के मद्देनजर विगत 2914-15 के वित्तीय वर्ष के लिए पूरक रक्षा बजट में भी वित्तमंत्री ने दस फीसदी की बढ़ोतरी अंजाम दी थी। इस सबके बावजूद नरेंद्र मोदी हुकूमत अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ हथियारों की अंधी दौड़ में शामिल होने से पूर्णत: गुरेज कर रही है। वित्तमंत्री द्वारा इस वर्ष पेश किए गए रक्षा बजट से एक तथ्य स्पष्ट तौर पर उभर कर सामने आ रहा है कि नरेंद्र मोदी हुकूमत द्वार रक्षा क्षेत्र में प्रस्तुत चुनौतियों और आवश्यकताओं का समुचित रूप से ध्यान रखा गया है, किंतु हथियारों के मामले में चीन से होड़ करने से परहेज किया गया है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष पाकिस्तान ने अपने रक्षा बजट में तकरीबन तीन लाख करोड़ और चीन ने तकरीबन दस लाख करोड़ रुपयों का प्रावधान किया है। इस तरह चीन का रक्षा बजट भारत के मुकाबले तकरीबन चार गुना अधिक रहा है। भारत के समक्ष वस्तुत: चीन और पाकिस्तान द्वारा प्रस्तुत सम्मिलित रक्षा चुनौती खड़ी की गई है। चीन अपने संवेदनशाल प्रांत शिनझियांग के काश्गर इलाके से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक कराची और इस्लामाबाद से गुजरता हुआ तकरीबन दो हजार किलोमीटर रेल ट्रैक निर्मित करने में जुट गया है। भारतीय लद्दाख से सटे हुए काराकोरम की लगभग साढ़े पांच हजार मीटर गंगनचुंबी पहाड़ियों पर काराकोरम मार्ग निर्मित कर रहा है, जिसके माध्यम से चीन द्वारा मात्र 48 घंटों में भारत से सटे पाकिस्तान के अनेक सरहदी स्थानों पर सैन्य सामग्री पहुंचाई जा सकेगी। विगत वर्षों में तिब्बत में चीन अपनी सैन्य शक्ति को कई गुना कर चुका है। सिक्कम की चुंबा घाटी तक चीन रेल ट्रैक का विस्तार कर रहा है। अरुणाचल पर दावा पेश करने वाला चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश में जुटा हुआ है।
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यदि सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण व सैन्य उपकरणों की खरीद पर नजर डाली जाए तो वायु सेना का खर्च सबसे ज्यादा एवं महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसे 126 बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों के अलावा अन्य लड़ाकू विमानों की जरूरत है। जब वायु सेना के विमानों की संख्या बढ़ेगी तभी पाकिस्तान व चीन की सीमा पर विमानों की तैनाती बढ़ाई जा सकेगी। इसके लिए सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों का बेड़ा बढ़ाया जाना है। भारतीय वायु सेना को 40 करोड़ डॉलर की लागत के प्राथमिक प्रशिक्षण विमान भी खरीदने हैं। सी-17 ग्लोबमास्टर विमानों का सौदा कुछ समय पहले हुआ था जिस पर 4.1 अरब डॉलर का खर्च निश्चित है। इसी तरह मिराज-2000 र्शेणी के 49 लड़ाकू विमानों के उन्नतीकरण का समझौता 2.4 अरब डॉलर में किया गया था। इनका आधुनिकीकरण अत्यंत आवश्यक है। इसी तरह तेजस विमान का उत्पादन शुरू करने के अलावा वायुसेना को 300 हेलीकॉप्टरों की भी जरूरत है। इनकी खरीद के लिए भी धन की दरकार थी। थल सेना की जरूरतों की तरफ ध्यान दिया जाए तो उसके तोपखाने को मजबूती प्रदान की जानी है। इसके लिए 155 मिमी की अल्ट्रा लाइट होवित्जर तोपों की खरीद का सौदा अमेरिका से पूरा किया जाना है। भारत को ऐसी लगभग 400 तोपों की जरूरत है। इसके साथ ही थल सेना का हेलीकॉप्टर बेड़ा मजबूत किया जाना है। इसके लिए 197 हल्के उपयोग वाले हेलीकॉप्टरों की खरीदारी की जानी है। इन दोनों सौदों में बड़ी रकम खर्च होगी। इसके अलावा बड़ी संख्या में टैंकों, असाल्ट राइफलों, स्नो स्कूटर, सुरंगरोधी वाहनों, बुलेटप्रूफ जैकेटों, रॉकेट लांचरों व नाइटविजन चश्मों की जरूरत है, जिनकी खरीदारी का खर्च 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा होगा। यही नहीं, थल सेना को दो लाख कारबाइनों व 1500 मशीनगनों की जरूरत भी है।
इसी तरह नौ सेना की जरूरतें भी हैं। नौ सेना की ताकत बढ़ाने के लिए 8500 करोड़ रुपये में आठ पी-8 आई टोही विमान खरीदने का सौदा पहले हुआ था। अब ऐसे 12 टोही विमान और खरीदे जाने की योजना है। इसके अलावा 49 युद्धपोतों को तैयार किए जाने का आदेश विभिन्न शिपयार्ड के पास है। नौ सेना की प्रस्तावित खरीदारी में पोजीडान विमान, लैंडिंग पंटून गोदी, कामोव-31 हेलीकॉप्टर, नए बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर व पनडुब्बी निरोधक बम शामिल हैं। निकट भविष्य में पुराने चेतक हेलीकॉप्टरों की जगह नए हल्के हेलीकॉप्टरों की खरीद भी की जानी है। मिसाइल क्षेत्र में भारत को बढ़त हासिल करनी है। कुछ समय पहले भारत ने फ्रांस से एमआईसीए मिसाइलें खरीदने का समझौता 1.23 अरब डॉलर में किया है। इसके तहत भारत को लगभग 500 मिसाइलें प्राप्त होंगी। आने वाले दिनों में भारत को अपनी रक्षा तैयारी बढ़ाने के लिए रक्षात्मक मिसाइलों पर विशेष ध्यान देने की है। नरेंद्र मोदी सरकार सेना के तीनों अंगों को आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों से लैस करने की आवश्यकता को बाकायदा समझी है और इस दिशा में ठोस कदम भी उठाए हैं।
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